डीएचएफएल का सफल समाधान बैंकिंग सेक्टर के लिए जरूरी | हंसिनी कार्तिक / मुंबई January 12, 2021 | | | | |
महज कुछ दिनों में ही हमें यह पता चल जाएगा कि प्रतिष्ठित आवास वित्त प्रदाता दीवान हाउसिंग फाइनैंस कॉरपोरेशन (डीएचएफएल) के व्यवसाय के लिए बोली में किसे सफलता मिलेगी। डीएच एफएल के प्रशासक और इच्छुक निवेशकों के साथ बातचीत कर रहे बैंकों के लिए, बोली प्रक्रिया का परिणाम यह आश्वस्त करने के लिए महत्वपूर्ण होगा कि व्यवस्थागत जोखिम (जिनसे उद्योग को सितंबर 2018 से जूझना पड़ा) समझ से बाहर नहीं हैं।
इन्फ्रास्ट्रक्चर लीजिंग ऐंड फाइनैंशियल सर्विसेज (आईएलऐंडएफएस) संकट के बाद कोषों की लागत वृद्घि का सामना करने वाली डीएचएफएल शुरुआती कंपनियों में शुमार थी। तब से, इस ऋणदाता को अपन स्थिति मजबूत बनाने का मौका नहीं मिला। वह ऐसी एकमात्र गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (एनबीएफसी) भी है जिसके बकाया ऋणों को 7 जून, 2019 के आरबीआई सर्कुलर के तहत पुनर्गठन के लिए शामिल किया गया था। पुनर्गठन पर सहमति नहीं होने की वजह से इसे नवंबर 2019 में केंद्रीय बैंक द्वारा दिवालिया प्रक्रिया के लिए भेज दिया गया था। स्पार्क कैपिटल के अभिनेश विजयराज ने डीएचएफएल को कई मायने में 'टेस्ट केस' करार दिया है।
इसके अलावा, एनबीएफसी के लिए बैंक ऋणों का योगदान तेजी से बढ़ा है, खासकर 'ए' रेटिंग के लिए, जिससे समाधान योजना बेहद महत्वपूर्ण है। आईएलऐंडएफएस संकट पैदा होने के बाद से, एनबीएफसी की देनदारियों के लिए बैंक ऋणों का योगदान 25 प्रतिशत से बढ़कर सितंबर 2020 में 31.2 प्रतिशत हो गया।
दूसरी तरफ, बाजार उधारी (बॉन्ड बाजार की योजनाओं) पर एनबीएफसी की निर्भरता भी बढ़ रही है। यह आंकड़ा सितंबर 2020 में 42.7 प्रतिशत था, जो जून के 41.8 प्रतिशत से ज्यादा है। इसमें आंशिक ऋण गारंटी योजना, टारगेटेड लॉन्ग-टर्म रीपो ऑपरेशन (टीएलटीआरओ) जैसे उपायों से मदद मिली है।
विश्लेषकों का कहना है कि एनबीएफसी द्वारा मजबूत दीर्घावधि फंडों पर ध्यान दिए जाने से बॉन्डों और बैंक सुविधाओं पर निर्भरता बढ़ सकती है। बैंक टीएलटीआरओ सेगमेंट में भी सक्रिय भागीदार रहे हैं और इसलिए, यह उनके अनुकूल है कि एनबीएफसी आगामी आकस्मिक व्यय से बचने के लिए एक समाधान तंत्र विकसित करें।
अन्य महत्वपूर्ण पहलू सुधार की मात्रा है। आंकड़े से संकेत मिलता है कि इनसॉल्वेंसी ऐंड बैंगक्रप्सी कोड (आईबीसी) से रिकवरी को बढ़ावा मिला है, जो वसूली की मात्रा के संदर्भ में सामान्य रिकवरी प्रक्रिया के मुकाबले दोगुना प्रभावी है।
डीएचएफएल के मामले में, जहां कई बैंकों ने अपने ऋणों को बट्टे खाते में डाला है, वहीं सफल बोली पर संभावित रिकवरी न्यूनतम 35 प्रतिशत हो सकती है, जो 7 प्रतिशत के औसत को देखते हुए अब तक सर्वाधिक रिकवरी भी हो सकती है। विजयराज का मानना है कि इससे क्षेत्र के लिए धारणा मजबूत बनाने में मदद मिल सकती है।
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