मुनाफे में जबरदस्त बढ़ोतरी लेकिन वेतन कटौती कर रहीं कंपनियां | श्रम-रोजगार | | महेश व्यास / December 30, 2020 | | | | |
सूचीबद्ध कंपनियों ने लॉकडाउन के दौरान का सबसे ज्यादा मुनाफा सितंबर 2020 में समाप्त तिमाही में कमाया है। उन्होंने लॉकडाउन की वजह से बिक्री में आई गिरावट से कहीं आगे बढ़कर लागत में कटौती कर यह मुनाफा कमाया है। कच्चे माल एवं अन्य परिचालन खर्चों में लागत कटौती की गई जिससे विनिर्माण कंपनियों के लिए कारोबार कर पाना काफी हद तक मुमकिन हो सका। कुल आय में 6.9 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई लेकिन व्यय के सबसे बड़े मद कच्चे माल एवं तैयार उत्पादों की खरीद की लागत 18.9 फीसदी तक गिर गई, वेतन मद में व्यय 3.4 फीसदी बढ़ा और अन्य खर्चों में 9 फीसदी की गिरावट रही। इसने कंपनियों को दूसरी तिमाही में असामान्य लाभ दिलाने में मदद की।
भारत में कॉर्पोरेट कंपनियों के कुल खर्च में वेतन व्यय का अनुपात सापेक्षिक रूप से कम होता है। लॉकडाउन के पहले इसकी औसत हिस्सेदारी 10 फीसदी थी जो 15 वर्षों में 7.5-13 फीसदी के दायरे में रही है। नतीजा यह हुआ कि सितंबर तिमाही में वेतन बिल में 3.4 फीसदी की ठीकठाक बढ़ोतरी का भी लाभ में कुल बढ़त पर खास असर नहीं पड़ा। इस तिमाही में बड़ा मुनाफा कमाने वाली कंपनियों ने वेतन में कटौती के माकूल माना और अपने वेतन बिल में खासी कटौती भी कर दी। वेतन बिल कटौती का मतलब छंटनी एवं वेतन की दर में कटौती दोनों हो सकता है। संभावना यही है कि स्थायी कर्मचारियों की संख्या में कटौती करने के बजाय इन कंपनियों ने वेतन दर में कटौती करते हुए ही वेतन बिल को सीमित रखा।
कर्मचारियों की संख्या कम करने के लिए अनुबंधित श्रमिकों की संख्या कम करने का रास्ता अख्तियार किए जाने की ही अधिक संभावना है। दरअसल अनुबंधित श्रमिकों को किया गया भुगतान कंपनी के वित्तीय विवरण में शामिल नहीं होता है क्योंकि यह भुगतान दूसरे वेंडरों को किए जाने वाले भुगतान की ही तरह मजदूर ठेकेदारों को किया जाता है। पिछले कुछ वर्षों में ठेकेदारों के जरिये मजदूरों को काम पर रखने की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ी है। यह रुझान देखते हुए वेतन बिल में ठीकठाक बढ़ोतरी अध्ययन में शामिल सूचीबद्ध कंपनियों की श्रम लागत में आई कटौती को शायद पूरी तरह नहीं दर्शाती है।
नमूने में शामिल 4,234 कंपनियों में से 2,150 या करीब 50 फीसदी कंपनियों ने एक साल पहले की तुलना में सितंबर तिमाही में अपने वेतन बिल में कटौती की। वहीं 463 कंपनियों के वेतन बिल में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई। और 339 कंपनियों के वेतन बिल में वृद्धि 6.92 फीसदी से भी कम हुई जो कि सितंबर तिमाही की मुद्रास्फीति दर थी। इसका मतलब है कि अध्ययन में शामिल कंपनियों में से कुल 2,952 यानी 70 फीसदी कंपनियों के वेतन बिल में गिरावट मुद्रास्फीति-समायोजन संदर्भ में वास्तविक थी।
जहां मोटे तौर पर कंपनियों ने दूसरी तिमाही में खासा मुनाफा कमाया, वहीं कई उद्योगों को कारोबार ठप होने से बड़ा नुकसान भी उठाना पड़ा। होटल एवं पर्यटन कंपनियों, ऑटो विनिर्माताओं, परिवहन सेवा कंपनियों, रियल एस्टेट एवं खनन कंपनियों को लॉकडाउन की वजह से भारी नुकसान झेलना पड़ा है। इनमें से अधिकांश उद्योगों के कामगार-बहुल होने के नाते इनमें वेतन कटौती उनका वजूद बचाए रखने के लिए शायद जरूरी भी है। होटल एवं पर्यटन कंपनियों ने पारिश्रमिक में सालाना आधार पर 37.9 फीसदी की सबसे बड़ी गिरावट झेली है। परिवहन सेवा से जुड़ी कंपनियों (सभी एयरलाइंस एवं सड़क परिवहन सेवा) के वेतन बिल में 32.3 फीसदी तक की गिरावट देखी गई। रियल एस्टेट कंपनियों के वेतन व्यय में 18.2 फीसदी की कमी आई। इनमें से किसी भी गिरावट में ठेकेदारों के मार्फत श्रमिकों को किए गए भुगतान में आई कमी शामिल नहीं है।
वेतन कटौती करने वाली कुल 2,952 कंपनियों में से 1,113 कंपनियों का मुनाफा सितंबर तिमाही में दोगुने से भी अधिक रहा। दूसरी तिमाही में कुल 37.7 फीसदी कंपनियों का मुनाफा भले ही दोगुना हुआ लेकिन उनके वेतन बिल में गिरावट आई। बाकी 117 कंपनियों का मुनाफा 50 से 100 फीसदी तक बढ़ा और 224 कंपनियों का लाभ 10 से 50 फीसदी तक बढ़ा। इस तरह वेतन बिल में कटौती करने वाली करीब आधी कंपनियों (1,454) के मुनाफे में 10 फीसदी या उससे अधिक वृद्धि दर्ज की गई।
लॉकडाउन से सीधे तौर पर एवं गंभीर रूप से प्रभावित उद्योगों को छोड़ दें तो लॉकडाउन ने मोटे तौर पर कंपनियों के मुनाफे पर कोई खतरा नहीं डाला क्योंकि उन्होंने जिंस कीमतों में आई गिरावट का भरपूर फायदा उठाया। इस तरह लॉकडाउन में भी परिचालन पर असर न पडऩे वाली कंपनियों के वेतन बिल में कटौती काफी हद तक अवसरवाद था, न कि अपना वजूद बचाए रखने के दबाव का असर। अगर यह सच है तो फिर इस पर भी गौर करना होगा कि आखिर यह किस तरह की मौकापरस्ती थी? क्या यह जल्द पैसा बनाने की सोच थी या फिर कंपनियों ने इस आपदा का इस्तेमाल अपने संरचनात्मक बदलाव को मूर्तरूप देने के लिए किया? इसकी संभावना कम है कि कारोबार उस समय वेतन खर्च में कटौती कर पैसे बनाने की कोशिश करेंगे जब वे अपने दूसरे परिचालन व्यय में कटौती कर भी पैसे बना सकते थे।
भले ही भारत एक श्रम-अधिशेष वाली अर्थव्यवस्था है लेकिन यहां पर अच्छी गुणवत्ता वाले श्रमिक मिलना एवं उन्हें अपने साथ बनाए रखना मुश्किल है। लिहाजा मुश्किल दौर में उन्हें कम कर देना समझदारी भरा कदम नहीं कहा जाएगा। और इस बात को कारोबारी दिग्गज बखूबी समझते हैं। ऐसी स्थिति में यही लगता है कि वेतन बिल में कटौती का कदम कंपनियों ने संरचनात्मक बदलाव के लिए ही उठाया है। लॉकडाउन के संकट का इस्तेमाल अतिरिक्त श्रम से छुटकारा पाने के लिए किया गया है। अगर वाकई में ऐसा है तो फिर खत्म हुई नौकरियां लौटने के आसार कम ही हैं और वेतन कटौती को भी शायद पूरी तरह वापस नहीं लिया जाएगा।
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