देश में कोविड-19 के लिए व्यापक टीकाकरण कार्यक्रम शुरू हो गया है। पहले चरण में स्वास्थ्य कर्मियों को प्राथमिकता दी जा रही है। पहले दिन ऐसे करीब दो लाख कर्मियों को टीका लगाया गया। हालांकि कार्यक्रम की निगरानी और टीकाकरण की जरूरत वाले लोगों के पंजीकरण के लिए बनाए गए डिजिटल प्लेटफॉर्म में दिक्कतें सामने आई हैं। अन्य देशों से इतर भारत ने शुरुआती टीके सबसे ज्यादा जोखिम वाले लोगों यानी बुजुर्गों के लिए नहीं रखे हैं। शायद इसकी वजह बुजुर्गों को चिह्नित करने में दिक्कतें हैं। वजह जो भी हो, लेकिन यह साफ है कि प्राथमिकता को लेकर विवाद जल्द पैदा होने के आसार हैं। पहले ही बहुत से क्षेत्र मांग कर रहे हैं कि उनके कर्मचारियों की 'आवश्यक' के रूप में गिनती हो और उन्हें प्राथमिकता में ऊपर रखा जाए।
सरकार में यह लॉबीइंग दुर्भाग्यपूर्ण है, लेकिन इसे संभावित माना जाना चाहिए। इस कतार की धक्का-मुक्की को कम करने का एकमात्र तरीका यह सुनिश्चित करना है कि जन टीकाकरण के लिए एक मजबूत निजी क्षेत्र का चैनल विकसित किया जाए। बहुत सी कंपनियों ने अपने कर्मचारियों के लिए टीके खरीदने और लगाने की मंशा जताई है। सरकार ने अभी इस पर कोई फैसला नहीं लिया है। लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि इन कंपनियों के प्रयासों को सहमति देने से सरकारी व्यवस्था पर दबाव घट जाएगा, टीकाकरण क्षमता में इजाफा होगा, लागत घटेगी और अर्थव्यवस्था जल्द सामान्य स्थिति में लौट पाएगी। सरकार को ज्यादा देरी नहीं करनी चाहिए और नियामक की मंजूरी मिलने के बाद सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया और फाइजर को टीका खरीद के बड़े करार करने की मंजूरी देनी चाहिए। कंपनी सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) की धनराशि को टीकाकरण में इस्तेमाल करने की मंजूरी के आग्रहों को स्वीकार करना चाहिए।
कुल मिलाकर टीकाकरण कार्यक्रम के सरकार के रोडमैप को लेकर कुछ भ्रम बना हुआ है। किस चरण में कितने लोगों, कितनी प्राथमिकता और किसकी लागत पर टीकाकरण होगा? यह कार्यक्रम शुरू किया जा चुका है, लेकिन इन सवालों के अभी संतोषजनक जवाब नहीं आए हैं। अगले कुछ महीनों में तेजी से टीकाकरण और बुजुर्गों एवं पहले ही किसी बीमारी वाले लोगों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। दुर्भाग्यवश सरकार ने वे कदम नहीं उठाए हैं, जो वह इस प्रक्रिया को तेज करने के लिए उठा सकती थी। उदाहरण के लिए यह अभी तक टीका बनाने वाली कंपनियों को कानूनी सुरक्षा देने के वैश्विक कदमों का भी अनुसरण करने में नाकाम रही है ताकि उन्हें मामूली आधार पर मुकदमों से सुरक्षा दी जा सके। टीका विनिर्माताओं का कहना है कि यह तेजी से टीकाकरण के लिए जरूरी है और विनिर्माताओं के लिए हर्जाना वाजिब होना जरूरी है। अमेरिका और ब्रिटेन जैसे बहुत से देश पहले ही आंशिक हर्जाने पर व्यय कर चुके हैं।
आखिर में, टीकों के प्रति लोगों के भरोसे से जुड़े सवालों को दूर करते रहना होगा। सरकार भारत बायोटेक के कोवैक्सीन टीके के मामले में लोगों को भरोसा दे पाने में नाकाम रही है जिसके तीसरा चरण का परीक्षण अभी पूरा नहीं हुआ है। संयोग की बात है कि एस्ट्राजेनेका-ऑक्सफर्ड द्वारा विकसित टीके की तुलना में कोवैक्सीन टीके की उपलब्ध खुराकें कम हैं। फिर भी आशंकाओं को बने रहने की इजाजत नहीं दी जा सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अटकलों पर भरोसा करने को लेकर ठीक ही चेताया है। सरकार एवं उसके नियामकों को भी अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए। टीकों के किसी भी प्रतिकूल असर की विधिवत एवं पारदर्शी जांच की जाए और टीके के सुरक्षित होने के बारे में नियमित सूचना दी जाए। सरकार नोटबंदी जैसे व्यापक अभियान पर देशव्यापी संकल्पशक्ति का आह्वान कर अपनी क्षमता दिखा चुकी है। कोविड टीकाकरण में उससे कमतर राजनीतिक पहल से बात नहीं बनेगी।