पारदर्शिता आवश्यक | संपादकीय / January 13, 2021 | | | | |
कोविड-19 महामारी के कारण आर्थिक गतिविधियों में भारी उथलपुथल पैदा हुई और इसने राजस्व संग्रह को बहुत गहरे तक प्रभावित किया। यही कारण है कि केंद्र सरकार ने चालू वर्ष में उधारी का लक्ष्य 50 प्रतिशत बढ़ाकर 12 लाख करोड़ रुपये कर दिया है। यह सही है कि विभिन्न गतिविधियों पर लगे प्रतिबंध शिथिल होने के साथ आर्थिक गतिविधियां सुधरी हैं और कर संग्रह में भी सुधार हुआ है लेकिन माना जा रहा है कि सरकार अतिरिक्त राशि का इस्तेमाल व्यय को बढ़ावा देने के लिए करेगी। इससे सुधार की प्रक्रिया को गति मिलेगी। अगले वित्त वर्ष में राजस्व में अहम सुधार देखने को मिलेगा। हालांकि यह सुधार काफी कम आधार से होगा और सरकार को आशा होगी कि राजकोषीय सुदृढ़ीकरण की प्रक्रिया शुरू हो सकेगी। चालू वर्ष के दौरान केंद्र का बजट घाटा सकल घरेलू उत्पाद के 6 फीसदी के स्तर से अधिक रहने का अनुमान है। एक ओर जहां सरकार से यह आशा की जाएगी कि वह अन्य चीजों के अलावा वित्तीय स्थिति दुरुस्त करेगी, वहीं उसे टीकाकरण की लागत भी मुहैया करानी होगी। माना जा रहा है कि इस काम में 65,000 करोड़ रुपये की लागत आएगी। जानकारी के मुताबिक सरकार इस व्यय की कम से कम आंशिक भरपाई के लिए आगामी बजट में उपकर या अधिभार लगाने पर विचार कर रही है।
अर्थव्यवस्था की हालत को देखते हुए अधिकांश आर्थिक कारक उच्च कर देनदारी के पक्ष में नहीं होंगे। बहरहाल, यह भी सही है कि मौजूदा हालात में जबकि घाटे और सार्वजनिक ऋण में भारी इजाफा हुआ है, सरकार वित्तीय स्थिति पर व्यापक आर्थिक असर को कम करने के लिए अतिरिक्त संसाधन जुटाना चाहेगी। ऐसे में सरकार का उपकर या अधिभार लगाकर टीकाकरण कार्यक्रम के लिए राशि जुटाना समझ में आता है।
बहरहाल, सरकार को ऐसा करते समय कई बातों का ध्यान रखना चाहिए। पहली बात तो यह कि उसे इस बात का स्पष्ट अनुमान पेश करना होगा कि टीकाकरण में कितना खर्च आएगा। सरकार को पूरी आबादी को टीका लगाने की जरूरत नहीं है और जो लोग टीकाकरण का खर्च वहन कर सकते हैं उनके लिए निजी क्षेत्र को टीकाकरण कार्यक्रम चलाने की इजाजत देनी चाहिए। इससे सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली पर दबाव कम होगा। संभावित लाभ को देखते हुए निजी क्षेत्र की कई कंपनियां अपने कर्मचारियों के टीकाकरण का खर्च वहन करने के लिए तैयार हैं। इससे कारखानों में कर्मचारी बढ़ेंगे और उनकी क्षमता में सुधार होगा। दूसरी बात, यदि केंद्र सरकार टीके की लागत का भार वहन करती है तो भी इसे राज्यों में अंजाम दिया जाएगा। इसमें काफी खर्च होगा। हालांकि यह आवश्यक नहीं है कि केंद्र सरकार उपकर या अधिभार संग्रह को राज्यों के साथ साझा करे लेकिन यदि इस मामले में वह राज्यों की वित्तीय मदद करती है तो अच्छा होगा। यह सहायता विभिन्न राज्यों की आवश्यकता को देखते हुए की जानी चाहिए। एक तथ्य यह भी है कि राज्य स्तर पर राजस्व को गहरी क्षति पहुंची है और उनकी वित्तीय स्थिति भी दबाव में है।
तीसरा, सरकार को यह स्पष्ट कर देना चाहिए कि यह अतिरिक्त देनदारी केवल एक बार थोपी जानी चाहिए। यह स्पष्ट है कि सरकार को स्वास्थ्य क्षेत्र में व्यय बढ़ाने की आवश्यकता है लेकिन वह समग्र व्यय बजट से आनी चाहिए। उपकर या अधिभार से आने वाले अतिरिक्त राजस्व का इस्तेमाल केवल टीकाकरण के काम में होना चाहिए। जैसा कि देश के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने पहले भी कहा है, सरकार की यह प्रवृत्ति होती है कि वह विभिन्न मदों के लिए उपकर के रूप में जुटाई गई राशि का इस्तेमाल सामान्य व्यय की भरपाई में करे। इस बार ऐसा नहीं होना चाहिए क्योंकि इससे उद्देश्य भी प्रभावित होगा और जनता का विश्वास भी। ऐसे में पारदर्शिता आवश्यक है।
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