स्वास्थ्य संकट में सामूहिक भागीदारी की मिसाल है धारावी की कामयाबी | |
इंसानी पहलू | श्यामल मजूमदार / 01 01, 2021 | | | | |
दुनिया सन 2020 को जल्द से जल्द भुला देना चाहेगी क्योंकि महामारी, उसके कारण उत्पन्न डर और दुनिया भर में लोगों की मौतों ने बुरी खबरों का भूचाल सा ला दिया। हालांकि चौतरफा निराशा के बीच कुछ खबरें ऐसी भी थीं जिन्होंने उत्साह पैदा किया। ऐसी ही एक खबर क्रिसमस की सुबह भी मिली। धारावी जो एक समय मुंबई में कोविड-19 का प्रमुख केंद्र बना हुआ था वहां 1 अप्रैल, 2020 के बाद पहली बार क्रिसमस के एक दिन पहले 24 घंटे में कोरोना संक्रमण का एक भी नया मामला सामने नहीं आया। धारावी जैसा क्षेत्र जहां शारीरिक दूरी एक मजाक भर है वहां यह एक बड़ा चमत्कार ही है। 2.2 वर्ग किलोमीटर के इस भूभाग में करीब आठ लाख लोग रहते हैं। यहां प्रति वर्ग किलोमीटर में जनसंख्या का घनत्व 225,000 है। यह राष्ट्रीय औसत का 600 गुना है। महामारी विशेषज्ञों ने आशंका जताई थी कि इस इलाके में बीमारी नियंत्रण से बाहर हो सकती है क्योंकि धारावी की 80 फीसदी से अधिक आबादी साझा सामुदायिक शौचालयों का इस्तेमाल करती है। वहां रहने वालों के परिवार एक कमरे के आवास में रहते हैं जहां बहुत तंग हालात होते हैं।
वृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) और मुंबई के अन्य विभागों ने दुनिया के इस सबसे घनी आबादी वाले इलाके में जिस नीति के जरिये वायरस पर नियंत्रण कायम किया और असंभव को संभव कर दिखाया उसे लेकर काफी कुछ कहा जा चुका है। प्रशासन ने इस बात को महसूस किया कि लोगों की स्क्रीनिंग और उन्हें दूसरों से अलग (क्वारंटीन) रखना ही इकलौता तरीका है क्योंकि वहां एक कोविड पॉजिटिव मरीज भी संक्रमण बहुत तेजी से फैला सकता था। जिन लोगों के संक्रमित होने का संदेह था, उन सभी को स्कूलों और पार्कों में बने विशिष्ट क्वारंटीन सेंटरों में स्थानांतरित किया गया। महामारी का प्रसार रोकने के लिए संक्रमितों का पता लगाने, उनकी जांच करने और उनका उपचार करने पर विशेष जोर दिया गया।
बीएमसी के अधिकारियों की सक्रिय सोच तथा अन्य सरकारी अधिकारियों के दृढ़ निश्चय ने भी लक्ष्य हासिल करने में काफी मदद की। परंतु धारावी की सफलता की मूल वजह कुछ और है: हजारों सामाजिक कार्यकर्ताओं, सामुदायिक नेताओं, गैर सरकारी संगठनों और निजी क्षेत्र के चिकित्सा कर्मियों द्वारा किए गए नि:स्वार्थ काम ने भी इसमें काफी मदद की। इस क्षेत्र में चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने में इनकी अहम भूमिका है और यहां के मरीजों के साथ उनका विश्वास का रिश्ता है।
इन तमाम लोगों को शामिल कर लक्षित आबादी के व्यवहार में आमूलचूल बदलाव लाया गया। बीएमसी के अधिकारियों को यह श्रेय जाता है कि उन्होंने तत्काल पता लगा लिया कि धारावी के निवासी अक्सर बीएमसी के स्वास्थ्यकर्मियों को वहां रहने वाले लोगों की तादाद, उनकी स्वास्थ्य संबंधी स्थिति आदि के बारे में गलत जानकारी देते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि लोगों में यह धारणा है कि बीएमसी के कर्मचारी केवल उन्हें वहां से खदेडऩे के लिए आते हैं। ऐसे में प्रभावी तरीके से स्क्रीनिंग करना, आइसोलेट करना और क्वारंटीन केंद्रों में भेजना असंभव था। स्थानीय स्वास्थ्यकर्मियों ने बीएमसी और धारावी की जनता के बीच पुल का काम किया।
करीब 6,000 स्वास्थ्यकर्मियों और स्वयंसेवकों को जिनमें से अधिकांश धारावी से ही थे, थर्मामीटर और पल्सऑक्सीमीटर दिए गए और उन्हें इस बात का प्रशिक्षण दिया गया कि कोविड-19 की पहचान कैसे की जाए। यह प्रयास था कि उन्हें हर रोज सभी घरों में भेजा जाए ताकि धारावी के हर हिस्से की जांच की जा सके और महामारी के अंत तक पूरे क्षेत्र की निगरानी की जा सके। इस दौरान सबसे बड़ी दिक्कत थी जानकारी की कमी और इस बीमारी के साथ जुड़ा कलंक। यहां पर सामाजिक कार्यकर्ताओं और स्वयंसेवी संगठनों की अपनी भूमिका थी। अगले कुछ महीनों तक उनका प्रमुख काम था व्यापक आबादी को यह समझाना कि कोविड-19 से संक्रमित होना कोई अपराध नहीं है और समय पर क्वारंटीन होने से परिवार के अन्य सदस्यों में संक्रमण रोका जा सकता है। जहां बीएमसी कंटेनमेंट जोन बनाने में नाकाम रही वहां धारावी के लोगों ने स्वयं बैरीकेडिंग आदि करके कंटेनमेंट जोन बना लिए और व्हाट्सऐप समूहों की मदद से सतर्कता का प्रसार किया और अधिकारियों के साथ जानकारी का आदान-प्रदान किया। मसलन उन्होंने भोजन आदि की जरूरत पडऩे पर अधिकारियों से संपर्क साधा। जरूरी वस्तुओं की अबाध आपूर्ति ने भी लोगों को यह यकीन दिलाया कि उनका धारावी में ही रहना बेहतर है। कई स्वयंसेवी संगठनों, आम लोगों और स्थानीय सामुदायिक नेताओं ने स्थानीय निवासियों को भोजन के पैकेट और अनाज-किराना आदि वितरित किए। सामुदायिक नेताओं ने कंटेनमेंट जोन में समन्वय कायम करते हुए यह चिह्नित करने में मदद की कि कौन सी किराना दुकानें खुली रहेंगी और यह भी कि सामुदायिक शौचालय दिन में तीन चार बार साफ हों। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी इस महती कार्य की सराहना करते हुए कहा कि महामारी से बचाव में सामुदायिक भागीदारी अहम है।
अब जबकि इस लड़ाई के पहले चरण में जीत मिल चुकी है, विशेषज्ञों का कहना है कि अगले चरण पर ध्यान देना होगा। यदि लोगों की भागीदारी बरकरार रखनी है तो धारावी में आर्थिक तबाही से बचाव के लिए गंभीर प्रयास करने होंगे। उसकी शायद अभी शुरुआत ही है। महामारी के पहले यहां के छोटे मोटे उद्योग सालाना एक अरब डॉलर का उत्पादन करते थे। कई लोग धारावी की सफलता का श्रेय केवल तकदीर को देते हैं और कहते हैं कि केवल स्क्रीनिंग और नाम मात्र की जांच से कोविड-19 जैसी महामारी नहीं रोकी जा सकती। ऐसे लोग भी हैं जो कहते हैं कि शायद वहां के लोगों में सामूहिक प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो गई होगी क्योंकि दुनिया में कहीं और धारावी की तरह उच्च ऐंटीबॉडी नहीं देखी गई। ये बातें आंशिक रूप से सच हो सकती हैं लेकिन यह सच है कि धारावी की सफलता ने यह रेखांकित किया है कि जन स्वास्थ्य से जुड़े किसी भी संकट में सामुदायिक मॉडल और सामुदायिक भागीदारी अहम भूमिका निभा सकती है।
|