अमेरिका के 46वें राष्ट्रपति के शपथ-ग्रहण समारोह का विवादों एवं शोर-शराबे से मुक्त होना यह आभास देता है कि दुनिया की इकलौती महाशक्ति में हालात सामान्य होने लगे हैं। दो हफ्ते पहले सत्ता पर कब्जा जमाने की पिछले राष्ट्रपति की कोशिश के मद्देनजर ऐसी सोच भ्रामक हो सकती है। इस नए अमेरिका का सौम्य रूप देश की पहली अश्वेत एवं दक्षिण एशियाई महिला उपराष्ट्रपति के तौर पर कमला हैरिस के शपथ में भी दिखा। नए राष्ट्रपति जोसेफ बाइडन ने खतरे की आशंका के बावजूद शपथग्रहण समारोह परंपरा के अनुरूप खुली जगह पर आयोजित कर स्थिति सामान्य होने का संदेश देने की कोशिश की। लेकिन उन्होंने अपने जज्बाती भाषण में अमेरिका के समक्ष पेश आने वाली चुनौतियों का भी जिक्र किया। उन्होंने चुनाव नतीजों पर मुहर लगाने के लिए गत 6 जनवरी को बुलाई गई कांग्रेस की बैठक के दौरान 'कैपिटल हिल' पर धावा बोलने की नाकाम कोशिश का परोक्ष जिक्र करते हुए कहा, 'लोकतंत्र जिंदा बच गया है।' भले ही बाइडन या मंच पर मौजूद किसी दूसरे शख्स ने 45वें राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप का नाम नहीं लिया लेकिन परंपरा को धता बताते हुए शपथग्रहण समारोह से दूर रहने वाले ट्रंप का साया चारों तरफ नजर आया। बाइडन ने अपने पूर्ववर्ती की विभाजनकारी विरासत का खुलकर जिक्र किया। उन्होंने नस्ली इंसाफ को आवाज देने और राजनीतिक अतिवाद, श्वेत श्रेष्ठता एवं घरेलू आतंकवाद को परास्त करने की भी बात कही। उन्होंने डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रमुख चुनावी वादों पर अमल करने की बात भी कही जिनमें पेरिस जलवायु समझौते का फिर से हिस्सा बनना और कम कठोर आव्रजन नीति भी शामिल है। लेकिन उन्होंने अपना एजेंडा महान अमेरिकी स्वप्न के हिस्से के तौर पर पेश करने की कोशिश की जिसे सिर्फ एकजुट देश में ही हासिल किया जा सकता है। उन्होंने एकता की अपील करने के साथ यह कहते हुए असहमति की सीमा भी तय कर दी कि, 'वह लोकतंत्र है। वह अमेरिका है। हमारे गणतंत्र की सुरक्षा दीवारों के भीतर शांतिपूर्ण तरीके से असहमति जताने का अधिकार शायद इस देश की सबसे बड़ी ताकत है।' उन्होंने कोविड-19 संकट से निपटने के ट्रंप के क्रूर तरीकों से भी खुद को अलग करते हुए महामारी में मरे 4 लाख अमेरिकी नागरिकों की याद में कुछ पलों का मौन रखा। बाइडन ने कार्यकाल के पहले ही दिन 17 कार्यकारी आदेशों पर हस्ताक्षर किए। इनमें से कई आदेश एच1बी वीजा समेत आव्रजन, किफायती स्वास्थ्य देखभाल, पर्यावरण, रोजगार एवं अर्थव्यवस्था पर ट्रंप की कट्टर नीतियों को पलटने वाले भी हैं। लेकिन डेमोक्रेटिक पार्टी एवं रिपब्लिकन पार्टी के नेताओं के बीच समारोह में नजर आई गर्मजोशी एवं हल्के-फुल्के अंदाज को बहुत गंभीरता से नहीं लेना चाहिए। बाइडन का सीनेट में कई दशकों के अपने कार्यकाल के दौरान विरोधी दल के साथ भी बढिय़ा संबंध रहा है लेकिन ट्रंप को रिपब्लिकन पार्टी के सांसदों में तगड़ा समर्थन हासिल है और 6 जनवरी की निर्णायक मंजूरी के समय यह नजर भी आया था। भले ही डेमोक्रेट सांसदों के पास दोनों सदनों का नियंत्रण है लेकिन प्रतिनिधि सभा में उसे मामूली बढ़त ही हासिल है। ट्रंप पर महाभियोग सुनवाई करना सीनेट का शुरुआती काम होगा। उसका नतीजा बाइडन के कार्यकाल में राजनीतिक ध्रुवीकरण की सीमा तय करेगा और वैश्विक राजनीति के लिए भी उसके कई अहम संकेत होंगे। मुख्यत: अमेरिकी अवाम पर केंद्रित अपने उद्घाटन भाषण में बाइडन ने यूरोप एवं एशिया के अपने सहयोगी देशों को भी भरोसा दिलाया। ट्रंप ने अमेरिका को एक गैर-भरोसेमंद सहयोगी के तौर पर पेश करने के साथ ही दुनिया भर में व्हाइट हाउस की साख गिराने वाले तमाम काम किए हैं। इस निचले स्तर से अमेरिका को फिर से महान राष्ट्र बनाने के लिए अमेरिका के सबसे उम्रदराज राष्ट्रपति को बहुत कुछ करना होगा।
