मतभेद में अटकी एफएसआर! | रघु मोहन / मुंबई December 30, 2020 | | | | |
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) और केंद्र दिसंबर 2020 की वित्तीय स्थायित्व रिपोर्ट (एफएसआर) पर अपने मतभेद दूर करने में लगे हैं। अब यह रिपोर्ट 11 जनवरी 2021 को जारी हो सकती है। दिसंबर एफएसआर बुधवार को जारी होनी थी, लेकिन भविष्य में बैंकिंग जगत में गैर-निष्पादित आस्तियों (एनपीए) की दिशा एवं दशा पर दोनों पक्षों की बीच सहमति नहीं है। आरबीआई और सरकार के बीच इस मुद्दे पर उभर आए मतभेद जल्द दूर नहीं किए गए तो सरकारी बैंकों की पुनर्पूंजीकरण योजना खटाई में पड़ सकती है। सरकार की वित्तीय सेहत पहले से ही खराब चल रही है और अगर केंद्रीय बैंक एनपीए की हालत बिगडऩे पर अधिक आक्रामक रवैया अपनाता है इसे सार्वजनिक करता है तो उससे हालात और बिगड़ सकते हैं। इससे घरेलू और विदेशी दोनों निवेशकों के उत्साह पर असर पड़ सकता है। सूत्रों ने कहा कि एफ एसआर के मसौदे में कही गईं बातें सरकार के लिए असहज रही होंगी इसलिए दोनों पक्षों को आपस में सहमति बनानी होगी। सूत्रों ने कहा कि ऐसा इसलिए भी जरूरी हो गया है क्योंकि बजट आने में एक महीने से थोड़ा ही अधिक समय शेष रह गया है।
आरबीआई ने 'ट्रेंड ऐंड प्रोगेस ऑफ बैंकिंग इन इंडिया इन 2019-20' रिपोर्ट में ऐसे संकेत दिए थे कि बैंकों में पूंजी डालने की गुंजाइश कम होती जा रही है। रिपोर्ट में कहा गया था, 'सरकार ने बैंकों में पूंजी डालने के लिए अनुदान के लिए पहली पूरक मांगों में 20,000 करोड़ रुपये का प्रावधान जरूर किया है, लेकिन वह बाजार से अतिरिक्त रकम भी जुटा सकती है।' रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि प्रारंभिक अनुमानों से ऐसा लगता है कि नियामकी शर्तें और कारोबार वृद्धि के लिए पूंजी की जरूरत बैंकिंग प्रणाली की टीयर-1 पूंजी का 150 आधार अंक तक हो सकता है। एक सूत्र ने कहा, 'ऐसा संभव है कि दिसंबर की मसौदा एफएसआर में एनपीए की बिगड़ती स्थिति पर जुलाई की एफएअसार की बात दोहराई गई होगी।' रिपोर्ट में कहा गया था कि ऐसी आशंका है कि सभी बैंकों का सकल एनपीए मार्च 2021 तक बढ़कर 12.5 तक पहुंच सकता है।
रिपोर्ट के अनुसार अगर आर्थिक हालात बदतर हुएतो यह अनुपात 14.7 प्रतिशत तक भी पहुंच सकता है। ट्रेंड ऐंड प्रोगेस ऑफ बैंकिंग इन इंडिया इन 2019-20 रिपोर्ट में यह बात स्पष्ट रूप से कही गई थी कि 2017-18 के दौरान जीएनपीए में 0.74 प्रतिशत सुधार बैंकिंग जगत में फंसे कर्ज की चिंताजनक हालत को छुपा रहा है। इस बात की ओर भी ध्यान खींचा गया था कि परिचालन से जुड़े जोखिम चिंता का एक बड़ा कारण हैं और केंद्रीय बैंक ने मानक परिसपंत्ति जोखिम प्रावधान 0.40 प्रतिशत से बढ़ाने के पक्ष में रहा होगा। रिपोर्ट में कहा गया कि सरकारी बैंकों के ऋण आवंटन में धोखाधड़ी से जुड़े कई मामल देखने में आएं हैं। मार्च-सितंबर तिमाही के दौरान धोखाधड़ी के मामले करीब 64,681 करोड़ रुपये के थे, जो पिछले वर्ष की समान अवधि के 1,13,374 करोड़ रुपये के मुकाबले करीब 50 प्रतिशत कम हो गए। हालांकि 98 प्रतिशत फर्जीवाड़े ऋ णों से जुड़े थे, जो पिछले कुछ वर्षों के दौरान हुए थे। सितंबर 2020 तक संख्या और आंकड़ों के लिहाज से जितने फर्जीवाड़े हुए वे 2017-18 से पहले के थे।
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