शेयर बाजार में हालिया तेजी का क्या है गणित? | |
देवाशिष बसु / 01 13, 2021 | | | | |
कारोबारी और निवेशक समुदाय के मन में इस समय सबसे बड़ी पहेली यही है कि इस गहन आर्थिक मंदी के बाद शेयर बाजार अपने उच्चतम स्तर तक कैसे पहुंचेंगे? हमें तथ्यों के आधार पर पड़ताल करनी होगी: कोविड-19 के कारण दुनिया भर में आर्थिक सामाजिक और स्वास्थ्य संबंधी संकट उत्पन्न हुआ। इस वायरस के बारे में किसी को कोई खास जानकारी नहीं थी। जीवन मानो रुक सा गया। कई छोटे कारोबार तबाह हो गए। बड़े कारोबारियोंं ने कहा कि उन्हें कुछ अंदाजा नहीं है और वे दिशाहीन ढंग से आगे बढ़ रहे हैं। दुनिया भर में वृद्धि दर में गिरावट आई। मार्च में आई गिरावट के बाद अप्रैल और मई में शेयर बाजार स्थिर हुए। परंतु सबका यही कहना था कि यह तूफान के पहले की शांति है। मुझ समेत हर किसी को लग रहा था कि अभी और बुरा होना बाकी है।
परंतु चमत्कारिक रूप से बाजार में सुधार देखने को मिला और उनमें तेजी आई। अब हालात यह हैं कि हम समझ नहीं पा रहे कि इस तेजी वाले बाजार से कैसे निपटा जाए। कुछ लोग अभी भी मानते हैं कि यह सारी तेजी अटकलबाजी पर आधारित है और जल्दी ही आर्थिक हकीकत के सामने आने के बाद शेयर कीमतों में गिरावट आएगी। परंतु सच कहें तो कोई निश्चित नहीं है कि आगे क्या परिस्थितियां बनेंगी। आमतौर पर हम किसी अवधारणा के बारे में उसके समाप्त होने के बाद जवाब तैयार कर लेते हैं लेकिन इस तेजी का सबसे दिलचस्प पहलू यही है कि इस मामले में 2020 दूरदूर तक चर्चा में नहीं है।
अतीत के रुझानों का क्या? प्रसिद्ध दार्शनिक जॉर्ज सांतयाना ने कहा था, 'जो अतीत को याद नहीं रखते हैं, वे उसे दोहराने के दोषी होते हैं।' परंतु यह तब सही है जब अतीत अपने आपको ठीक पहले की तरह दोहराए। शेयर बाजार में ऐसा नहीं होता। ऐसे में मार्क ट्वैन की टिप्पणी विचारणीय है। उन्होंने कहा था, 'इतिहास स्वयं को कभी पूरी तरह नहीं दोहराता, उसमें बदलाव रहता है।' पहले मैं भी इस बात पर यकीन करता था लेकिन देखिए 2020 में क्या हुआ? एक वर्ष के भीतर निफ्टी मार्च में 7,522 के निचले स्तर पर पहुंचा और फिर दिसंबर में 14,000 के उच्चतम स्तर पर भी। छह महीने के भीतर बाजार अत्यधिक निराशा से उबरकर तेजी पर आ गया और उसके अगले तीन माह तो बाजार में अत्यधिक तेजी रही। इससे पहले भारतीय शेयर बाजार कभी गिरावट से इतनी तेज गति से नहीं उबरे थे। सन 1992, 2000 और 2008 की गिरावट को याद कीजिए, बाजार ने कभी इतनी तेज वापसी नहीं की थी। हर बार बाजार को अपने पिछले बेहतर प्रदर्शन को पीछे छोडऩे में कई वर्ष का समय लगा। परंतु इस बार ऐसा नहीं हुआ। अंतरराष्ट्रीय बाजारों का भी यही हाल रहा। वहां भी पहले गिरावट और फिर तेजी आई। जबकि इस बार बाहरी देशों में हालात कहीं अधिक खराब थे। किसी के लिए भी यह समझा पाना मुश्किल है कि आर्थिक मंदी के दौर में बाजार में तेजी कैसे आ रही है। यह बहुत रहस्यमय और अजीब है।
घरेलू और विदेशी संस्थागत निवेशकों की ओर से होने वाली शुद्ध आवक में यह नजर भी आया। जब अर्थव्यवस्था की स्थिति बहुत खराब नजर आ रही थी तब भी मई माह में संस्थागत विदेशी निवेशकों से निवेश आने लगा था। जून और दिसंबर के बीच देश में आने वाला ऐसा निवेश 140,000 करोड़ रुपये का रहा। विदेशी निवेशकों ने न केवल भारत में निवेश किया बल्कि इंडोनेशिया, फिलीपींस, दक्षिण कोरिया, ताइवान, थाईलैंड और वियतनाम में भी उन्होंने धनराशि का निवेश किया। मार्च से दिसंबर तक की इस घटनाप्रधान अवधि में भारतीय पूंजी बाजार में संस्थागत निवेशकों ने 59,0000 करोड़ रुपये की राशि डाली। कीमतों का निर्धारण मांग और आपूर्ति से होता है। शेयरों पर भी यही बात लागू होती है। यदि खरीदार अधिक होंगे तो मांग ऊपर जाएगी। सन 2020 में यही हुआ।
प्रश्न यह है कि संस्थागत निवेशकों ने इतना अधिक निवेश क्यों किया? हम सोचते हैं कि हमें पता है शेयर कीमतें किस बात से निर्धारित होती हैं- वृहद आर्थिक माहौल और कारक जो विशिष्ट शेयरों को प्रभावित करते हैं। परंतु इस बार वृहद आर्थिक हालात अत्यधिक खराब थे और लोगों की आय का भी बहुत नुकसान हुआ था। कम से कम पहली छमाही में तो अधिकांश कंपनियों के साथ ऐसा ही हुआ। ऐसे में शेयर कीमतों में तेजी क्यों आई? कुछ लोग कहेंगे कि यह तेजी भविष्य के अनुमानों पर आधारित है। यदि तेजी अतार्किक नजर आती है तो हम हमेशा कह सकते हैं कि बाजार बेहतर भविष्य की आशा में उत्साहित है। यदि बाजार में मंदी का दौर हो तो हम कह सकते हैं कि बाजार का अनुमान है कि भविष्य बेहतर नहीं होगा। ऐसे में इस तर्क को दोनों ओर बखूबी इस्तेमाल किया जा सकता है। यह कोई ऐसी अंतर्दृष्टि नहीं है जो कोई पूर्वानुमान व्यक्त करने में काम आए।
सवाल यह भी है कि वह कौन सा सुखद भविष्य है जिसे बाजार रियायत प्रदान कर रहा है? आखिरकार कोविड-19 के आगमन के पहले भी कमजोर आर्थिक वृद्धि नजर आ रही थी। प्रश्न यह है कि बीते नौ महीनों में ऐसा क्या घटित हुआ जिसे लेकर हम बहुत अधिक आशान्वित हों? कंपनियों ने अपनी लागत में भारी कटौती की है हालांकि यह ऐसे किया गया है जिससे उनका कारोबार प्रभावित नहीं हो। परंतु क्या यह स्थायी हो सकता है? हम नहीं जानते। एक बार कोरोनावायरस का खतरा दूर होने के बाद पुरानी प्रवृत्तियां दोबारा सर उठा सकती हैं। लागत में इजाफा हो सकता है लेकिन शायद तब राजस्व में भी इजाफा होगा। कई महीनों तक लागू रहे लॉकडाउन और प्रतिबंधों से मुक्त होने के बाद खर्च में भी इजाफा हो रहा है और यह आगे और बढ़ेगा। शायद आने वाले समय में खपत में इजाफे का अनुमान बाजार को गति प्रदान कर रहा है। हकीकत क्या है यह किसी को नहीं पता। पूर्वानुमान लगाना कभी सही तो कभी गलत साबित हो सकता है। फिलहाल तो अनुमान लगाने का काम अपने ही जोखिम पर किया जाना चाहिए।
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