भावांतर से थमेगा किसान आंदोलन! | संजीव मुखर्जी / नई दिल्ली January 03, 2021 | | | | |
केंद्र सरकार धान और गेहूं को प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान (पीएम-आशा) योजना में शामिल करने समेत तमाम विकल्पों पर विचार कर रही है ताकि दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलनरत किसानों के साथ गतिरोध खत्म किया जा सके। पीएम-आशा में शामिल होने से किसानों को धान और गेहूं के लिए भावांतर भुगतान मिल सकेगा, जो फिलहाल दलहन और तिलहन के लिए लागू है। साथ ही सरकार कृषि उपजों की उत्पादन लागत के आधार पर निजी कारोबारियों के लिए खरीद की न्यूनतम आरक्षित कीमत तय करने के बारे में भी विचार कर रही है।
अधिकारियों ने कहा कि सरकार गतिरोध खत्म करने के लिए विभिन्न विकल्पों पर विचार कर रही है क्योंकि किसान दिल्ली की सीमाओं पर एक महीने से भी ज्यादा पुराना धरना-प्रदर्शन खत्म करने के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी और तीन कृषि कानूनों के खात्मे पर अड़े हुए हैं। कानून रद्द करने की बात पर अधिकारियों ने कहा कि किसानों द्वारा उठाई गई आपत्तियों में से कई केंद्र द्वारा सुझाए गए संशोधन प्रस्तावों में पहले ही शामिल की जा चुकी हैं। इनमें राज्यों को निजी मंडियों पर बाजार शुल्क लगाने की इजाजत देना और उन्हें निजी कारोबारियों के पंजीकरण के लिए नियम बनाने का अधिकार देना आदि शामिल हैं। अधिकारियों का कहना है कि इससे किसानों की चिंता दूर होंगी।
पीएम-आशा योजना ऐसी व्यवस्था है, जिसमें या तो केंद्र सीधे निर्धारित कृषि उपज खरीद सकता है या कीमतें एमएसपी से नीचे जाने पर एमएसपी और बाजार भााव के बीच का अंतर किसानों को दे सकता है। इस समय यह योजना केवल दलहन और तिलहन के लिए उपलब्ध है।
प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान या पीएम आशा के मुख्य रूप से तीन घटक हैं। इनमें मध्य प्रदेश में पहले चलने वाली भावांतर भुगतान योजना की तर्ज पर मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस) और मूल्य में कमी के भुगतान की योजना तथा निजी खरीद एवं स्टॉकिस्ट योजना शामिल हैं। इस योजना के तहत केंद्र किसी राज्य में किसी फसल के कुल उत्पादन में से अधिकतम 25 फीसदी खरीद करेगा। अगर उस जिंस का इस्तेमाल सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) या अन्य किसी राज्य की कल्याणकारी योजना में होता है तो इस सीमा को 40 फीसदी तक बढ़ाया जा सकता है। लेकिन मध्य प्रदेश की भावांतर भुगतान योजना के मामले में कीमत में कमी के भुगतान की कोशिशों को ज्यादा सफलता नहीं मिली क्योंकि आरोप लगे कि कारोबारियों ने जानबूझकर कीमतें कम रखने के लिए सांठगांठ की। अधिकारियों ने न्यूनतम आरक्षित कीमत के बारे में कहा कि कृषि लागत एवं मूल्य आयोग द्वारा अनुमानित उत्पादन लागत के आधार पर निजी कारोबारियों के लिए कृषि उपज खरीदने की न्यूनतम कीमत जैसी व्यवस्था के बारे में विचार किया जा सकता है। हालांकि यह व्यवस्था उन 23 फसलों पर ही लागू होगी, जिनके लिए सीएसीपी उत्पादन लागत तय करता है। किसानों की आय दोगुनी करने के विषय पर गठित समिति ऐसे आरक्षित मूल्य की बात कर भी चुकी है। इसने कहा था कि किसानों के हितों की सुरक्षा के लिए एमएसपी से इतर एक न्यूनतम आरक्षित कीमत तय होनी चाहिए।
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