नए साल में आर्थिक चुनौतियों का दायरा | अजय शाह / January 27, 2021 | | | | |
महामारी के स्वास्थ्य पहलुओं से जुड़ी सुरंग के आखिर में अब रोशनी नजर आने लगी है। परंपरागत डेटा में कई मुश्किलें हैं लेकिन एक कायाकल्प को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। मसलन, मुंबई के सरकारी आंकड़ों के मुताबिक कोविड की वजह से पहली मौत मार्च में हुई थी और 20 जून को 136 मौतों के साथ यह चरम पर पहुंच गया। अब यह आंकड़ा घटकर प्रतिदिन तीन मौतों पर आ चुका है। भारत में हरेक पड़ोस एवं समुदाय महामारी वक्रपर अलग मुकाम पर स्थित है लेकिन मोटे तौर पर हम महामारी के परवर्ती दौर में आ चुके हैं। लोगों के अपने घरों में रहने से शायद मौतों का आंकड़ा कम हुआ है लेकिन बात केवल इतनी ही नहीं है। आंकड़े दिखाते हैं कि कारोबारी गतिविधियों एवं रोजगार में अप्रैल के निम्नतम स्तर से खासा सुधार हुआ है।
हालांकि यह वक्त आर्थिक स्थिति बहाल होने की घोषणा का नहीं है। परिवारों की खपत अब भी महामारी से पहले के स्तर से काफी नीचे है। संपर्क सघन सेवाएं अभी तक पुराने स्तर पर नहीं पहुंच पाई हैं और उत्पादन के मद में पूंजी एवं श्रम के आवंटन की प्रक्रिया अभी तक पूरी नहीं हो पाई है। इसके अलावा परिवार अपने भविष्य को लेकर डरे हुए हैं और वे बचत पर अधिक जोर दे रहे हैं। इन्हें एक साथ रखें तो अर्थव्यवस्था में मांग की बड़ी कटौती हुई है। वृहद-अर्थशास्त्र के फीडबैक लूप सक्रिय हैं-जब परिवारों की मांग कम होती है तो कंपनियों को मिलने वाला राजस्व भी कम हो जाता है। इस वजह से कंपनियां अपने खर्च में कटौती करने लगती हैं जिससे परिवारों की आय भी प्रभावित होती है।
वर्ष 2020 के आर्थिक तनाव ने तनावग्रस्त ऋण अनुबंधों का एक जखीरा पैदा कर दिया है। कई कर्जदारों को ऋण स्थगन की छूट का फायदा उठाया है जो कुछ समय मदद करता है लेकिन आखिरकार उसका अंत होना ही है। भविष्य में कई कर्जदारों को कर्ज चुकाने में मुश्किलें पेश आएंगी। वित्तीय फर्मों में से कई कर्जदाताओं को बैलेंसशीट में तनाव का सामना करना होगा। इस तरह गैर-वित्तीय एवं वित्तीय फर्मों की चूक के मामले बढ़ेंगे।
हमें एक व्यवस्थित ढंग से इन चूकों की पहचान के लिए संस्थागत प्रणालियों की जरूरत होगी। हम 2016 से पहले की स्थिति में हैं जब गैर-वित्तीय फर्मों की चूक सामने आ रही थीं। वित्तीय फर्मों की चूक से निपटने के लिए कोई व्यवस्थागत संस्थागत ढांचा मौजूद नहीं है, वैसे भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने बैंक की नाकामी से निपटने के लिए बाजार-आधारित तरीकों में सुधार से दो बढिय़ा कामयाबी हासिल की हैं। वर्ष 2021 में वृहद-आर्थिक प्रदर्शन पर ये तीन समस्याएं छाई रहेंगी: परिवारों की मांग में बहाली, ऋण पुनर्भुगतान पर तनाव से जूझ रहे परिवार एवं गैर-वित्तीय फर्में और तनावग्रस्त वित्तीय फर्में।
दिसंबर 2020 में निजी क्षेत्र की 36 लाख करोड़ रुपये की परियोजनाएं क्रियान्वयन के क्रम में थीं जो एक साल पहले के 38 लाख करोड़ रुपये की तुलना में कम है। लंबे समय तक गिरावट का रुख बने रहने के बीच यह स्थिति आई है जब नॉमिनल रुपये में शिखर मूल्य दिसंबर 2011 में देखा गया था। जहां अर्थव्यवस्था का एक हिस्सा फल-फूल रहा है, वहीं कई गैर-वित्तीय फर्में इन तीन में से एक या अधिक समस्या का सामना जरूर कर रही है: हिचकोले खाती मांग, फर्म में वित्तीय तनाव और वित्त के आकलन में अवरोधक। अगर एक साथ देखें तो इसने निजी निवेश को कम करने का माहौल पैदा कर दिया है।
सार्वजनिक निवेश में खासी वृद्धि हुई है जिसमें ढांचागत क्षेत्र सबसे आगे है। दिसंबर 2011 में 34 लाख करोड़ रुपये की सरकारी परियोजनाएं क्रियान्वयन के दौर में थीं लेकिन दिसंबर 2020 में यह बढ़कर 83 लाख करोड़ रुपये हो गया था। यह ढांचागत क्षेत्र में निजी भागीदारी में आई कमी को दर्शाता है। लेकिन हमें यह याद रखना होगा कि ढांचागत परिसंपत्ति एक साध्य को हासिल करने का साधन भर है। ढांचागत परिसंपत्तियों का उद्देश्य फर्मों में निजी निवेश के अनुकूल हालात पैदा करना है और ये फर्में परिवहन एवं संचार ढांचे का इस्तेमाल भी करेंगी। वर्ष 2020 तक ढांचागत अवरोध निजी फर्मों की सोच को आकार देने में कम महत्त्वपूर्ण थे। इसके अलावा सरकार-केंद्रित निवेश की पैसे को प्रदर्शन में तब्दील करने की क्षमता भी कम होती है।
श्रम बाजार के आंकड़े हमें व्यापक-आर्थिक हालात के बारे में अच्छी अंतर्दृष्टि देते हैं। दिसंबर 2020 में 42.75 करोड़ लोग रोजगार में लगे हुए थे जो एक साल पहले के 43.9 करोड़ से कम था। यह हालत जनवरी 2016 से ही रोजगार-प्राप्त लोगों की संख्या में जारी शिथिलता के दौरान की है। इस दौरान जनसंख्या वृद्धि ने कामकाजी उम्र के लोगों की तादाद बढ़ा दी है। इससे हमारी लोक नीति के समक्ष एक मौलिक चुनौती खड़ी हो गई है। तकरीबन सारे रोजगार निजी निवेश के असर में हैं, लिहाजा रोजगार की समस्या हल करने के लिए निजी निवेश की समस्या का समाधान खोजना होगा।
प्रमुख मुद्रास्फीति यानी सालाना उपभोक्ता मूल्य आधारित सूचकांक दिसंबर 2019 में बढ़ी थी और उसके बाद से ही लगातार असहज रूप से अधिक रही है। नवंबर 2020 में 6.93 फीसदी पर रही प्रमुख मुद्रास्फीति अब भी 2-6 फीसदी के मुद्रास्फीति दायरे से काफी अधिक ही है। लेकिन अर्थव्यवस्था में सुस्त मांग वाले परिवेश में मौद्रिक नीति समिति के ब्याज दर निर्धारण संबंधी निर्णय पर असहमत हो पाना मुश्किल है। यह मुमकिन है कि अर्थव्यवस्था के सामान्यीकरण का नतीजा आपूर्ति में सुधार के रूप में निकलेगा और मुद्रास्फीति फिर से निर्धारित दायरे में आ जाएगी।
यह 2021 के शुरुआत की वृहद-आर्थिक स्थिति है और 1 फरवरी को पेश होने वाले बजट की निर्माण प्रक्रिया में यह बात नजर भी आएगी। कर राजस्व में कटौती की जाएगी। समस्याओं की गंभीरता को परिवारों की मांग एवं निजी निवेश में आई गिरावट के संदर्भ में देखें तो सरकार का आकार छोटा है। सार्वजनिक वित्त की ठोस एवं रूढि़वादी रणनीति खर्च या घाटे में सावधानी बरतने का भाव पैदा करेंगे। इन गतिरोधों के बावजूद ऋण एवं सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के अनुपात में बढ़त का सिलसिला अधिक उधारी एवं कमजोर जीडीपी वृद्धि के मेल से जारी रहने के आसार हैं।
नीति-निर्माता निजी निवेश की समस्याएं जड़ से ही दूर कर अर्थव्यवस्था की रिकवरी में मदद कर सकते हैं। कई शोधकर्ताओं ने दिसंबर 2011 के शीर्ष मूल्य के बाद निजी निवेश की समस्याओं के बारे में हालिया वर्षों में लिखा है और बदले हुए हालात के बारे में ज्ञान का पूरा विकास हो चुका है। इन दीर्घकालिक मुद्दों के अतिरिक्त वित्तीय एवं गैर-वित्तीय फर्मों के लिए समाधान प्रारूप पर तात्कालिक दबाव है। तनावग्रस्त फर्मों के कर्ज समाधान से स्लेट का साफ कर सतत वृद्धि के लिए हालात पैदा करने में मदद मिलेगी ताकि हम समग्र बैलेंस शीट के बड़े हिस्से को स्वस्थ फर्मों में वापस ला सकें।
(लेखक स्वतंत्र आर्थिक विश्लेषक हैं)
|