औरंगाबाद का नाम बदलने का फैसला भाजपा को स्वीकार | सुशील मिश्र / मुंबई January 04, 2021 | | | | |
महाराष्ट्र के औरंगाबाद का नाम बदलने को लेकर राज्य की राजनीतिक गरमा गई है। राज्य का मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी इस मुद्दे पर सत्ताधारी शिवसेना को ललकारते हुए मैदान में कूद पड़ा है। भाजपा का कहना है कि उसको संभाजी नगर नाम स्वीकार्य है, अब शिवसेना तय करें कि वह नाम बदलेगी या फिर सत्ता के लालच में चुप बैठ जाएगी।
महाराष्ट्र की राजनीति में औरंगबाद का नाम बदलने का फैसला शांत होने का नाम नहीं ले रहा है। नाम बदलने की घोषणा करके शिवसेना फंस चुकी है। सरकार की इस घोषणा से सहयोगी दल कांग्रेस नाराज है, तो भाजपा शिवसेना को घेर रही है। महाराष्ट्र के भाजपा प्रमुख चंद्रकांत पाटिल ने कहा कि औरंगाबाद का नाम बदलकर संभाजी नगर किए जाने का फैसला सबको स्वीकार्य है और अगर उनकी पार्टी यहां नगर निगम में सत्ता में आती है, तो वह इस संबंध में एक प्रस्ताव पारित करेगी। पाटिल ने शिवसेना के रुख की भी निंदा की जो कई वर्षों से नाम परिवर्तन की समर्थक रही है, लेकिन अब वह इसका लगातार विरोध कर रही कांग्रेस के साथ सत्ता में है।
पाटिल ने कहा कि संभाजी नगर नाम सभी को स्वीकार्य है। फिर हम नाम क्यों नहीं बदलते हैं? मैं आपको आश्वस्त कर सकता हूं कि औरंगाबाद नगर निगम में सत्ता में आने पर हम लोग नाम परिवर्तन के पक्ष में एक प्रस्ताव पारित करेंगे। कांग्रेस ने इसका विरोध किया है। लेकिन शिवसेना को अपनी सरकार चलाने के लिए कांग्रेस के सहयोग की जरूरत है। शिवसेना को निश्चित रूप से यह फैसला करना होगा कि क्या वह इस मुद्दे पर सरकार में बनी रहेगी।
शिवसेना के नाम बदलने के प्रस्ताव पर महाराष्ट्र कांग्रेस प्रमुख बालासाहेब थोराट ने इस प्रस्ताव का विरोध करते हुए एक बार फिर दोहराया कि अब शिवसेना को स्पष्ट करना चाहिये कि उसे सत्ता प्यारी है या गौरव। गौरतलब है कि कांग्रेस ने शनिवार को औरंगाबाद का नाम बदलने के विरोध की बात दोहराई थी, तो वहीं शिवसेना ने कहा कि नाम जल्द ही बदला जाएगा, लेकिन इससे महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। शिवसेना ने करीब दो दशक पहले औरंगाबाद का नाम बदलकर इसे संभाजी नगर करने की मांग की थी और इस संबंध में जून 1995 में औरंगाबाद नगर निगम में एक प्रस्ताव पारित किया गया था जिसे बाद में कांग्रेस के एक पार्षद ने उच्च न्यायालय और फिर उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी थी।
राजनीतिक विवाद से अलग औरंगाबाद के किला-ए-अर्क को सांस्कृतिक विशेषज्ञ संरक्षित करने तथा इसे पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने की मांग कर रहे हैं। मुगल शासक औरंगजेब का बनवाया गया यह किला आज खस्ताहाल हो चुका है। औरंगाबाद के जिलाधिकारी सुनील चव्हाण ने बताया कि जिला प्रशासन भविष्य में इस ढांचे के हिस्से के संरक्षण का काम देखेगा। इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट ऐंड कल्चरल हेरिटेज के औरंगाबाद क्षेत्र के समन्वयक अजय कुलकर्णी ने बताया कि किले का निर्माण औरंगजेब ने 1650 में करवाया था। देखरेख के अभाव में किले की हालत खराब होती गई। किला विशेषज्ञ संकेत कुलकर्णी ने बताया कि इमारत परिसर पहले राज्य के पुरातत्व विभाग में एक अधिसूचित स्मारक था, लेकिन 1971 में इसे इस सूची से बाहर कर दिया गया। राज्य के पुरातत्व विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि यह किला अब एक अधिसूचित स्मारक नहीं है और इसके संरक्षण के लिए किसी भी प्राधिकार को विभाग से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है।
|