किसानों की मुट्ठी में कैद खाद्य तेल में आत्मनिर्भरता | रॉयटर्स / मुंबई/नई दिल्ली December 31, 2020 | | | | |
कृषि सुधारों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे किसानों में 35 साल से अनाज उगा रहे किसान सिंगारा सिंह भी शामिल हैं, जिनमें खाद्य तेल आयात के 10 अरब डॉलर के भारी भरकम बिल को घटाने में मदद करने की क्षमता है। लेकिन 55 साल से सिंह का कहना है कि वे पंजाब स्थित अपनी 15 एकड़ जमीन पर तिलहन उगाना तभी शुरू करेंगे, जब सरकार उन्हें उत्पाद के दाम की गारंटी दे। सिंह ने सरकार के गेहूं और चावल के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) का हवाला देते हुए कहा, 'पहले हम सूरजमुखी की खेती करते थे, लेकिन हम उसे एमएसपी पर नहीं बेच पाते।' राजधानी की सीमा पर बैठे सिंह ने कहा, 'अक्सर हमको सूरजमुखी घाटे में बेचना पड़ता था।'
अगर अनाज उगाने वाले राज्य पंजाब व हरियाणा अपनी खेती में बदलाव करें तो खाद्य तेल का आयात घटाया जा सकता है, जो पिछले 2 दशक में बढ़कर तीन गुना हो गया है और कच्चे तेल और सोने के बाद तीसरा बड़ा आयात खर्च खाद्य तेल पर होता है। इसकी वजह से चावल और गेहूं का भंडारण भी बढ़ रहा है, जो कई साल के बंपर उत्पादन के बाद सरकार के गोदामों में भरा हुआ है। लेकिन उद्योग के विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक सरकार वित्तीय सहायता नहीं देती है, अनाज उत्पादकों के बड़े पैमाने पर तिलहन की खेती की ओर जाने की संभावना नहीं है। जीजी पटेल ऐंड निखिल रिसर्च कंपनी के प्रमुख और पुराने कारोबारी गोविंद भाई पटेल कहते हैं, 'अगर सरकार फसल बदलने के लिए किसानों को कुछ हजार रुपये प्रति एकड़ प्रोत्साहन देना शुरू कर दे तो किसान तिलहन का रुख करसकते हैं, जो जरूरी है।' नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा सितंबर में लाए गए 3 नए कानून पर चल रहे गतिरोध के बीच इस तरह की संभावना नजर नहीं आती, जो प्रदर्शन कर रहे किसानों को एमएसपी के मसले को छोडऩे का आरोप लगा रही है। ये कीमतें 20 से ज्यादा फसलों की तय की जाती हैं, लेकिन सरकार की खरीद एजेंसी भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) सिर्फ चावल और गेहूं की खरीद करती है और अन्य जिंसों की खरीद न होने के लिए धन व भंडारण क्षमता न होने का हवाला देती है।
सरकार अपनी ओर से तय मूल्य पर वित्तीय समर्थन करके ही अनाज से तिलहन उगाने के लिए किसानों को आकर्षित कर सकती है। सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन आफ इंडिया (एसईए) के बीवी मेहता ने कहा, 'हमने सरकार से अनुरोध किया है कि किसानों को इस तरह का समर्थन दिया जाना चाहिए।' मेहता ने कहा कि सरकार खाद्य तेल के आयात पर कर लगाकर 350 अरब रुपये कमाती है, जिसमें से साल में 40 अरब रुपये अलग कर वह फसल विविधीकरण पर खर्च कर सकती है। अगर तिलहन का ज्यादा उत्पादन होता है और तेल का कम आयात होता है तो इससे किसानों की आमदनी बढ़ेगी, नौकरियों का सृजन होगा और घरेलू पेराई उद्योग को बढ़ावा मिलेगा। उन्होंने कहा कि इसके साथ ही इससे कीमती विदेशी मुद्रा बचाने में भी मदद मिलेगी। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने नीतियों का हवाला देते हुए नाम न दिए जाने की शर्त पर कहा कि अनाज से उत्पादकों को हटाना और तिलहन उत्पादन को बढ़ावा देना सरकार की योजना में शामिल है।
|