सन 1962 में चीन के आक्रमण के बाद यह पहला अवसर है जब भारत का नया वर्ष सुरक्षा के मोर्चे पर इतनी गंभीर चुनौती के साथ शुरू हुआ है। हमें पाकिस्तान से तो निपटना ही है लेकिन इधर कश्मीरी अलगाववाद नई पीढ़ी के युवाओं में भी घर कर गया है। कोविड-19 महामारी के कारण उपजे आर्थिक संकट के कारण आने वाले वर्षों में रक्षा बजट आवंटन कम होने की आशंका है। इसका असर सामान्य सैन्य गतिविधियों पर भी पड़ेगा। पूर्वी लद्दाख में गतिरोध जारी है। वहां गत मई में चीनी सेना ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पार कर भारतीय नियंत्रण वाले क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था। उनसे निपटने के लिए हमने 36,000 सैनिकों की दो टुकडिय़ां तैनात की हैं जिससे आर्थिक बोझ बढ़ा है। परंतु बदलाव दिख रहा है। गत माह बिना हो हल्ले के सेना मुख्यालय ने अपनी मैकनाइज्ड स्ट्राइक कोर में से एक की परिचालन भूमिका में बदलाव के आदेश जारी किए। अंबाला स्थित 2 कोर और भोपाल स्थित 21 कोर टैंक क्षमता संपन्न बल हैं और युद्ध के समय पाकिस्तान में भीतर तक घुसने के लिए तैयार हैं। तीसरी स्ट्राइक कोर मथुरा स्थित 1 कोर है। इसे माउंटेन स्ट्राइक कोर बनना था जो लद्दाख से चीनी क्षेत्र में हमला करती। 1 कोर की दो इन्फैंट्री डिवीजन जल्दी ही प्रशिक्षण कार्यक्रम बदल कर नई भूमिका में जाएंगी। इस बीच इस कोर की एक शाखा हिसा स्थित 33 सशस्त्र डिवीजन जो पहाड़ी जंग के लिए उपयुक्त नहीं है, उसे आरक्षित बल बनाया जाएगा। नीतिगत स्तर पर देखें तो 1 कोर में बदलाव दर असल एक ऐसे तथ्य को चिह्नित करना है जिसकी सेना लंबे समय से अनदेखी कर रही थी। तथ्य यह है कि लद्दाख में हमारी रक्षा पंक्ति चिंताजनक रूप से कमजोर रही है और यहां तत्काल फौज बढ़ाने की आवश्यकता है। वहां करीब 800 किलोमीटर लंबी एलएसी पर केवल एक इन्फैंट्री डिवीजन तैनात है। उसे संसाधनों की भी दिक्कत है। सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में एलएसी पर तैनात भारतीय टुकडिय़ां भी अपर्याप्त हैं। इतना ही नहीं पूर्वी क्षेत्र की तीन कोर में से प्रत्येक के पास एक आरक्षित डिवीजन है जो जरूरत पडऩे पर प्रतिक्रिया देगी। लद्दाख में भारतीय चौकियां दूर-दूर हैं और वहां कोई आरक्षित बल नहीं है। यह जोखिमभरा है। चीन दौलत बेग ओल्डी और काराकोरम दर्रे के पास भारतीय सैनिकों की तैनाती को लेकर काफी संवेदनशील है। भारत ने क्षेत्र में बुनियादी ढांचा विकसित करने का प्रयास किया। दारबुक से दौलत बेग ओल्डी तक सड़क निर्माण की गतिविधियों को चीन ने अपने लिए खतरे के रूप में देखा। पाकिस्तान द्वारा सन 1963 में चीन को दी गई शाक्सगाम घाटी और शिनच्यान से पाकिस्तान को गुजरने वाला काराकोरम राजमार्ग जो चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर पर स्थित है, खासे संवेदनशील माने गए। यही कारण है कि चीन ने दौलत बेग ओल्डी इलाके खासकर डेपसांग के मैदानों से हटने से मना कर दिया। भारत के परमाणु क्षमता संपन्न होने के कारण चीन कभी पूरी क्षमता से हमला नहीं करेगा लेकिन वह लद्दाख को सीमित युद्ध का निशाना मानकर चलता है। देश के इस सुदूर केंद्रशासित प्रदेश को बेहतर सुरक्षा की दरकार है। यह जाड़ों में शेष भारत से कट जाता है और इसके साथ ही आपूर्ति भी ठप हो जाती है। जब पीएलए ने गत मई में कई जगह एलएसी लांघी तो भारत की उत्तरी कमान और मुख्यालय को सारा आरक्षित बल झोंकना पड़ा। यह संघर्ष पूरे साल चला और भारतीय सैनिकों ने पैंगोंग झील के दक्षिण में कैलाश रेंज पर कब्जा कर लिया। बहरहाल इस क्रम में उत्तरी कमान और सेना मुख्यालय दोनों असंतुलित हो गए। ऐसे में सैन्य नीतिकारों के लिए यह आवश्यक हो गया कि कम से कम दो आरक्षित डिवीजन लद्दाख में रहें ताकि संतुलन बना रहे। इस बीच भारत-पाकिस्तान सीमा पर तीन स्ट्राइक कोर खास प्रतिरोध नहीं कर पा रही थीं। बीते तीन दशक में यह स्पष्ट हो गया है कि स्ट्राइक कोर की चुनौती पाकिस्तान को कश्मीर में छद्म युद्ध छेडऩे से नहीं रोक सकी। पाकिस्तान की परमाणु क्षमता को देखते हुए पूर्ण युद्ध की आशंका कम है। यह पुनर्संतुलन भारत के उस दावे की ओर जाता है कि भारत के लिए प्रमुख सैन्य चुनौती पाकिस्तान नहीं बल्कि चीन है। यह दावा ठहरना मुश्किल है क्योंकि पिछले महीने तक दो तिहाई भारतीय फौज पाकिस्तान के खिलाफ तैनात थी। 14 सैन्य कोर में से केवल साढ़े चार चीन के समक्ष तैनात थीं जबकि इसकी दोगुनी तादाद पाकिस्तान के खिलाफ तैनात थी। सेना की 38 डिवीजन में से केवल 12 चीन के खिलाफ तैनात हैं जबकि 25 भारत-पाकिस्तान सीमा पर हैं। एक डिवीजन सेना मुख्यालय के अधीन आरक्षित है। नए बदलाव के बाद भी चीन के सामने 12 डिवीजन ही होंगी जबकि 22 पाकिस्तान के समक्ष और दो सेना मुख्यालय पर होंगी। अगर स्ट्राइक कोर को पाकिस्तान सीमा से चीन सीमा पर स्थानांतरित किया जाता है तो इससे चीन समेत दुनिया भर में कड़ा सामरिक संकेत जाएगा। पाकिस्तान को भी इससे संदेश मिलेगा क्योंकि उसके खिलाफ अधिक सैनिकों की तैनाती हमेशा वहां के अफसरों के लिए मुद्दा रहा है। यदि 1 कोर को लद्दाख में माउंटेन कोर से बदला गया तो 17 कोर की भूमिका जरूर स्पष्ट हो जाएगी। इसकी शुरुआत एक दशक पहले चीन के साथ उत्तरी सीमा पर पहले माउंटेन कोर के रूप में की गई थी। परंतु सैनिकों और धन की कमी के चलते इसे पूर्वी और पश्चिमी दोनों इलाकों में भूमिका सौंपी गई। अब चूंकि लद्दाख में 1 कोर को अहम भूमिका दी गई है तो ऐसे में 17 कोर पूर्वी क्षेत्र में चीन की कमजोरियों पर ध्यान केंद्रित कर सकती है। मिसाल के तौर पर सिक्किम के विपरीत चुंबी घाटी में। इस बीच 1 कोर, लद्दाख में प्रतिरोध तैयार कर सकती है जहां डेपसांग से डेमचोक तक हमले के लिए चीन के ठिकाने स्पष्ट हैं लेकिन वहां इसके लिए पर्याप्त सैनिक नहीं हैं।
