2020 में रुपया कमजोर हुआ, बॉन्ड प्रतिफल मजबूत | अनूप रॉय / मुंबई December 31, 2020 | | | | |
भारतीय रिजर्व बैंक ने रुपया और बॉन्ड के लिए विपरीत रणनीति अपनाई जिसके कारण एक ओर जहां बॉन्ड मजबूती पर बंद हुआ वहीं रुपया कमजोर हुआ है। 2020 में रुपया 73.1 प्रति डॉलर पर बंद हुआ जो 31 दिसंबर 2019 को 71.4 पर बंद हुआ था। इस कैलेंडर वर्ष में रुपया 2.3 फीसदी कमजोर हुआ है। इसके साथ ही यह एशिया में सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली मुद्रा बन गई है। इंडोनेशियाई रुपिया में भी गिरावट आई है लेकिन उतना नहीं जितना की रुपया में गिरावट आई है। क्षेत्र में बाकी सभी मुद्राओं में डॉलर के मुकाबले मजबूती आई है। इससे इस बात को बल मिलता है कि केंद्रीय बैंक ने एक खास रणनीति बनाई जिसके तहत रुपया को कमजोर रखा गया ताकि आत्मनिर्भर भारत के तहत निर्यातकों के लिए सहूलियत हो।
रुपया का प्रदर्शन केंद्रीय बैंक द्वारा भारी मात्रा में विदेशी विनिमय मुद्रा भंडार रखने के अनुरूप भी है। ताजे आंकड़ों के अनुसार 18 दिसंबर को भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 581 अरब डॉलर के पार था। इसमें करीब 120 अरब डॉलर का इजाफा हुआ है। दिलचस्प है कि शुद्घ आधार पर ऋण और इक्विटी दोनों में पोर्टफोलिया प्रवाह करीब 9 अरब डॉलर रहा है। इससे संकेत मिलता है कि साल का समूचा मुद्रा भंडार केवल चालू खातों की बदौलत ही नहीं रहा है। विश्लेषक कहते हैं कि अब भारत के मुद्रा भंडारों में कुछ हद तक स्थायित्व आ गया है और यह भी दर्शाता है कि रुपया में रिजर्व बैंक का हस्तक्षेप स्थानीय मुद्रा को कमजोर रखने के उद्देश्य से किया गया था। विश्लेषक कहते हैं कि यह पिछले कुछ वर्षों में रुपया के अधिमूल्यन के समाधान के लिए भी था।
इसलिए, अधिकांश को यह उम्मीद नहीं है कि नए साल में तुरंत रुपया में मजबूती आएगी। बल्कि, रुपया थोड़ा कमजोर रहने से यह देश के लिए लाभकारी होगा। रिजर्व बैंक के रुझान और प्रगति रिपोर्ट के मुताबिक 10 वर्ष का बॉन्ड प्रतिफल 5.865 फीसदी पर बंद हुआ जो 2019 के अंत में 6.555 फीसदी पर बंद हुआ था। यह बैंक के खजानों खासकर निजी बैंकों के लिए काफी लाभकारी है जिन्होंने अपने निवेश पर लाभ लेने का निर्णय लिया था। जैसे ही प्रतिफल में गिरावट आती है बॉन्डों की कीमतें चढ़ जाती हैं और बॉन्ड प्रतिफल में इजाफा होने पर बॉन्डों की कीमत घट जाती है। रिजर्व बैंक ने प्रणाली में खूब तरलता डाली, लॉट साइज (एक लेनदेन में खरीदे जाने वाले) खरीद कर द्वितीयक बाजार बॉन्ड को दोगुना किया और मौखिक रूप से बॉन्ड निवेशकों को लगातार बॉन्ड खरीदने के लिए राजी किया और सरकार की रिकॉर्ड 13.2 लाख करोड़ रुपये के उधारी कार्यक्रम के जरिये रिजर्व बैंक की सेल को मजबूती प्रदान की। इसके बाद भी रिजर्व बैंक को यह सुनिश्चित करना पड़ा था कि राज्य अपनी जरूरतों के लिए ऋण लें। व्यवस्था में 8 लाख करोड़ रुपये से अधिक की तरलता के साथ रिजर्व बैंक ने 16 वर्ष की न्यूनतम औसत प्रतिफल पर उधार लेने में सफलता पाई है। यह ऐसी चुनौतीपूर्ण स्थिति में एक उल्लेखनीय काम है।
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