एशियाई मुद्राओं में रुपये का प्रदर्शन सबसे खराब | कृष्णकांत / मुंबई December 30, 2020 | | | | |
रुपया संभवत: एशिया में सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली मुद्रा के रूप में कैलेंडर वर्ष 2020 को अलविदा करेगा। यहां तक कि पाकिस्तानी रुपये और श्रीलंकाई रुपये जैसी दक्षिण एशिया की छोटी मुद्राओं के मुकाबले भी रुपये का प्रदर्शन कमजोर दिख सकता है। इसके विपरीत, पिछले 12 महीनों के दौरान अधिकतर एशियाई मुद्राओं ने अमेरिकी डॉलर के मुकाबले बढ़त दर्ज की अथवा अपने मूल्य को बनाए रखा। रुपये में इस साल अब तक 3.6 फीसदी की गिरावट आई है जबकि चीन की मुद्रा रेनमिंबी, फिलिपींस की मुद्रा पेसो, दक्षिण कोरिया की मुद्रा वोन, मलेशिया की मुद्रा रिंगित और थाइलैंड की मुद्रा बाट में मजबूती दर्ज की गई।
शुक्रवार को रुपया करीब 74 रुपये प्रति डॉलर पर बंद हुआ जबकि दिसंबर 2019 के अंत में रुपया 72.2 रुपये प्रति डॉलर पर रहा था। दूसरे शब्दों में 1,000 रुपये में अब महज 13.5 डॉलर खरीदे जा सकते हैं जबकि एक साल पहले 14 डॉलर खरीदे जा सकते थे। इसके मुकाबले श्रीलंकाई रुपया और पाकिस्तानी रुपया दोनों मौजूदा कैलेंडर वर्ष में डॉलर के मुकाबले 3.5 फीसदी की गिरावट दर्ज की हैं। भारत के दक्षिण एशियाई पड़ोसी देशों की मुद्राओं का प्रदर्शन भारतीय रुपये के बाद सबसे खराब रहा। इंडोनेशियाई रुपिया में डॉलर के मुकाबले चालू कैलेंडर वर्ष के दौरान 1.9 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई।
ताइवान का डॉलर इस वर्ष एशिया में सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाली मुद्रा रही। इसने अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 6.4 फीसदी की बढ़त दर्ज की। इसके बाद चीन की मुद्रा रेनमिंबी साल के दौरान अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 6.2 फीसदी मजबूत हुई। इसी प्रकार फिलिपींस की मुद्रा पेसो में साल के दौरान 5.2 फीसदी की मजबूती दर्ज की गई जबकि दक्षिण कोरियाई मुद्रा वोन (4.2 फीसदी) और मलेशियाई रिंगित (1.0 फीसदी) में बढ़त दर्ज की गई। दूसरी ओर, थाइलैंड की मुद्रा बाट, बांग्लादेश की टका और वियतनामी डोंग ने पिछले 12 महीनों के दौरान डॉलर के मुकाबले अपने मूल्य को बनाए रखा अथवा मामूली वृद्धि दर्ज की। घरेलू शेयर बाजार में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) द्वारा किए गए रिकॉर्ड निवेश के बावजूद भारतीय मुद्रा की क्रय शक्ति में अन्य प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले कमी दर्ज की गई है। आमतौर पर एफपीआई निवेश बढऩे से मुद्रा को बल मिलता है।
इक्विनॉमिक्स रिसर्च ऐंड एडवाइजरी सर्विसेज के संस्थापक एवं प्रबंध निदेशक जी चोकालिंगम ने कहा, 'दमदार पूंजी प्रवाह, डॉलर में कमजोरी, कच्चे तेल की कीमतों में नरमी और आयात में गिरावट जैसे वृहतआर्थिक कारक रुपये में तेजी के पक्ष में हैं। लेकिन वित्त वर्ष 2021 में भारत की जीडीपी में रिकॉर्ड गिरावट और अधिक खुदरा महंगाई के कारण इनका प्रभाव नहीं दिख रहा है।' नेशनल सिक्योरिटीज डिपॉजिटरी (एनएसडीएल) के आंकड़ों के मुताबिक, इस साल जुलाई के बाद शेयर बाजार में एफपीआई का शुद्ध निवेश 21.7 अरब डॉलर रहा है। इसमें लगभग 70 फीसदी निवेशक पिछले दो महीनों के दौरान किया गया जिससे शेयरों के मूल्य में रिकॉर्ड तेजी दर्ज की गई है। एफपीआई द्वारा किया गया यह निवेश कैलेंडर वर्ष 2012 के बाद का सर्वाधिक निवेश है। कैलेंडर वर्ष 2012 में एफपीआई ने भारतीय शेयर बाजार में 24.4 अरब डॉलर का निवेश किया था। वैश्विक स्तर पर देखा जाए तो कोविड वैश्विक महामारी के बाद डॉलर का प्रदर्शन कमजोर रहा है जबकि उभरते बाजारों की मुद्राओं में तेजी दर्ज की गई है।
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