पीसीए से बाहर आने के बाद बिके आईडीबीआई बैंक में हिस्सा | निकुंज ओहरी / नई दिल्ली January 04, 2021 | | | | |
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने सरकार और भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) को सलाह दी है कि पहले आईडीबीआई बैंक को तत्काल सुधार की जरूरत (प्रॉम्प्ट करेक्टिव एक्शन) वाली सूची से बाहर आने दें, उसके बाद ही इसमें हिस्सेदारी बेचने की कोशिश करें।
मामले की जानकारी रखने वाले एक सूत्र ने कहा कि बैंकिंग नियामक को लगता है कि सरकार आईडीबीआई में अपनी हिस्सेदारी बेचेगी तो लगेगा कि बैंक की हालत वाकई खस्ता है, जबकि वास्तव में बैंक की हालत बेहतर है। सूत्र ने बताया कि केंद्रीय बैंक पीसीए व्यवस्था की समीक्षा करने वाला है और सब कुछ ठीक रहा तो आईडीबीआई बैंक इस सूची से बाहर आ सकता है। उसने कहा कि सरकार इस समय बैंक में अपनी हिस्सेदारी बेचती है तो लगेगा कि बैंक में हालात वाकई खराब हैं, इसलिए इंतजार करना ही ठीक रहेगा।
इस विषय पर आरबीआई को भेजे गए सवाल का कोई जवाब नहीं आया। आईडीबीआई अपनी बिगड़ती वित्तीय सेहत के कारण 2017 से ही पीसीए में है। बैंक की वेबसाइट पर प्रकाशित सूचना के अनुसार उसने इस सूची से बाहर आने के लिए सभी आवश्यक शर्तें पिछले साल अप्रैल से जून के बीच ही पूरी कर ली थीं।
बैंक ने जुलाई में कहा था कि वह चालू वित्त वर्ष में आरबीआई की तत्काल सुधार वाली सूची से जल्द से जल्द बाहर निकलने का प्रयास करेगा। जुलाई-सितंबर तिमाही में बैंक के नतीजों के अनुसार बैंक की शुद्ध गैर-निष्पादित आस्तियां जून में समाप्त हुई तिमाही के 3.55 प्रतिशत से कम होकर 2.67 प्रतिशत रह गईं। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पिछले बजट में कहा था कि सरकार आईडीबीआई बैंक में अपनी शेष हिस्सेदारी निजी, खुदरा एवं संस्थागत निवेशकों को बेच देगी। बैंक में सरकार की हिस्सेदारी 47.11 प्रतिशत है। आईडीबीआई बैंक में एलआईसी की हिस्सेदारी 51 प्रतिशत है।
निवेश एवं सार्वजनिक संपत्ति प्रबंधन विभाग (दीपम) वित्तीय सेवा विभाग के साथ मिलकर अब भी हिस्सेदारी बेचने की प्रक्रिया पर चर्चा कर रहा है। कई विकल्पों पर चर्चा चल रही है, जिनमें एक यह है कि सरकार और एलआईसी दोनों ही आईडीबीआई में अपनी पूरी हिस्सेदारी बेच देंगे क्योंकि कोई नया खरीदार प्रबंधन पर पर नियंत्रण के साथ ही बहुलांश हिस्सेदारी खरीदना चाहेगा। दूसरे विकल्प के तहत सरकार और एलआईसी अपनी हिस्सेदारी में कुछ कमी लाकर बैंक की कमान उस नए खरीदार को सौंप देंगी, जिसकी अच्छी-खासी हिस्सेदारी होगी।
अधिकारी के अनुसार तीसरे विकल्प के तौर पर सरकार ऑफर फॉर सेल के जरिये हिस्सेदारी घटाएगी मगर इसे शायद ही पसंद किया जाए। अधिकारी ने कहा कि किसी एक इकाई द्वारा या किसी समूह के जरिये 5 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीद के लिए आरबीआई की अनुमति जरूरी होगी। बिजनेस स्टैंडर्ड के साथ एक साक्षात्कार में वित्तीय सेवा सचिव देवाशिष पांडा ने कहा था कि सरकार की हिस्सेदारी छोटे निवेशकों के हाथ बेचने से अधिक रकम नहीं मिलेगी।
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