कृषि कानूनों के अमल पर रोक | संजीव मुखर्जी और एजेंसियां / January 12, 2021 | | | | |
सर्वोच्च न्यायालय ने अगले आदेश तक तीनों कृषि कानूनों के अमल पर आज रोक लगा दी। इसके साथ ही उसने कृषि कानूनों पर आंदोलनकारी किसानों और सरकार के बीच जारी गतिरोध को दूर करने के लिए चार सदस्यीय समिति का गठन किया है।
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित चार सदस्यीय समिति में प्रतिष्ठित कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी, इंटरनैशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट (आईएफपीआरआई) में दक्षिण एशिया केपूर्व निदेशक डॉ. प्रमोद जोशी, भारतीय किसान यूनियन और अखिल भारतीय किसान समन्वय समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष भूपिंदर सिंह मान और शेतकरी संगठन के अनिल घन्वत शामिल हैं।
किसान संगठनों ने अदालत द्वारा कृषि कानूनों के क्रियान्वयन पर रोक लगाने के कदम का स्वागत किया है। लेकिन कहा कि किसान संगठन जिस चीज की मांग कर रहे हैं, वह इसका समाधान नहीं है क्योंकि कानूनों का क्रियान्वयन कभी भी बहाल किया जा सकता है।
किसान संगठनों ने समिति के गठन को यह कहते हुए खारिज किया है कि इसमें शामिल लोग पहले भी तीनों कृषि कानूनों का सक्रियता से समर्थन कर चुके हैं और इसे सही ठहरा चुके हंै।
मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाले पीठ ने कहा कि अदालत द्वारा नियुक्त समिति सरकार के साथ ही साथ किसान संगठनों के प्रतिनिधियों तथा अन्य हितधारकों से बात करेगी और अपनी पहली बैठक के दो महीने के अंदर शीर्ष अदालत को इस बारे में सुझाव सहित रिपोर्ट सौंपेगी।
अंतरिम आदेश में शीर्ष अदालत ने समिति को निर्देश दिया कि वह 10 दिन के अंदर अपनी पहली बैठक आयोजित करे। समिति की बैठक नई दिल्ली में होगी। पीठ ने कहा कि समिति गठित करने का मकसद कृषि कानूनों को लेकर किसानों की शिकायतें सुनना तथा इस बारे में सरकार की राय जानना और उन सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए सुझाव देना है।
अदालत ने कहा कि तीन कृषि कानूनों - कृषक उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवद्र्घन और सुविधा) अधिनियम, 2020, आवश्यक जिंस (संशोधन) अधिनियम, 2020 और मूल्य आश्वासन तथा कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तीकरण एवं सुरक्षा) समझौता अधिनियम, 2020 पर अमल अगले आदेश तक स्थगित रहेगा।
पीठ ने कहा कि अदालत इस बात को ध्यान में रखते हुए अंतरिम आदेश पारित कर रही है कि दोनों पक्ष इसे समस्या के समाधान के लिए उचित, निष्पक्ष और अच्छी भावना के साथ लेंगे। अदालत ने शांतिपूर्ण धरना-प्रदर्शन करने और किसी तरह की अप्रिय घटना नहीं होने देने के लिए आंदोलनकारी किसानों की सराहना भी की। अदालत ने कहा, 'हम शांतिपूर्ण विरोध को नहीं दबाएंगे लेकिन हमारा मानना है कि कृषि कानूनों के अमल पर रोक लगाने का यह असाधारण आदेश कम से कम वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इस तरह के आंदोलन की उपलब्धि के तौर पर देखा जाना चाहिए। किसान संगठनों को अपने सदस्यों को वापस लौटने तथा आजीविका के काम में लगने के लिए भी समझाना चाहिए।' मामले की अगली सुनवाई आठ हफ्ते बाद होगी।
सर्वोच्च न्यायालय ने इन कृषि कानूनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने तथा दिल्ली की सीमाओं पर किसानों के विरोध प्रदर्शन से संबंधित याचिकाओं के एक हिस्से की सुनवाई के दौरान यह अंतरिम आदेश दिया है।
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