उधारी के लिए फर्मों का फिक्स्ड रेट बॉन्डों पर जोर | सचिन मामबटा / मुंबई January 04, 2021 | | | | |
कंपनियों ने घटती ब्याज दरों के बीच नए बॉन्ड निर्गमों में निर्धारित दर वाले बॉन्डों की भागीदारी बढ़ाने पर जोर दिया है।
न सिर्फ संबद्घ अवधि के दौरान जारी बॉन्डों बल्कि सभी कुल बकाया बॉन्डों के लिए आंकड़े से पता चलता है कि मार्च, जून और सितंबर तिमाहियों में 90 प्रतिशत बॉन्ड निर्धारित-दर बॉन्ड थे। यह पहली बार है जब दिसंबर 2017 से यह आंकड़ा इस स्तर के पार पहुंचा है। मार्च में यह 90.42 प्रतिशत था और जून तथा सितंबर दोनों में 91 प्रतिशत ऊपर था। फ्लोटिंग-दर बॉन्डों की भागीदारी घटकर एक अंक में रह गई है।
कंपनी जिस दर पर ब्याज चुकाती है, जो फ्लोटिंग-दर बॉन्डों में संबद्घ बेंचमार्क के आधार पर बदल सकती है। ब्याज दर निर्धारित-दर वाले बॉन्डों में पूरी अवधि समान बनी रहती है। इनमें दो प्रमुख बॉन्ड श्रेणियां हैं। शेष के संदर्भ में स्ट्रक्चर्ड नोट्स जैसी योजनाओं का योगदान है।
निर्धारित-दर वाले बॉन्डों को लेकर इस तरह का बदलाव ऐसे समय में देखा गया है जब उधारी की लागत काफी घट गई है।
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने मई, 2020 में अपनी प्रमुख उधारी दर में कटौती थी। तब केंद्रीय बैंक ने रीपो दर घटाकर 4 प्रतिशत कर दी। यह 20 साल पहले वर्ष 2000 में पेश किए गए बेंचमार्क के बाद से सबसे कम दर है। आरबीआई ने यह सुनिश्चित करने के लिए अन्य कदम भी उठाए हैं कि कंपनियां प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए सस्ती दर पर उधारी जुटा सकें, भले ही जीडीपी में कोविड-19 महामारी के बीच करीब एक-चौथाई तक की कमी है।
केंद्रीय बैंक ने 29 दिसंबर को जारी अपनी 'रिपोर्ट ऑन टें्रड ऐंड प्रोग्रेस ऑफ बैंकिंग इन इंडिया 2019-20' में कहा, 'नकदी वृद्घि के उपायों (12.8 लाख करोड़ रुपये - 2019-20 की सामान्य जीडीपी का 6.3 प्रतिशत) के परिणामस्वरूप एक दशक में सबसे कम वित्तीय बाजार की उधारी लागत दर्ज की गई, और 3 महीने के ट्रेजरी बिल, वाणिज्यिक पत्र और जमा पत्रों जैसी योजनाओं पर प्रतिफल सेकंडरी बाजार में नीगित दर के निचले दायरे के आसपास था।'
रिपोर्ट में कहा गया है कि अप्रैल और अक्टूबर 2020 के बीच 4.4 लाख करोड़ रुपये के रिकॉर्ड कॉरपोरेट बॉन्ड निर्गम दर्ज किए गए थे, जबकि 2019 की समान अवधि में यह आंकड़ा 3.5 लाख करोड़ रुपये था।
ऐक्सिस ऐसेट मैनेजमेंट कंपनी द्वारा अपनी 18 दिसंबर की रिपोर्ट 'हिंडसाइट इज 20/20' में कहा, 'हमारा मानना है कि आरबीआई दर सामान्यीकरण की प्रक्रिया में तरलता घटाएगा। जब तक हम व्यापक रूप से राजकोषीय समेकन नहीं देखते या वृद्घि/मुद्रास्फीति झटके नहीं दर्ज किए जाते, तब तक दर कटौती की संभावना नहीं दिख रही है।'
उसने कहा है कि केंद्रीय बैंक द्वारा मौजूदा आर्थिक सुधार को ध्यान में रखते हुए धीरे धीरे दरें बढ़ाए जाने की संभावना है। रिपोर्ट के अनुसार, दर वृद्घि अगले 12-18 महीनों के दौरान देखी जा सकती है।
यह निवेशकों के लिए कम रेटिंग वाली कंपनियों को लेकर सतर्कता बरने का समय हो सकता है। आईडीएफसी ऐसेट मैनेजमेंट कंपनी के प्रमुख (फिक्स्ड इनकम) सुयश चौधरी द्वारा 24 दिसंबर की रिपोर्ट 'व्हेयर द लाइट इज: ए ईयर इन रिव्यू' में लिखा है, 'एक सामान्य सिद्घांत के तौर पर, दर चक्र के बॉटम पर पूंजी की गहरी प्रतिबद्घता के लिए ज्यादा ध्यान देना जरूरी है। जहां एक गहरी प्रतिफल रेखा लंबी अवधि की प्रतिबद्घताओं (खासकर प्रतिफल रेखा के ऐसे खास बिंदु पर, जिसमें पता चलता हो कि आगामी दरें काफी आकर्षक हैं) के लिए इस तरह की संभावना मुहैया करा रही है, वहीं कम रेटिंग की परिसंपत्तियों पर क्रेडिट अंतर अब ऐसा नहीं रह सकता है।'
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