कृषि निर्यात को मिलेगा बल | संजीव मुखर्जी / नई दिल्ली January 28, 2021 | | | | |
कृषि निर्यात को बढ़ावा देने के लिए 15वां वित्त आयोग उन राज्यों को विशेष प्रोत्साहन देने की सिफारिश कर सकता है, जो कृषि निर्यात की दिशा में बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं। सरकार ने 2022 तक कृषि निर्यात बढ़ाकर 60 अरब डॉलर करने का लक्ष्य रखा है।
सूत्रों ने कहा कि चिह्नित किए गए संकेतकों पर कृषि निर्यात में बेहतर प्रदर्शन करने वाले राज्यों को विशेष अनुदान दिया जा सकता है, जो प्रदर्शन पर आधारित प्रोत्साहन होगा। आयोग की अंतिम रिपोर्ट आगामी बजट सत्र में संसद में पेश किए जाने की संभावना है।
पिछले साल पेश की गई अंतरिम रिपोर्ट में आयोग ने राज्यों को प्रदर्शन आधारित प्रोत्साहन देने के लिए 6 संकेतकों की सिफारिश की थी। इन संकेतकों में कृषि सुधारों को लागू करना (इसका दायरा केंद्र सरकार द्वारा तैयार किए गए दो मॉडल कानून हैं), संबंधित जिलों व ब्लॉकों में विकास, बिजली क्षेत्र में सुधार, निर्यात सहित कारोबार को बढ़ाना, शिक्षा को प्रोत्साहन देना और घरेलू व अंतरराष्ट्रीय पर्यटन को बढ़ावा देना शामिल है।
15वें वित्त आयोग ने राज्यों के प्रदर्शन प्रोत्साहनों के आकलन पर सुझाव देने के लिए एक उच्च्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन किया था, जिससे कि कृषि निर्यात को बढ़ावा मिल सके और उन फसलों को प्रोत्साहन दिया जा सके, जो ज्यादा आयात का विकल्प बन सकती हैं। इस समिति में उद्योग, शिक्षा जगत के वरिष्ठ प्रतिनिधि और पूर्व नौकरशाह शामिल थे।
समिति ने 340 से ज्यादा कृषि व जिंस उत्पादों की सूची के लिए फसल मूल्य शृंखला के साथ 21 अन्य बातें चिह्नित की थीं, जिसके विकास की जरूरत है और इससे भारत को कृषि निर्यात में सक्षम बनाया जा सकता है और इसे बढ़ाकर मौजूदा 40 अरब डॉलर से अगले कुछ वर्षों में 70 अरब डॉलर किया जा सकता है।
इस पर जोर दिए जाने के लिए इनपुट, बुनियादी ढांचा, प्रसंस्करण और अन्य जरूरतों पर करीब 8 से 10 अरब डॉलर के करीब निवेश होने की जरूरत होगी, जिससे अनुमानित रूप से 70 लाख से एक करोड़ अतिरिक्त नौकरियों का सृजन होगा।
निर्यात को बढ़ावा देने के लिए ऐसे कदम उछाने से खेतों की उत्पादकता और किसानों की आमदनी बढ़ेगी।
मूल्य शृंखला विकास के लिए समिति द्वारा चिह्नित अन्य सामान में झींगा, बफैलो मांस, कच्ची कपास, अंगूर, दलहन, आम, केला, आलू, शहद आदि शामिल हैं।
समिति ने राज्य के नेतृत्व में निर्यात योजना के सृजन की भी सिफारिश की है, जिसमें निजी क्षेत्रों की अहम भूमिका होगी और केंद्र सुविधा प्रदाता के रूप में काम करेगा।
ऐसा विचार किया गया है कि निजी क्षेत्र के कारोबारी मांग पर केंद्रित होने और मूल्यवर्धन में सक्रिय भूमिका निभाएंगे, यह सुनिश्चित करेंगे कि परियोजना की योजना व्यावहारिक, द्रुत और लागू किए जाने योग्य और पर्याप्त रूप से वित्तपोषित हो।
इसके अलावा समिति ने भारत के गैर बासमती चावल के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए सरकार को भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के पास मौजूद अतिरिक्त चावल को निर्यातकों को उपलब्ध कराने की रणनीति बनाने की सिफारिश की है। इसमें कहा गया है कि एफसीआई सबसे बड़ा खरीदार है, जो घरेलू बाजार से सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए 4 करोड़ टन सालाना चावल खरीदता है।
इसके अलावा समिति का कहना है कि हर साल न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) बढऩे से निर्यात के लिए अधिशेष बहुत कम बचता है और कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार के हिसाब से भारतीय गैर बासमती चावल के लिए गैर प्रतिस्पर्धी हो जाती हैं। भारत के निर्यात में चावल की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा है, जिसके बाद बफैलो मांस और कपास का निर्यात होता है।
कुल मिलाकर भारत का कृषि निर्यात पिछले कुछ साल से 40 अरब डॉलर के आसपास रहा है और यह 2013-14 में हुए 43 अरब डॉलर निर्यात की तुलना में नीचे और 2018 में जारी कृषि निर्यात नीति के 2022 तक निर्यात बढ़ाकर 60 अरब डॉलर करने के लक्ष्य से बहुत दूर है।
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