स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि अब तक 25 लाख से अधिक स्वास्थ्यकर्मियों को टीका लगाया गया है। करीब 11 राज्य अपने 35 फीसदी से अधिक स्वास्थ्य कर्मियों को टीके की पहली खुराक देने में कामयाब रहे हैं जबकि अन्य छह राज्यों में करीब 20 प्रतिशत या उससे कम स्वास्थ्यकर्मियों को टीके लगाए गए हैं। टीकाकरण की रफ्तार में भारत दुनिया के अन्य देशों के मुकाबले आगे है और देश में शुरुआती छह दिनों के भीतर 10 लाख लोगों को टीके लगाए गए जबकि अमेरिका में इतने लोगों को टीका लगाने में 10 दिन जबकि जर्मनी में 20 दिन का वक्त लगा।
महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ ने लगभग 21 प्रतिशत स्वास्थ्यसेवा कर्मियों को पहली खुराक दी है जबकि दिल्ली, तमिलनाडु और झारखंड सहित कई राज्यों में टीके की कवरेज 16 प्रतिशत से भी कम रही। लक्षद्वीप ने अपने 83 प्रतिशत से अधिक स्वास्थ्य कर्मियों को टीका लगाया है जबकि ओडिशा और हरियाणा सहित कुछ अन्य राज्यों ने 50 प्रतिशत से अधिक कवरेज हासिल किया। स्वास्थ्य मंत्रालय के सचिव राजेश भूषण ने कहा, 'हम राज्यों के साथ लगातार संपर्क में हैं और बता रहे हैं कि टीकाकरण की दर बढ़ाने की आवश्यकता है। इनमें से कुछ बड़े राज्य हैं जहां अधिक स्वास्थ्यकर्मी हैं।' भूषण ने यह भी कहा कि सरकार बड़े पैमाने पर टीकाकरण की शुरुआत के लिए निजी क्षेत्र को शामिल करने से जुड़े सुझावों के लिए विभिन्न हितधारकों के संपर्क में है। भार्गव, बायोकॉन लिमिटेड की कार्यकारी अध्यक्ष किरण मजूमदार शॉ के एक ट्वीट से जुड़े एक सवाल का जवाब दे रहे थे, जिसमें कहा गया था, 'जब तक निजी अस्पताल सामान्य आबादी को टीका लगाना शुरू नहीं करते तब तक हमें रोजाना 20 लाख टीका लगाने की जरूरत है और टीका उत्पादन के साथ तालमेल बनाए रखने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ेगा जो इस्तेमाल से कहीं अधिक है।' 26 जनवरी तक अमेरिका ने टीके की 2.35 करोड़ खुराकें दी जो दुनिया में सबसे अधिक थी और इसके बाद ब्रिटेन ने टीके की 76.4 लाख खुराक दी। भारत ने टीके की 10 प्रतिशत खुराकों के बरबाद होने की चिंता जताई है और इसे रोकने के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय ने राज्यों को विस्तृत दिशानिर्देश दिए हैं ताकि को-विन मंच पर पंजीकृत अतिरिक्त लोगों के लिए टीकाकरण की अनुमति दी जाए। चूंकि भारत में संक्रमण के मामले में केवल 2 राज्यों केरल और महाराष्ट्र में कमी आई है और 40,000 से अधिक मामलों में करीब 67 फीसदी सक्रिय मामले हैं। देश में संक्रमण की वजह से रोजाना मरने वालों की तादाद आठ महीने बाद 125 से कम दर्ज की गई।
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