इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी) का उपयोग करने वाले स्मार्ट टॉयलेट, लगातार कार्बन फाइबर पाट्र्स प्रिंट करने वाले 3 डी प्रिंटर और अंतरिक्ष अन्वेषण के लिए रॉकेट अदि कुछ ऐसी नवोन्मेषी तकनीकें थीं, जो 'प्रारंभ: स्टार्टअप इंडिया अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन' में प्रदर्शित की गईं। इसके अलावा दृष्टिïहीन व्यक्तियों का जीवन बदलने की क्षमता रखने वाले ऐप, ईंट बनाने वाली चलती फिरती मशीनें, मधुमेह नियंत्रण में मदद करने वाला कटहल पाउडर और बायोडिग्रेडेबल पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (पीपीई) सूट भी इस सम्मेलन में प्रदर्शित किए गए।
इन स्टार्टअप ने अपने उत्पादों एवं सेवाओं को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं शीर्ष व्यापार अधिकारियों, सरकारी अधिकारियों तथा निवेशक रूपी दर्शकों के सामने पेश किया।
प्रधानमंत्री मोदी ने स्टार्टअप संस्थापकों को संबोधित करते हुए कहा, 'युवाओं की ऊर्जा एवं सपने बहुत बड़े हैं। आप सभी इसके उत्कृष्ट उदाहरण हैं। यह आत्मविश्वास वैसा ही बना रहना चाहिए जैसा अभी है। स्टार्टअप की सीमाओं के बारे में विचार करें। इनमें कार्बन 3डी प्रिंटिंग, सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल, ई-टॉयलेट, बायोडिग्रेडेबल पीपीई किट और दृष्टिबाधितों के लिए तकनीक शामिल हैं। आपके यह स्टार्टअप भविष्य को बदलने का अहसास देती हैं। यह एक बहुत बड़ी शक्ति है।'
इनमें शामिल एक कंपनी है, दिनेश कनगराज की फैबहेड्स, जो कार्बन फाइबर प्रिंटिंग क्षमताओं के साथ स्व-विकसित 3 डी प्रिंटर तैयार करती है। चेन्नई की यह कंपनी कई ऐप्लिकेशन उपलब्ध करा रही है। उदाहरण के लिए, लंबी दूरी तक उड़ान भरने वाले ड्रोन के लिए उसकी बैटरी के साथ साथ ड्रोन का वजन अहम भूमिका निभाता है। कार्बन फाइबर बॉडी वाले ड्रोन उच्च शक्ति एवं कठोरता होने के साथ ही कम वजन के हो सकते हैं। मिश्रित उत्पादों एवं नवीन विनिर्माण प्रौद्योगिकियों के डिजाइन में अपनी विशेषज्ञता के साथ, फैबहेड्स देश की अग्रणी ड्रोन कंपनियों के लिए पसंदीदा भागीदार बन रही है। यह अपनी एक सहायक कंपनी के माध्यम से भारतीय नौसेना को भी ड्रोन की आपूर्ति कर रही है। फेबहेड्स के संस्थापक एवं भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के पूर्व इंजीनियर कनगराज कहते हैं, 'आप इस बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि यह कार्बन फाइबर ड्रोन केवल एक दिन में बनाया जा सकता है, जबकि पारंपरिक विनिर्माण प्रक्रिया का उपयोग करके ड्रोन बनाने में लगभग 4-5 दिन लगते हैं।'
भोपाल में आशुतोष गिरि ने फ्रेश रूम की स्थापना की है, जो एक प्रौद्योगिकी संचालित स्वच्छता क्षेत्र से जुड़ी स्टार्टअप है। यह 'भुगतान करो, उपयोग करो एवं रिडीम पॉइंट हासिल करो' के मॉडल पर चलता है। फ्रेश रूम टॉयलेट को साफ, ताजा एवं कीटाणुरहित रखने के लिए इंसानों पर निर्भर होने के बजाय इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी) एवं क्लाउड तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है। सार्वजनिक शौचालयों में स्वच्छता के मुद्दे का ख्याल रखने के साथ-साथ फ्रेश रूम में अपने उपयोगकर्ता के सामान की देखभाल करने का वादा किया है। यह ऐप निकटतम सार्वजनिक शौचालय का पता लगाने के साथ उसके खुलने का समय, पहुंच, पार्किंग और बेबीकेयर जैसी अन्य सुविधाएं भी उपलब्ध कराता है। गिरि का कहना है कि ये स्मार्ट शौचालय हर साल 40 फीसदी पानी बचा सकते हैं। उन्होंने साल 2024 तक 5,000 ऐसे स्मार्ट शौचालय बनाने का लक्ष्य रखा है।
एक अन्य उद्यमी गौरव मित्तल ने आई-डी का प्रदर्शन किया, जो बेंगलूरु स्थित स्टार्टअप जिंजरमाइंड्स टेक्नोलॉजीज द्वारा विकसित कृत्रिम मेधा (एआई) तकनीक संचालित ऐप है। यह दृष्टिबाधितों को चलने में मदद करने, वस्तुओं की पहचान करने और उनके स्मार्टफोन की सहायता से संदेश पढऩे में मदद करता है। यह दृष्टिïहीनों के लिए 'सिरी' की तरह है जो उन्हें एक स्वतंत्र जीवन जीने में मदद करता है। जब दृष्टिहीन व्यक्ति इस ऐप को खोलते है, तो यह उन्हें अपने दैनिक कार्यों में मदद करने के लिए विभिन्न विकल्पों के बारे में बताता है। कंपनी ने दृष्टिïहीनों की सहायता के लिए पहनने योग्य उत्पाद भी विकसित किए हैं। यदि कोई उपयोगकर्ता अखबार पढऩा चाहता है, तो वह इसे फोन के माध्यम से स्कैन कर सकता है और ऐप उसे पढ़ेगा। यह सभी प्रमुख भारतीय भाषाओं को सपोर्ट करता है। आई-डी के 160 से अधिक देशों में 70,000 से अधिक दृष्टिïहीन उपयोगकर्ता हैं।
हैदराबाद के पवन कुमार चंदना ने अपने स्टार्टअप 'स्काईरोट एयरोस्पेस' का प्रदर्शन किया, जो कई तरह के रॉकेटों का निर्माण कर रही है। यह अंतरिक्ष के लिए उत्तरदायी, विश्वसनीय एवं आर्थिक रूप से सस्ती प्रौद्योगिकियों का निर्माण कर रही है। यह कंपनी एक ऐसे भविष्य की कल्पना करती है जहां अंतरिक्ष का सफर किसी हवाई उड़ान की तरह नियमित, विश्वसनीय एवं सस्ता हो। हाल ही में, स्काईरोट ने एक ठोस प्रणोदन रॉकेट चरण (जिसका नाम कलाम -5 है) का सफलतापूर्वक परीक्षण किया है। यह भारत में पहली बार है जब किसी निजी कंपनी ने एक पूर्ण ठोस प्रणोदन रॉकेट चरण का सफलतापूर्वक डिजाइन, विकास एवं परीक्षण किया है। स्काईरोट की स्थापना भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के रॉकेट डिजाइन सेंटर के पूर्व इंजीनियरों ने की है। चंदना कहते हैं, 'हम उन्नत रॉकेट का निर्माण कर रहे हैं, जिसे एक दिन के भीतर तैयार किया जा सके और उपग्रहों को अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया जा सके।'
हरियाणा के सोनीपत निवासी सतीश कुमार और विलास चिकारा ने एसएनपीसी मशीन्स द्वारा विकसित ईंट बनाने वाली एक चलती फिरती मशीन का प्रदर्शन किया। यह एक वाहन की तरह चलती है और ईंटें बिछाती है और भ_ा मालिकों को अपनी आवश्यकताओं के अनुसार कहीं भी ईंट बनाने की स्वतंत्रता देती है। इस मशीन की उत्पादन क्षमता 12,000 ईंट प्रति घंटा है। यह मानव और अन्य मशीनों की तुलना में उत्पादन लागत को आधे से भी कम करने में सक्षम है। इससे बनाई गई ईंटें पारंपरिक ईंटों की तुलना में तीन गुना मजबूत हैं और इसे बनाने में अन्य तरीकों की तुलना में बहुत कम पानी की आवश्यकता होती है। चिकारा का कहना है कि इस मशीन का इंटरनेट ऑफ थिंग्स तकनीक का उपयोग करके प्रबंधन हो सकता है।
कोविड -19 महामारी के खिलाफ लड़ाई में, नोएडा स्थित आरना बायोमेडिकल प्रोडक्ट्स के डॉ.पवन मेहरोत्रा ने एक समग्र, डिस्पोजेबल और पुन:प्रयोज्य पीपीई किट का प्रदर्शन किया। इसका उद्देश्य स्वास्थ्य पेशेवरों, सुरक्षा गार्डों, नगरपालिका एवं सफाई कर्मचारियों आदि संवेदनशील वातावरण में रहने वाले लोगों की रक्षा करना है। इसमें सांस लेने में आसानी होती है, जिससे इसे पहनने में असुविधा महसूस नहीं होती। इसके अलावा, कोई भी व्यक्ति इस पीपीई किट का उपयोग करके बायोमेडिकल कचरे को कम कर सकता है और इसका अन्य उत्पाद बनाने के लिए पुनर्नवीनीकरण किया जा सकता है।