सुरक्षा मंजूरी नीति में होंगे बदलाव | निकुंज ओहरी / नई दिल्ली January 28, 2021 | | | | |
पड़ोसी देशों से भारत में निवेश पर लगाम कसने के लिए सरकार सार्वजनिक उपक्रमों के निजीकरण या रणनीतिक विनिवेश में प्रतिभागिता करने वाले निवेशकों के लिए अपनी सुरक्षा मंजूरी नीति में बदलाव करने जा रही है। एक शीर्ष सरकारी अधिकारी ने बताया कि फिलहाल सुरक्षा समिति निजीकरण या रणनीतिक विनिवेश में सबसे ऊंची बोली लगाने वालों की ही सुरक्षा मंजूरी देखती है। लेकिन अब वित्तीय बोली प्रक्रिया में हिस्सा लेने वाले हरेक निकाय की सुरक्षा मंजूरी अनिवार्य करने की तैयारी चल रही है।
इस मामले में सुरक्षा मंजूरी को सरकार की प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) नीति में दिए गए सुरक्षा मंजूरी मानदंड के मुताबिक ढालने का प्रस्ताव है। एफडीआई नीति में बदलाव इसलिए किए गए थे ताकि चीनी निवेशक कोरोनावायरस महामारी के बीच भारतीय कंपनियों के जबरिया अधिग्रहण की कोशिश नहीं करें।
नीति में बदलाव का प्रस्ताव का मकसद ऐसी स्थिति नहीं आने देना है, जहां सबसे ऊंची बोली लगाने वाला या सफल बोलीदाता चीन अथवा अन्य पड़ोसी देश से निवेश ला रहा हो और उसी आधार पर उसे सुरक्षा मंजूरी नहीं दी जाए। उस स्थिति में निजीकरण की पूरी प्रक्रिया पटरी से उतर सकती है।
निवेश एवं सार्वजनिक संपत्ति प्रबंधन विभाग (दीपम) के सचिव तुहिन कांत पांडेय की अध्यक्षता वाली सुरक्षा समिति संशोधन पर विचार कर रही है। समिति में अन्य मंत्रालयों के भी सदस्य भी शामिल हैं।
अधिकारी ने कहा कि प्रस्ताव के अनुसार वित्तीय बोली प्रक्रिया (रणनीतिक विनिवेश का दूसरा चरण) में हिस्सा लेने वाली सभी इकाइयों की जांच की जाएगी। बोलियां खोलने से पहले सुरक्षा मंजूरी दी जाएगी और जो इकाई सुरक्षा मानदंड पर खरी नहीं उतरेगी, उसे प्रक्रिया से बाहर रखा जाएगा। उनकी बोलियां भी नहीं खोली जाएंगी।
मौजूदा नियमों के अनुसार विनिवेश पर सचिवों का मुख्य समूह हरेक मामले में अलग तरह से शीर्ष बोलीदाता की सुरक्षा मंजूरी पर निर्णय करता है। जिस मामले में बोलीदाता को सुरक्षा मंजूरी की जरूरत होती है, उसमें विनिवेश या निजीकरण के लिए प्रस्तावित सार्वजनिक उपक्रम का संबंधित मंत्रालय मंजूरी के लिए सुरक्षा समिति से संपर्क करता है। सभी मंजूरियां मिलने के बाद शीर्ष बोलीदाता का नाम, बोली की रकम और शेयर खरीद समझौते के नियम एवं शर्तें विनिवेश पर सचिवों की मुख्य समिति के समक्ष प्रस्तुत की जाती है। इसके बाद समिति आर्थिक मामलों की केंद्रीय समिति को समुचित सिफारिशें भेजती है। शीर्ष बोलीदाता को सुरक्षा मंजूरी नहीं मिलती है तो समिति दूसरी सबसे ऊंची बोली लगाने वाले को शीर्ष बोलीदाता की रकम के बराबर बोली पेश करने का विकल्प दे सकती है। लेकिन हर बार दूसरी सबसे ऊंची बोली लगाने वाले शीर्ष बोलीदाता के बराबर रकम की पेशकश नहीं कर पाते हैं। ऐसे में निजीकरण की पूरी प्रक्रिया ही पटरी से उतर जाती है।
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