खराब विचार | संपादकीय / January 19, 2021 | | | | |
कोविड-19 महामारी के कारण मची आर्थिक उथलपुथल के कारण बैंकिंग क्षेत्र के फंसे हुए कर्ज में इजाफा होना लाजिमी है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की ताजातरीन वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट के अनुसार आधार परिदृश्य में सकल फंसा हुआ कर्ज अनुपात सितंबर 2020 के 7.5 फीसदी से बढ़कर इस वर्ष सितंबर तक 13.5 फीसदी हो सकता है। यदि वृहद आर्थिक हालात और खराब होते हैं तो यह अनुपात बिगड़ भी सकता है। सरकारी बैंकों के लिए तो यह पहले ही खराब है। रिपोर्ट के अनुसार आधार परिदृश्य में उनका सकल फंसा हुआ कर्ज सितंबर 2021 तक बढ़कर 16.2 फीसदी तक पहुंच सकता है। स्पष्ट है कि बैंकों की कमजोर बैलेंस शीट, खासकर सरकारी बैंकों की कमजोर स्थिति आर्थिक सुधार को प्रभावित करेगी। खबरों के मुताबिक बैंकिंग तंत्र की हालत देखते हुए सरकार एक बैड बैंक की स्थापना पर विचार कर रही है ताकि बैंकों की बैलेंस शीट सुधारी जा सके। आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने भी हाल ही में कहा है कि केंद्रीय बैंक ऐसे प्रस्ताव पर विचार कर सकता है।
यकीनन बैड बैंक की स्थापना का विचार नया नहीं है। बैंकिंग तंत्र बीते कई वर्षों से दबाव में है, ऐसे में बैड बैंक का प्रस्ताव बार-बार सर उठाता रहता है। कहा जा रहा है कि फंसे हुए कर्ज को बैड बैंक को स्थानांतरित करके बैंकों की बैलेंस शीट सुधारी जा सकती है। उसकी स्थापना ही ऐसी परिसंपत्तियों को निपटाने के लिए होनी है। बहरहाल, ऐसी कई वजह हैं जिनके कारण लगता है कि यह विचार हमारे देश में कारगर नहीं होगा। बल्कि इसके कारण हालात और बिगड़ सकते हैं क्योंकि निस्तारण प्रक्रिया में अनावश्यक देरी होगी। सरकारी बैंकों में फंसे हुए कर्ज का स्तर अधिक होने की एक वजह यह भी है कि वहां ऋण मानक सही नहीं हैं। बैड बैंक की स्थापना से बुनियादी समस्या हल नहीं होगी। इतना ही नहीं सरकारी क्षेत्र के बैंकर फंसे हुए कर्ज को चिह्नित करने से हिचकते हैं क्योंकि जांच एजेंसियों के समक्ष यह उनके खिलाफ जा सकता है। सरकार द्वारा स्थापित बैड बैंक के साथ भी यही समस्या आएगी।
इसके अलावा, बैड बैंक को स्थानांतरित परिसंपत्तियों का मूल्यांकन विवादित रहेगा। यदि परिसंपत्ति स्थानांतरण अपेक्षाकृत ऊंचे मूल्य पर हुआ तो इससे बैंकों को लेकर उचित आकलन को प्रोत्साहन घटेगा। बैड बैंक के अधिकारियों को भी शायद पेशेवर काम करने की पूरी छूट न मिले क्योंकि फंसे कर्ज का निस्तारण करने के लिए बड़ी धनराशि बट्टे खाते में डालनी होगी। विभिन्न क्षेत्रों में फंसे कर्ज से निपटने के लिए उचित प्रतिभाओं को जुटाना भी एक समस्या है। निजी क्षेत्र शायद भागीदारी का इच्छुक न हो क्योंकि वह सरकारी क्षेत्र के काम करने के तरीके को लेकर सहज नहीं। बैड बैंक की स्थापना और बैंकों की बैलेंस शीट में सुधार से राजकोषीय दबाव कम नहीं होगा। वाणिज्यिक बैंकों या बैड बैंक की परिसंपत्तियों को बट्टे खाते में डालने से सरकार को नुकसान होगा और पूंजी की आवश्यकता बढ़ेगी।
बैड बैंक का इस्तेमाल शायद केवल समस्या को टालने के लिए किया जाए। यह उन कमियों को दूर नहीं कर सकता जो कड़े निर्णयों के कारण सरकारी बैंकों में उपजी हैं। सरकारी बैंकों में व्यापक सुधार की जरूरत है ताकि वे बाजार में प्रतिस्पर्धा कर सकें। जब तक ऐसा नहीं होता सरकारी बैंक सरकारी वित्त और आर्थिक वृद्धि दोनों पर बोझ बने रहेंगे। यदि सरकार ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता (आईबीसी) को मजबूत करे तो बेहतर होगा। इससे फंसे कर्ज वाली परिसंपत्तियों का निस्तारण जल्दी होगा। आईबीसी के निलंबन की अवधि बढ़ाने से कोई मदद नहीं मिलेगी। ऐसे में सरकार के लिए बेहतर होगा कि वह बैंकिंग क्षेत्र की वास्तविक समस्याओं से निपटे। समस्या को एक संस्थान से दूसरे संस्थान में स्थानांतरित करने से हल नहीं निकलेगा।
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