अप्रैल 2017 के बाद पुनर्खरीद की पेशकश करने वाली कंपनियों में से आधी फर्मों के शेयर अधिकतम पुनर्खरीद कीमत से नीचे कारोबार कर रहे हैं, ऐसे में यह कार्यक्रम लंबी अवधि के लिहाज से शेयर प्रदर्शन में मजबूती लाने में नाकाम रहा। पिछले कुछ वर्षों में पुनर्खरीद ने शेयरधारकों को नकद वापसी के तरजीही जरिये के तौर पर लोकप्रियता हासिल कर ली, खास तौर से जब अप्रैल 2017 से लाभांश आय पर 10 फीसदी अतिरिक्त कर प्रभावी हुआ। सरकार ने प्राप्तकर्ता के हाथ में लाभांश आय को करयोग्य बनाने के लिए नियमों में बदलाव किए। सरकार ने पुनर्खरीद पर भी कर लागू किया। अप्रैल 2017 के बाद से 176 कंपनियों ने शेयरों की पुनर्खरीद की है। इनमें से कुछ ने कई बार पुनर्खरीद की है। उनमें से 111 कंपनियों के शेयर पुनर्खरीद कीमत से नीचे कारोबार कर रहे हैं। इनमें से ज्यादातर पुनर्खरीद शेयर सौंपने के जरिये किए गए, जो प्रवर्तकों को अपना शेयर बेचने की इजाजत देते हैं। विश्लेषकों ने कहा कि प्रवर्तकों को शेयर पुनर्खरीद कार्यक्रम से सबसे ज्यादा लाभ हुआ, वहीं कंपनियों को बहुत ज्यादा फायदा नहीं हुआ। पुनर्खरीद से इक्विटी पर रिटर्न और प्रति शेयर आय में मजबूती आती है क्योंकि बकाया शेयरों की संख्या कम हो जाती है। हालांकि कई कंपनियों के लिए यह शेयर कीमतों के प्रदर्शन के तौर पर परिवर्तित नहीं हुआ। विश्लेषकों ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में बाजार मेंं हुए उतारचढ़ाव से शायद कंपनियों के शेयर की कीमतें उनकी पुनर्खरीद कीमत से नीचे आ गई। आईआईएफएल के शोध प्रमुख अभिमन्यु सोफत ने कहा, पुनर्खरीद कीमत हमेशा बाजार कीमत से ज्यादा होगा। कई शेयर अभी भी साल 2018 के निचले स्तर से नीचे कारोबार कर रहे हैं। इक्विनॉमिक्स के संस्थापक जी. चोकालिंगम ने कहा, मिड व स्मॉलकैप के क्षेत्र में कई अच्छे शेयर पुनर्खरीद के साथ सामने आ गए जब साल 2018 में उनके शेयर चकनाचूर हो गए। अभी भी वे अपने साल 2018 के स्तर पर हैं। मार्च से हमने थिमेटिक तेजी देखी है और आईटी, फार्मा, एफएमसीजी ऐसे क्षेत्र थे, जिसने निवेशकों को आकर्षित किया। पीएसयू व विनिर्माण कंपनियां अभी तक इसमें भागीदारी नहीं कर चुकी है। इसके अतिरिक्त पुनर्खरीद के संकेत से आकर्षक निवेश या विस्तार के मौके का अभाव दिखता है, जो लंबी अवधि के लिहाज से कमजोर परिदृश्य का संकेतक है। चारों तकनीकी दिग्गजों ने पिछले तीन साल में शेयर पुनर्खरीद कार्यक्रम को अंजाम दिया है। टीसीएस, एम्फैसिस, इन्फोसिस और विप्रो जैसी कंपनियों ने इस अवधि में काफी पुनर्खरीद किए हैं। विश्लेषकों ने कहा कि आईटी कंपनियों के पास भारी नकदी होती है, जिसका वे निवेश नहींं कर पाते। पिछले तीन सालों में आईटी उद्योग राजस्व की रफ्तार को लेकर मंदी का सामना किया है और विशेषज्ञों का कहना है कि शेयरधारकों को नकदी की वापसी को लेकर कंपनियों पर शेयरधारकों का काफी दबाव है। चोकालिंगम ने कहा, आईटी कंपनियों ने दो अंकों में बढ़त नहींं दर्ज की है। उनके शेयरों में तेजी महामारी के बाद इस क्षेत्र में दिलचस्पी के चलते देखने को मिल रही है। कारोबारी लिहाज से उनमें बहुत ज्यादा सुधार नहींं हुआ है। कारोबार के विस्तार को लेकर भी कोई बात नहीं है। ब्याज दरें घटी हैं। इनमें से ज्यादातर संकीर्ण कंपनियां हैं, जो बाजार में आक्रामकता के साथ निवेश नहींं करती। ऐसे में वे नियोजित पूंजी पर रिटर्न को सुधारने के लिए शेयरधारकों को रकम लौटा रहे हैं। मोतीलाल ओसवाल के सिद्धार्थ खेमका ने कहा कि कई पीएसयू ने पुनर्खरीद कार्यक्रम पेश किया क्योंकि सरकार रकम चाहती थी। कुछ पीएसयू में गिरावट आई, जिसकी वजह उन क्षेत्रों से संबंधित समस्याएं थीं। पुनर्खरीद में स्वीकार्यता का अनुपात हालांकि कम होता है, लेकिन विश्लेषकों ने कहा कि अगर प्रीमियम आकर्षक हो तो निवेशकों को अपना शेयर इसमें बेचना चाहिए।
