बुनियादी ढांचागत परियोजनाओं के लिए अहम श्योरिटी बॉन्ड | बुनियादी ढांचा | | विनायक चटर्जी / January 03, 2021 | | | | |
बीते कुछ वर्षों से विनिर्माण और अधोसंरचना क्षेत्र में जिन बातों पर बहुत अधिक जोर दिया जा रहा है उनमें से एक है बैंक गारंटी की व्यवस्था। ठेकेदारों और अन्य सेवा प्रदाताओं मसलन सलाहकार अभियंताओं या परिचालन और रखरखाव प्रदाताओं की बैलेंस शीट बीते कुछ समय के दौरान लगातार खराब हुई है। ऐसे में परियोजना स्वामियों से कहा जा रहा है कि वे वित्तीय सुरक्षा की दृष्टि से बैंक गारंटी प्रस्तुत करें। गारंटी यह सुनिश्चित करने का काम करेगी कि संबंधित सेवा प्रदाता अपने दायित्व को निभाएं। परंतु बैंक गारंटी की यह मांग परियोजना क्रियान्वयन की राह में एक प्रमुख बाधा साबित हो रही है।
अक्सर इसके कारण सेवा प्रदाता बैंक गारंटी सीमा की उपलब्धता के साथ संघर्ष करते नजर आते हैं और मार्जिन के लिए नकदी की जरूरत से दो-चार दिखते हैं। मिसाल के तौर पर 100 रुपये की बैंक गारंटी के लिए 10 रुपये की नकदी जारीकर्ता बैंक के पास सावधि जमा के रूप में रखनी होगी। कई बार इस खाते पर बने दबाव के कारण ठेकेदार नई परियोजनाओं पर काम करने की कोशिश बंद कर देते हैं जबकि कम से कम फिलहाल तो कोई भारतीय ऐसा नहीं चाहेगा।
भारतीय राजमार्ग प्राधिकरण जैसे परियोजना स्वामी और ऐसे ही अन्य केंद्र तथा राज्य स्तरीय संस्थानों ने अपनी परियोजनाओं के बोलीकर्ताओं पर कड़ी शर्तें लगा दी हैं। इसके तहत उन्हें लंबी अवधि के प्रदर्शन के अलावा अपनी बोली के समर्थन में बैंक गारंटी मुहैया करानी होती है। फिलहाल अकेले राजमार्ग क्षेत्र में करीब 6 लाख करोड़ रुपये मूल्य की परियोजनाओं का क्रियान्वयन चल रहा है और बैंक गारंटी की राशि इस कुल राशि के 20 फीसदी तक हो सकती है। ऐसी गारंटी जारी करने का काम प्रमुख तौर पर बैंक करते हैं। ऐसे में ऐसे वित्त पोषण की लागत और कमीशन को लेकर, नकद मार्जिन की मांग को लेकर तथा बैंकों द्वारा गारंटी देने के बदले थोपी जाने वाली अन्य शर्तों को लेकर भी चिंता के स्वर उभरे हैं। कई मामलों में तो मौजूदा बैंक गारंटी सीमा का पूरा उपयोग कर लिया गया और बैंक अब उसमें इजाफा करने से इनकार कर रहे हैं। भले ही कारोबारी वृद्धि के कारण ऐसा इजाफा जरूरी लग रहा हो। कई बार बैंक ऐसी गारंटी देने के बदले 100 फीसदी मार्जिन की मांग करते हैं। हालांकि बीमा उद्योग की ओर से श्योरिटी बॉन्ड के रूप में एक राहत दस्तक देती नजर आ रही है।
भारतीय बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (आईआरडीएआई) के एक कार्य समूह ने हाल ही में एक प्रपत्र जारी किया है जिसमें व्यापक तौर पर बीमा कंपनियों द्वारा श्योरिटी बॉन्ड जारी करने की बात कही गई है। ये बॉन्ड बैंक गारंटी के स्थानापन्न हो सकते हैं। श्योरिटी बॉन्ड एक त्रिपक्षीय समझौता होगा जिस पर बीमाकर्ता, ठेकेदार और परियोजना स्वामी हस्ताक्षर करेंगे। यह बॉन्ड ठेकेदार के काम की गारंटी होगा।
श्योरिटी बॉन्ड बैंक गारंटी से कैसे अलग हैं?
पहली बात तो यह कि यह बैंक गारंटी की तुलना में अधिक असुरक्षित होती है और इन्हें व्यापक तौर पर ठेकेदार के पिछले प्रदर्शन और उसकी वित्तीय स्थिति को ध्यान में रखते हुए प्रदान किया जाता है जबकि बैंक गारंटी के लिए एक तरह की सुरक्षा की आवश्यकता होती है। तीसरी और सबसे अहम बात यह है कि बैंक गारंटी बिना शर्त होती है और उसमें मांग पर भुगतान करना होता है जबकि श्योरिटी बॉन्ड बीमा पॉलिसी की तरह होते हैं जहां दावा किया जाता है, बीमाकर्ता दावे की जांच करता है और उसके बाद दावा वैध होने पर भुगतान करता है। आखिर में बैंक गारंटी की तुलना में श्योरिटी बॉन्ड का एक लाभ यह है कि बैंक के साथ ऋण सीमा अछूती बनी रहती है और अन्य आवश्यकताओं के लिए वित्तीय उपलब्धता बनी रहती है।
वित्तीय सेवा कंपनी एओएन की एक रिपोर्ट के मुताबिक विश्व स्तर पर श्योरिटी बॉन्ड एक बड़ा कारोबार है। रिपोर्ट में कहा गया है कि सन 2018 में प्रीमियम के संदर्भ में वैश्विक अनुबंध श्योरिटी बाजार 6.5 अरब डॉलर का था। उदाहरण के लिए अमेरिका में मिलर ऐक्ट नामक एक संघीय कानून के तहत एक खास राशि से अधिक की सरकारी परियोजनाओं की बोली लगाते समय भुगतान और प्रदर्शन बॉन्ड हासिल करना जरूरी है। इस अधिनियम के कारण अमेरिका में श्योरिटी बॉन्ड ने बैंक गारंटी को पीछे छोड़ दिया। यहां तक कि अब वहां सरकारी काम में बैंक गारंटी का इस्तेमाल भी नहीं किया जाता। दूसरे बाजारों मसलन ब्राजील और मेक्सिको में दोनों को इस्तेमाल किया जा रहा है।
आईआरडीएआई की कार्य समूह की रिपोर्ट में यह स्वीकार किया गया है कि यदि भारत में श्योरिटी बॉन्ड की शुरुआत हो भी जाती है तो भी उन्हें गति पकडऩे में समय लगेगा। अभी काफी कुछ किया जाना है। श्योरिटी बॉन्ड के लिए देश में कानूनी ढांचा भी पूरी तरह तैयार नहीं है। इस दिशा में तेजी से काम करना है।
श्योरिटी बॉन्ड का मसला तकनीकी प्रतीत होता है लेकिन यह इस बात को लेकर व्यापक समझ पैदा कर सकता है कि देश में बुनियादी ढांचा क्षेत्र के वित्त पोषण की जरूरत कैसी है। दीर्घावधि और अधिक स्थिर प्रतिफल पर नजर डालें तो वैश्विक पेंशन फंड और प्राइवेट इक्विटी फंड भी भारतीय बाजार में आ चुके हैं लेकिन उनका कारोबार सीमित है। अधिकांश वित्त पोषण अभी भी घरेलू है और अब जबकि बैंक इस क्षेत्र से दूरी बना रहे हैं तो केवल बीमा कंपनियां ही दीर्घावधि के वित्त पोषण वाली विशेषज्ञ संस्था नजर आ रही हैं।
प्रस्तावित श्योरिटी बॉन्ड आगे चलकर देश में अधोसंरचना क्षेत्र के वित्त पोषण में बहुत अहम भूमिका निभा सकते हैं।
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