भारतीय रेल वित्त निगम (आईआरएफसी) रेल मंत्रालय की वित्तीय जरूरतें पूरी करने वाली सरकार के स्वामित्व वाली इकाई है। गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (एनबीएफसी) के तौर पर स्थापित आईआरएफसी रेल मंत्रालय के लिए एक निजी वित्तीय कंपनी के तौर पर काम करती है और यह पावर फाइनैंस कॉरपोरेशन और रूरल इलेक्ट्रिफिकेशन कॉरपोरेशन जैसी अन्य सरकार-संचालित एनबीएफसी से काफी अलग है। बाद वाली दो कंपनियां केंद्र और राज्य सरकार की परियोजनाओं का वित्त पोषण करती हैं और निजी विद्युत संयंत्रों ने उन्हें संबद्घ क्षेत्रों में दबाव के संदर्भ में कमजोर बना दिया है।
निजी वित्त प्रदाता होने और इन्फ्रास्ट्रक्चर वित्त कंपनी के तौर पर वर्गीकृत आईआरएफसी को कई रियायतें हासिल हैं जिनसे उसका लागत अनुकूल मॉडल को मदद मिली है। 25-26 रुपये प्रति शेयर और वित्त वर्ष 2021 की अनुमानित बुक वैल्यू के एक गुना मूल्यांकन पर आईआरएफसी का आईपीओ निवेशकों को लिए एक सुरक्षित दांव है।
बिजनेस मॉडल
आईआरएफसी का रेल मंत्रालय में अच्छा योगदान है। उसका प्रमुख व्यवसाय शेयर परिसंपत्तियों के अधिग्रहण का वित्त पोषण करना है, जिसमें पावर्ड (इलेक्ट्रिक) और अनपावर्ड व्हीकल्स, दोनों शामिल हैं, जैसा कि आईआरएफसी और रेल मंत्रालय के बीच लीज समझौते में कहा गया है। यह समझौता रेल इन्फ्रास्ट्रक्चर परिसंपत्तियों की लीजिंग और भारत रसरकार की सरकारी परियोजनाओं के वित्त पोषण से जुड़ा है। कंपनी एमओआर के तहत अन्य इकाइयों और जरूरत के आधार पर भारत सरकार को भी उधारी मुहैया कराती है। आईआरएफसी 30 वर्षों की पट्टïा अवधि के साथ रॉलिंग स्टॉक परिसंपत्तियों के वित्त पोषण के लिए एक वित्तीय लीजिंग मॉडल पर अमल करती है।
पहले 15 वर्षों में, प्राइमरी लीज अवधि के तौर पर चर्चित परिसंपत्तियों को प्रत्येक वित्त वर्ष के अंत में आईआरएफसी के साथ परामश में रेल मंत्रालय द्वारा औसत निर्धारित उधारी लागत और मार्जिन के हिसाब से लीज पर दिया जाता है। उधारी की भारांक औसत लागत आईआरएफसी द्वारा किए गए खर्च के लिए कीमत है, जिसमें विदेशी मुद्रा में हेजिंग लागत और विदेशी मुद्रा नुकसान (या लाभ) शामिल हैं। सेकंडरी 15 वर्षीय लीज अवधि में, आईआरएफसी मामूली किराया दर वसूलती है, जिसके बाद परिसंपत्तियां 30 साल की अवधि पूरी हेने पर एमओआर को स्थानांतरित की जाती हैं। इसलिए आईआरएफसी की राजस्व वृद्घि लीज अनुबंधों में वृद्घि की रफ्तार पर केंद्रित है। वित्त वर्ष 2020 में, आईआरएफसी ने रेल मंत्रालय के लिए खरीदे गए और लीज पर दिए गए रेल डिब्बों का 76 प्रतिशत वित्त पोषित किया और भारतीय रेलवे को 71,392 करोड़ रुपये (पूंजीगत खर्च का 48.22 प्रतिशत) का वित्त प्रदान किया।
आईआरएफसी अपने राजस्व का 79 प्रतिशत हिस्सा लीज रेंटल और 21 प्रतिशत हिस्सा ब्याज आय, अन्य सरकारी इकाइयों को उधारी आदि के जरिये हासिल करती है। रेल मंत्रालय (जो आईआरएफसी को छमाही आधार पर भुगतान करता है) की जरूरतें पूरी करने से जुड़ा व्यवसाय गैर-निषदित आस्तियां नहीं हैं और निवेशकों के लिए ध्यान देने वाला पहलू है।
आईआरएफसी की तीन वर्षीय औसत उधारी लागत 7.03 प्रतिशत है। जहां कंपनी की सॉवरिन रेटिंग से कम लागत पर कोष तक पहुंच बनाने में मदद मिली है, वहीं आईआरएफसी के चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक अमिताभ बनर्जी का कहना है कि उसकी परिचालन क्षमता ने भी अहम योगदान दिया है। हालांकि शुद्घ ब्याज मार्जिन 1.4 प्रतिशत है जो अन्य पीएसयू एनबीएफसी के 3.5 प्रतिशत के मकाबले काफी कम है। इसी तरह पूंजी पर प्रतिफल (आरओई) ऐतिहासिक रूप से 11-12 प्रतिशत के दायरे में रहा है, जो निजी एनबीएफसी के मुकाबले फिर से काफी नीचे आ गया है। स्पष्टï है कि आईआरएफसी कम जोखिम कम प्रतिफल वाली श्रेणी में आती है, हालांकि उसकी श्रेष्ठï मजबूत वृद्घि और प्रतिफल को दर्शाती है।
जोखिम कारक
आईआरएफसी का कॉस्ट-प्लस मॉडल उसके लिए कारगार है, क्योंकि उसे सरकार से न्यूनतम वैकल्पिक कर, लीज रेंटल पर भारतीय लेखा मानकों पर अमल जैसी रियायतों और परिसंपत्ति वर्गीकरण के लिए बैंकिंग नियमों के तहत आय पहचान तथा आय वर्गीकरण (आईआरएसी) मानकों से मदद मिली है। यदि ये रियायतें उपलब्ध न होतीं, तो यह आंकड़ा अलग हो सकता था, लेकिन इसकी कम ही संभावना है कि ये रियायतें बदलेंगी, क्योंकि आईआरएफसी एमओर के लिए अनुकूल बनी रहेगी।
रेलवे अब तक सरकार के लिए एक महत्वपूर्ण क्षेत्र रहा है। लेकिन हालात में बदलाव से आईआरएफसी के लिए तस्वीर बदल सकती है। सरकार काफी हद तक निजीकरण के पक्ष में है जिससे इस क्षेत्र को निजी कंपनियों के लिए खोला जा रहा है जिससे एमओआर तथा आईआरएफसी का दबदबा घट सकता है।