वर्ष 2021 में सार्वजनिक विमर्श पर चुनाव छाए रहेंगे। चर्चा न केवल आसन्न चुनाव वाले राज्यों असम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल, पुदुच्चेरी और संभवत: जम्मू कश्मीर के सियासी हालात के बारे में होगी बल्कि इस पर भी होगी कि देश भर में क्या एक साथ चुनाव कराए जा सकते हैं? देश भर में एक साथ चुनाव कराए जाने के सवाल पर आने वाले साल में कोई अंतिम फैसला लिए जाने की संभावना है। पश्चिम बंगाल, केरल और पुदुच्चेरी में विपक्षी दलों की सरकारें होने, तमिलनाडु में सहयोगी दल के सत्ता में होने और असम में अपनी सरकार को फिर से सत्ता में लाने की कोशिशों एवं संभवत: जम्मू कश्मीर में भी चुनावी अटकलों के बीच भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की अगले साल विपक्ष के साथ रोमांचक सियासी भिड़ंत देखने को मिलेगी। भाजपा के लिए असम और जम्मू कश्मीर दोनों ही राज्य 'टेस्ट केस' साबित होंगे। दरअसल इन राज्यों में अवैध प्रवासियों, राष्ट्रीय धार्मिक बहुसंख्यकों के अधिकारों और जम्मू कश्मीर के निवासियों से उनके विशेषाधिकारों के बारे में भाजपा के वादों पर आम जनता के यकीन की परख होगी। इसके अलावा यह वर्ष 2022 में उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनावों की तैयारी का साल भी होगा। लेकिन उसके पहले पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के नतीजे वर्ष 2021 के बाकी समय के लिए सियासत का मिजाज तय कर देंगे। चुनौती काफी बड़ी है। कांग्रेस एवं वाम मोर्चे ने वहां पर गठबंधन बनाकर चुनाव लडऩे का फैसला किया है। पिछली बार ये दोनों दल वर्ष 2016 में एक साथ चुनाव लड़े थे और दोनों ने मिलकर करीब 36 फीसदी मत एवं 76 सीटें हासिल की थीं। लेकिन ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने 294 सदस्यीय विधानसभा में 44.9 फीसदी मतों के साथ 211 सीटों जीतकर भारी बहुमत हासिल किया और सत्ता-विरोधी रुझान को धता बता दिया था। लेकिन इस बार सत्ता-विरोधी रुझान एक कारक बनते नजर आ रहे हैं। उसके साथ बंगाल में भाजपा के उभार को भी जोड़ दें तो हमें दो तरह की स्थितियां देखने को मिल सकती हैं- या तो वाम-कांग्रेस गठबंधन को नया जीवन मिल जाएगा या फिर उसका पूरी तरह सफाया ही हो जाएगा। इसी तरह तमिलनाडु में भी सत्तारूढ़ अन्नाद्र्रमुक एवं उसके सहयोगी भाजपा को कड़ी चुनौती का सामना करना होगा। अन्नाद्रमुक के एक धड़े की नेता शशिकला की अगर साल के पहले तीन महीनों में रिहाई हो जाती है तो इस दक्षिणी राज्य की राजनीति में अप्रत्याशित नतीजे देखने को मिल सकते हैं। लोकप्रिय फिल्मी सितारों रजनीकांत और कमल हासन के भी सियासी रंगमंच पर दाखिल हो जाने से दावेदारों की भीड़ इक_ी हो गई है। मुख्य विपक्षी दल द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम (द्रमुक) सत्ता-विरोधी रुझानों की वजह से सहयोगी दल कांग्रेस के साथ मिलकर आने वाले चुनावों में बढ़त की स्थिति में रह सकता है। ऐसा लगता है कि भाजपा के लिए तमिलनाडु के मोर्चे को जीत पाना अभी मुश्किल है। जम्मू कश्मीर में अपनी प्रशासनिक स्थिति मजबूत करने में लगे केंद्र को विधानसभा चुनाव कराने के पहले वहां की सीटों के परिसीमन का भी फैसला करना होगा। लेकिन यह एक ऐसी कवायद है जो कई समस्याओं से घिरी हुई है। लेकिन सरकार इस राज्य में चुनाव संपन्न कराने के लिए प्रतिबद्ध है, लिहाजा इसके इतिहास में 2021 का साल काफी अहम होगा। जहां चुनाव एवं उसके नतीजे विपक्ष के लिए अहम होंगे, वहीं वर्ष 2021 में कांग्रेस के भीतर नेतृत्व का मसला पूरी तरह हल हो जाने की उम्मीद है। इस सिलसिले में पार्टी के भीतर आंतरिक बैठकों एवं आंतरिक चुनाव संपन्न कराने की भी संभावना है। जहां तक संसद से जुड़े मसलों का सवाल है तो वर्ष 2021 में सरकार या विपक्ष किसी के लिए भी कुछ खास होने की संभावना कम है। अगले साल राज्यसभा के महज आठ सदस्यों का कार्यकाल पूरा होगा जिनमें से चार जम्मू कश्मीर, तीन केरल और एक पुदुच्चेरी से हैं। कार्यकाल पूरा करने वाले सदस्यों में कांग्रेस के गुलाम नबी आजाद भी हैं जो राज्यसभा में विपक्ष के नेता हैं। कांग्रेस के संकटमोचक माने जाने वाले अहमद पटेल के निधन के बाद गुलाम नबी ही इस भूमिका में नजर आ सकते हैं। कांग्रेस को तय करना होगा कि वह उन्हें किसी अन्य राज्य से राज्यसभा में भेजे या फिर उनकी जगह किसी और को चुने। शासन से जुड़े कदमों का जिक्र करें तो केंद्रीय मंत्रिमंडल में फेरबदल का फैसला लंबे समय से लंबित है। कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थामने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया मंत्री बनने का इंतजार कर रहे हैं। बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी को भी हाल ही में राज्यसभा का सदस्य चुने जाने के बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किए जाने की संभावना है। इसके अलावा चुनावों का सामना करने जा रहे बंगाल एवं असम से भी कुछ नए मंत्री बनाए जा सकते हैं। कहा जा रहा है कि सरकार मंत्रालयों को तर्कसंगत बनाने की योजना पर भी काम कर रही है। हो सकता है कि इस काम को भी मंत्रिमंडल फेरबदल के साथ ही अंजाम दे दिया जाए। अन्य नीतिगत कदमों में सबसे ऊपर 'एक राष्ट्र एक चुनाव' का विचार होगा। इस संकल्पना को सरकार की तरफ से इस साल अधिक शिद्दत से उछाले जाने की उम्मीद है। डेटा सुरक्षा पर संयुक्त संसदीय समिति की रिपोर्ट किसी भी दिन आ सकती है। आने वाले समय में एक डेटा नियामक का नया पद भी सृजित हो जाएगा। हरेक भारतीय नागरिक की जिंदगी पर असर डालने की क्षमता होने से इस कानून के ऐतिहासिक होने की पूरी उम्मीद है। कुल मिलाकर वर्ष 2021 राजनीतिक गतिविधियों के लिहाज से सरकार एवं विपक्ष दोनों के ही लिए गहमागहमी से भरा होने की उम्मीद है।
