आवास वित्त कंपनी डीएचएफएल के 90,000 करोड़ रुपये के ऋण समाधान से उसके ऋणदाताओं को अगले पांच वर्षों के दौरान 33 फीसदी बकाये का भुगतान होगा। कंपनी पर भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) का सबसे अधिक बकाया है। एसबीआई को अपने 10,000 करोड़ रुपये के बकाये में से 3,300 करोड़ रुपये प्राप्त होंगे। आमतौर पर ऋण शोधन अक्षमता एवं दिवालिया मामलों में औसतन 45 फीसदी रकम की वसूली हो जाती है। लेकिन डीएचएफएल मामले में एसबीआई को कहीं अधिक नुकसान उठाना पड़ेगा।
पीरामल कंपनी के लेनदारों को 12,700 करोड़ रुपये का भुगतान करने के अलावा ऋणदाताओं को बॉन्ड की पेशकश करेगी जिस पर अगले पांच वर्षों के दौरान हर साल 6.75 फीसदी की दर से ब्याज मिलेगा। कंपनी के एक करीबी सूत्र ने कहा, 'मौजूदा परिस्थितियों को देखते हुए लेनदारों के लिए यह यह सबसे अच्छा सौदा है क्योंकि कंपनी दिसंबर 2019 से ही एनसीएलटी में है।'
कुछ बैंकों ने डीएचएफएल पर अपने बकाये के लिए प्रावधान करना शुरू कर दिया है। ऐसे में किसी भी तरह के सुधार का असर मार्च तिमाही के बाद उनके मुनाफे पर दिखेगा। यदि किसी ऋण खाते को गैर-निष्पादित आस्तियों (एनपीए) की श्रेणी में रखा जाता है तो उसके लिए न्यूनतम 15 फीसदी प्रावधान (रकम अलग रखने) की आवश्यकता होती है।
डीएचएफएल पर बैंकों का करीब 38,000 करोड़ रुपये का बकाया है, जबकि शेष बकाया बॉन्डधारकों, सावधि जमाधारकों और यूपी आधारित भविष्य निधि का है। कंपनी पर सावधि जमाधारकों का बकाया 15,000 करोड़ रुपये है और इससे उनके निवेश में भारी गिरावट दिखेगी। इस समाधान योजना से डीएचएफएल के मौजूदा शेयरधारकों को शून्य रिटर्न मिलेगा क्योंकि पीरामल डीएचएफएल का विलय अपने मौजूदा वित्तीय सेवा कारोबार के साथ करने की योजना बना रही है। सार्वजनिक क्षेत्र के दो बैंकों- एसबीआई और यूनियन बैंक ऑफ इंडिया- ने डीएचएफएल खातों के लिए दूसरी तिमाही में ही प्रावधान कर दिया था। जबकि अन्य लेनदार दिसंबर तिमाही से अपने डीएचएफएल खाते के लिए प्रावधान कर सकते हैं।