बॉलीवुड की तरह उभरते चेहरों को कम करके आंकती हैं रेटिंग एजेंसियां | |
श्रीमी चौधरी / 01 31, 2021 | | | | |
बीएस बातचीत
वित्त वर्ष 2020-21 की आर्थिक समीक्षा के लेखक और मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यन कहते हैं कि सरकार रेटिंग को लेकर क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों और अन्य भागीदारों के साथ आंतरिक स्तर पर बातचीत कर रही है क्योंकि देश के आर्थिक फंडामेंटल को मद्देनजर रखते हुए ज्यादा ऊंची सॉवरिन रेटिंग दिए जाने की जरूरत है। उन्होंने श्रीमी चौधरी को बताया कि समीक्षा में सुझाए गए राजकोषीय प्रोत्साहन की वित्त व्यवस्था विनिवेश, उधारी और प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कर प्राप्तियों से होगी। बातचीत के अंश:
आपने सरकार की तरफ से बड़ी धनराशि खर्च किए जाने का समर्थन किया है। लेकिन इस राजकोषीय प्रोत्साहन के लिए धन की व्यवस्था कैसे होगी?
मैंने कहा था कि राजकोषीय नियम इस तरह से तैयार किए जाएं कि वे काउंटर साइक्लिकल पॉलिसी को सक्षम बना सकें। इसके लिए धन विनिवेश राजस्व, उधारी और कर एवं गैर-कर राजस्व से आएगा। घरेलू और बाहरी उधारियों के बीच संतुलन बनाए रखना ऐसे पहलू हैं, जिनमेें समीक्षा में कुछ नहीं कहा गया है। इसका बुनियादी मकसद काउंटर साइक्लिकल राजकोषीय नीति की अहमियत के बारे में बात करना है क्योंकि प्रत्येक अर्थव्यवस्था उठापटक से गुुजर रही है और यह विविधताओंं के विस्तार को कम करती है।
जब अर्थव्यवस्था का प्रदर्शन बेहतर होता है तो सरकार कदम पीछे हटाती है और राजकोषीय वित्त को समेकित करती है और अगर अर्थव्यवस्था का प्रदर्शन बेहतर न हो तो वह अंतर की भरपाई करती है, जो निजी क्षेत्र द्वारा किया गया होता है, चाहे वह खपत हो या निवेश का मामला।
क्या आप सरकार के ऋण के वितत्तपोषण के लिए ज्यादा नोट की छपाई की सलाह दे रहे हैं?
वैश्विक वित्तीय संकट के बाद अर्थव्यवस्था और वित्त के साहित्य के साथ आ रहे हैं और अब दोनों कहीं ज्यादा तालमेल के साथ काम कर रहे हैं। वैश्विक वित्तीय संकट के पहले, उदाहरण के लिए वृहद अर्थव्यवस्था कुल मिलाकर वित्तीय क्षेत्रों के मुताबिक काम नहीं करता, जिसका उल्लेख अमेरिकन फाइनैंस एसोसिएशन के अध्यक्षीय भाषण मेंं पैट्रिक बोल्टन (कोलंबिया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर) ने किया। इसलिए उनके काम का उल्लेख इस संदर्भ में किया गया है, जहां वह सॉवरिन ऋण और कॉर्पोरेट फाइनैंसिंग से सीध लेने की बात करते हैं। विचार यह है कि अगर आप वासस्तव में उधारी लेते हैं और निवेश करते हैं और उस निवेश से आपके द्वारा भुगतान किए गए ब्याज की तुलना में ज्यादा मुनाफा मिलता है, तो वह परियोजना सार्थक होती है। यह मूल विचार है।
क्या आप सबके लिए मुफ्त टीके की वकालत कर रहे हैं?
संवेदनशील सेवा क्षेत्र में मांग बहाल करने के लिए टीकाकरण अहम है। मल विचार है कि हम यह सिफारिश कर रहे हैं कि टीकाकरण बहुत अहम है और ऐसा करने के लिए धन आवंटन की जरूरत है।
समीक्षा में कृषि कानून पर जोर दिया गया है और कहा गया है कि इससे किसानों को ताकत मिलेगी, लेकिन किसान सहमत नहीं है। इसकी क्या वजह है कि लाभार्थी सरकार का तर्क मानने को तैयार नहीं हैं?
कृषि कानूनों का अर्थशास्त्र, खासकर छोटे व सीमांत किसानों के मामले में बहुत साफ है। मौजूदा स्थिति में इन किसानों के पास कोई विकल्प नहींं है। अगर छोटे किसान कृषि उत्पाद मंडी समिति के साथ माल बेचने जाते हैं तो वह जानते हैं कि उनके पास दूसरा कोई विकल्प नहींं है। ऐसे में वह समूह अधिकतम अधिशेष लेता है। लेकिन अगर आपसे कहूं कि आप मुझे सही दाम नहीं दे रहे हैं और मैं अन्य समूह को माल बेच सकता हूं तो आप मुझे प्रतिक्रिया और बेहतर दाम देंगे।
यह मूल सिद्धांत है, जिसे जॉन नैश ने अपने नोबल पुरस्कार मिले बाजार से संबंधित काम मेंं दिखाया है। बहरहाल तमाम अन्य गतिविधियां भी चल रही हैं और कृषि के मामले में गलत सूचनाएं भी पहुंचाई जा रही हैं। अर्थव्यवस्था बिल्कुल साफ है कि इससे छोटे किसानोंं को फायदा मिलेगा और यहां तक कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भी इसका समर्थन किया है और कहा है कि छोटे किसानों की मदद के लिए यह जरूरी है।
पिछले 3 साल से जीडीपी वृद्धि के जो अनुमान आर्थिक समीक्षा मेंं लगाए गए थे, वह वास्तविक आंकड़ों से अलग हैं। आपके विश्वास की क्या वजह है कि इस बार समीक्षा में लगाया गया 11 प्रतिशत का अनुमान सही रहेगा?
इस साल महामारी के कारण सभी दांव उलट गए। हम सदी में एक बार आने वाले संकट से गुजर रहे हैं।
समीक्षा में कहा गया है कि अर्थवव्यवस्था में अंग्रेजी के वी अक्षर के आकार में रिकवरी हो रही है, लेकिन प्रमुख क्षेत्र के आंकड़ों से पता चलता है कि दिसंबर में 1.3 प्रतिशत गिरावट आई है। यह संकुचन का लगातार तीसरा महीना है।
तमाम तरह के प्रतिबंध लगाए गए और अभी भी हम महामारी से जूझ रहे हैं। याद रखने वाली मुख्य बात यह है कि पहली तिमाही मेंं 23.9 प्रतिशत की गिरावट आई और दूसरी तिमाही के 7.5 प्रतिशत को हम वी आकार कह सकते हैं। जब पहली तिमाही के आंकड़े आए थे, तब भी मैंने कहा था कि वी आकार की रिकवरी होगी, जिसका मतलब यह हुआ कि पहली तिमाही के संकुचन के बाद हम गति पकडऩे जा रहे हैं और तीसरी तिमाही में मामूली धनात्मक या मामूली ऋणात्मक आंकड़े हो सकते हैं और उसके बाद चौथी तिमाही में धनात्मक वृद्धि रहेगी।
अनिश्चितता अभी खत्म नहीं हुई है। और यह सिर्फ भारत के मामले में नहीं बल्कि पूरी दुनिया के मामले में सही है कि जब परिवारों को अनिश्चितता का सामना करना पड़ रहा है। सेवा क्षेत्र अर्थवव्यवस्था का अहम हिस्सा है और अभी भी यह प्रभावित है। बहरहाल आगे टीकाकरण होने से यह संवेदनशील क्षेत्र वापसी करेगा।
आपने कहा कि रेटिंग एजेंसियों द्वारा अर्थव्यवसस्था के ग्रेड के मामले में भारत बाहरी है। सभी तीन रेटिंग एजेंसियोंं ने भारत को सबसे निचली निवेश श्रेणी में रखा है। आपके मुताबिक भारत की आदर्श रेटिंग क्या हो सकती है?
विभिन्न मानकों के मुताबिक हमने यह कहा है कि भारत की अर्थव्यवस्था की मूल धारणा क्रेडिट रेटिंग मेंं नजर नहीं आती। उदाहरण के लिए पुनर्भुगतान की क्षमता, जैसा कि हम जानते हैं कि रेटिंग कुछ और नहीं बलिल्क चूक की संभाव्यता दिखाती है, जिसमें भुगतान की इच्छा और क्षमता शामिल है। अगर भुगतान की इच्छा के हिसाब से देखें तो भारत की पुनर्भुगतान की क्षमता 1991 में भी थी, जब भुगतान असंतुलन का इतिहास का सबसे बुरा संकट था और हमने अपनी देनदारियोंं का सम्मान करने के लिए हमने इंगलैंड सोना भेजा था।
अगर पुनर्भुगतान की क्षमता के हिसाब से देखें तो अगर आप निजी क्षेतत्र की विदेशी विनिमय बाध्यताओं सहित कुल देनदारी देखते हैं तो हमारा भंडार उशसे कहीं ज्यादा है। इसका मतलब यह हुआ कि अगर निजी क्षेत्र की फर्मों की विदेशी मुद्रा की देनदारी है और भारतीय रिजर्व बैंक से संपर्क साधती हैं और पुनर्भुगतान के लिए विदेशी मुद्रा मांगती हैं तो ऐशा किया जा सकता है। इसका मतलब यह है कि चूक की संभाव्यता दरअसल शून्य है, जिससे बुनियादी धारणा का पता चलता है। हम इसके बारे में रेटिंग एजेंसियों, नियामकोंं और अन्य हिस्सेदारों को बता रहे हैं।
आपने कहा कि रेटिंग से राजकोषीय नीति प्रभावित नहीं होती। लेकिन निवेशक रेटिंग के आधार पर फैसले करते हैं। इसका समाधान कैसे किया जा सकता है?
इसके बारे में तमाम बातें समीक्षा में दिखाई गई हैं, जिससे पक्षपात का पता चलता है। अगर आप विकसित अर्थव्यवस्थाओं को देखते हैं तो यह ट्रिपल ए था, लेकिन जब चीन विश्व की पांचवीं बड़ी अर्थवव्यवस्था बनता है तो रेटिंग नीचे आ जाती है। ऐसा ही भारत के मामले में भी हो रहा है। रेटिंग कुछ बॉलीवुड की तरह हो रही है, जहां नए चेहरों के बारे में अक्सर यह माना जाता है कि उनमेंं उतनी प्रतिभा नहीं है, जिसना पहले से स्थापित चेहरों में।
सेज, राष्ट्रीय विनिर्माण क्षेत्र जैसी कई नीतियां लाई गर्ईं, जिससे भारत निर्यात केंद्र बन सके। उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना में ऐसा क्या खास है जिससे ऐसा हो सकेगा?
पहला, पीएलआई दरअसल वृद्धि को प्रोत्साहित करती है। पहले के प्रोत्साहनों में इस पहलू पर ध्यान नहीं दिया गया और वृद्धि को बढ़ावा नहीं दिया गया। निर्यात बहुत प्रतिस्पर्धी क्षेत्र है और अंतरराष्ट्रीय बाजारों मेंं गुणवत्ता अहम है। आकार के साथ गुणवत्ता का भी मसाल आता है। दूसरे, श्रम बाजारों, एमएसएमई की परिभाषा, कारोबार सुगमता की ढांचागत समस्याओं को दूर नहीं किया गया था। ऐसे में सिर्फ प्रोत्साहन से काम नहीं चलता। अब ढांचागत खामियों को दूर किया गया है और इसके साथ ही प्रोत्साहन भी दिया गया है।
आपने कहा कि सीपीआई से लोगों के खानपान के व्यवहार में बदलाव नहीं आ पाता?
सीपीआई इस समय 2011 के उपभोक्ता सर्वे के मुताबिक है। पिछले 10 साल मेंं लोगोंं की आमदनी बढ़ी है, जिसकी वजह से लोग प्रोटीन वाले खाद्य जैसे दूध और दलहन का इस्तेमाल ज्यादा कर रहे हैं। फूड बास्केट बदल गया है, लेकिन सीपीआई से पता नहींं चलता।
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