यदि महामारी के दौरान वर्ष 2020 में दर्ज की गई मजबूत रफ्तार बरकरार रहती है तो भारत में डिजिटल बैंकिंग कारोबार 21वीं सदी के तीसरे दशक में तेजी से बढऩे की संभावना है। 2020 का अनुभव ऑनलाइन लेनदेन और ग्राहक अनुभव के लिए जरूरी इन्फ्रास्ट्रक्चर की चुनौतियों से जुड़ा रहा, भले ही बैंकरों का कहना है कि डिजिटल लेनदेन की दिशा में बदल रहे उपभोक्ता परिवेश की वजह से अच्छी वृद्घि नजदीक है। पिछले वर्ष के दौरान नवाचार को बढ़ावा और अतिरिक्त निवेश से क्षमताएं बढ़ाने और व्यवस्था को मजबूत बनाने में मदद मिलेगी। डिजिटल भुगतान की वृद्घि को ध्यान में रखते हुए रेडसीर कंसल्टिंग की रिपोर्ट में कहा गया है कि यह वर्ष 2025 तक 3 गुना से ज्यादा बढ़कर 7,092 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच जाने की संभावना है, क्योंकि इससे वित्तीय समावेशन से जुड़ी सरकारी नीतियों और व्यवसाय के तेजी से बढ़ रहे डिजिटलीकरण से मदद मिल रही है। डिजिटल भुगतान बाजार वित्त वर्ष 2020 में 2,162 लाख करोड़ रुपये का था। 16 करोड़ विशिष्टï मोबाइल भुगतान उपयोगकर्ताओंं की मौजूदा समय में वर्ष 2025 तक 5 गुना बढ़कर 80 करोड़ पर पहुंच जाएगी। रिजर्व बैंक इनोवेशन हब (आरबीआईएच) के सदस्य (शासकीय परिषद) मृत्युंजय महापात्र ने कहा, 'ट्रांजेक्शन के संदर्भ ज्यादा सोचने का समय बीत गया है। लेकिन हमें संपूर्ण उद्यम आर्कीटेक्चर के नजरिये से सोचना होगा। यह 2020 से एक सबक था।' चार टें्रड से डिजिटल बैंकिंग में बदलाव आने की संभावना है। पहला है एंटरप्राइज आर्कीटेक्चर, जो व्यवसाय को प्रौद्योगिकी से जोडऩे से संबंधित है। मौजूदा सोच (आरबीआई समेत) यह है कि नवाचार डिजिटल दुनिया में महत्वपूर्ण है, और यह पारंपरिक दुनिया में पहले जो कुछ हुआ, उसका महज स्वचालन नहीं है। 2020 में डिजिटलीकरण के क्लाउड घटक को देखते हुए, यह पहले मोनो क्लाउड व्यवस्था थी जिसमें आप गूगल क्लाउड या एमेजॉन क्लाउड पर जाते थे। अब, हाइब्रिड क्लाउड चलन में है। इसके परिणामस्वरूप, कोई भी तीन या चार क्लाउड प्रणालियों का इस्तेमाल कर सकता है। दूसरा पहला यह है कि कई बैंकों के लिए पुराने प्रयोग 2021 से बदलने शुरू होंगे, क्योंकि इनमें से ज्यादातर एक दशक पुराने हैं। बैंकिंग में ज्यादातर आधुनिकीकरण 2010 के शुरू में कोर बैंकिंग की लहर के दौरान हुआ। अब, कई बैंक अपने डेटा केंद्रों और पुराने एप्लीकेशनों को पुन: व्यवस्थित कर रहे हैं। इसके अलावा 'प्लेटफॉर्माइजेशन' भी है। एसबीआई के योनो का उदाहरण ले लीजिए, जिसमें ज्यादातर ग्राहक सेवाएं एक ऐप के जरिये उपलब्ध हैं जिससे सुपरऐप या अम्ब्रेला ऐप बन गया है। उत्पादकता और अनुपालन संबंधित क्षेत्रों में खर्च तीसरा पहलू है, क्योंकि वित्त वर्ष 2019 और वित्त वर्ष 2020 के बीच दुनिया ने फंसे ऋणों में बड़ी तेजी दर्ज की और रुझान छोटे ऋणों पर केंद्रित रहा। छोटे ऋण प्रौद्योगिकी-केंद्रित होते हैं, लेकिन कॉरपोरेट ऋण जोखिम-प्रबंधन-केंद्रित होते हैं। इसलिए, नियामक और अन्य संस्थाएं बैंकों को अनुपालन पर ज्यादा रकम खर्च करने के लिए प्रोत्साहित करेंगे। चौथा, उत्पादकता और दक्षता वृद्घि है जिससे सिर्फ ग्राहक जोडऩे की धारणा के बजाय एक बार फिर से तरजीह मिलेगी। सिंडिकेट बैंक के पूर्व प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्याधिकारी महापात्र का कहना है कि इसकी वजह यह है कि बैंकों को मुनाफे की खास सीमा को बनाए रखने पर ध्यान देना होगा।
