बैंकिंग क्षेत्र के एनपीए में हो सकती है तेज बढ़ोतरी | निकुंज ओहरी / नई दिल्ली December 28, 2020 | | | | |
विशेषज्ञों को उम्मीद है कि चालू वित्त वर्ष के दौरान बैंकों की गैर निष्पादित संपत्तियों (एनपीए) में तेज बढ़ोतरी हो सकती है, क्योंकि कोविड-19 के कारण आए व्यवधान के कारण चूक बढ़ सकती है। पूर्व वित्तीय सेवा सचिव आर गोपालन ने कहा कि महामारी और कोविड के पहले अर्थव्यवस्था सुस्त रहने के कारण मॉरेटोरिम का लाभ उठाने वाले करीब 50 प्रतिशत खातों का पुनर्गठन हो सकता है। उन्होंने कहा कि पुनर्गठन में जाने वाले इन खातों में से एक तिहाई या 6 से 9 लाख करोड़ रुपये एनपीए में तब्दील हो सकते हैं।
एक और पूर्व वित्तीय सेवा सचिव डीके मित्तल ने अनुमान लगाया है कि बैंकों का कुल अनुमानित एनपीए कुल कर्ज का 12 से 15 प्रतिशत हो सकता है। पूर्व वित्तीय सेवा सचिव सुभाष चंद्र गर्ग को उम्मीद है कि खराब कर्ज बढ़कर 9 से 10 लाख करोड़ रुपये हो सकता है क्योंकि पुनर्गठन मूल प्रकृति को नहीं खत्म करता। कोविड-19 के असर के तूफान से उधारी लेने वालों को राहत देने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने मॉरिटोरियम की घोषणा की थी, जिसमें उधार लेने वालों को कर्ज के एनपीए के रूप में वर्गीकरण के बिना पुनर्भुगतान टालने की अनुमति दी गई थी। मॉरिटोरियम की अवधि 31 अगस्त को खत्म हो गई, लेकिन उच्चतम न्यायालय ने मॉरिटोरियम पर कई याचिकाओं की सुनवाई के दौरान आदेश दिया कि अगले आदेश तक कोई भी खाता एनपीए के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जाए। रिजर्व बैंक ने 1 मार्च 2020 तक 30 दिन से ज्यादा चूक न करने वाले व्यक्तियों और कॉर्पोरेट उधारी लेने वालों को 31 दिसंबर 2020 तक बैंकों में आवेदन कर समाधान ढांचे में आने की सुविधा दी थी।
वहीं सरकार ने कर्ज लेने वालों की मदद के लिए ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवाला प्रक्रिया एक साल तक टालने का फैसला किया है। गोपालन ने कहा कि आईबीसी और एनपीए चिह्नित करने की कार्रवाई को निलंबित किए जाने से बैंकिंग क्षेत्र को नुकसान हुआ है। मित्तल ने कहा कि इस समय बैंकों में कोई पारदर्शिता नहीं है और वे कर्ज के उन आंकड़ों को घोषित नहीं करते, जिनमें चूक हो सकती है और ऐसे में बैंकिंग व्यवस्था के स्वास्थ्य का आकलन करना मुश्किल है। उच्चतम न्यायालय द्वारा एनपीए की पहचान पर लगाई गई रोक हटने के बाद रिजर्व बैंक उन उधारी लेने वालों के आंकड़े देने को कह सकता है, जो चूक कर सकते हैं। इससे यह सुनिश्चित हो सकेगा कि अगर एनपीए की पहचान करने पर लगा प्रतिबंध हटता है तो व्यवस्था को कोई झटका नहीं लगेगा और इससे नीति निर्माताओं को उठाए जाने वाले कदमों पर फैसला करने में मदद मिलेगी।
इक्रा लिमिटेड के वित्तीय क्षेत्र की रेटिंग के उपाध्यक्ष अनिल गुप्ता के मुताबिक साïर्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पीएसबी) की सकल गैर निष्पादित संपत्तियां बढ़कर 8.6 से 9 लाख करोड़ रुपये हो सकती हैं, जो मार्च 2020 तक 7.2 लाख करोड़ रुपये थीं। गुप्ता ने कहा कि अगर सरकार की क्रेडिट गारंटी योजना और पुनर्गठन योजना ठीक से काम नहीं करती तो यह और ज्यादा हो सकता है। इंडिया रेटिंग ऐंड रिसर्स में बैंकिंग एवं फाइनैंशियल रेटिंग के प्रमुख प्रकाश अग्रवाल ने कहा कि तमाम बैंक पहले ही ज्यादा शुरुआती चूक के आंकड़े जारी कर रहे हैं, जिससे व्यवस्था में बने दबाव के संकेत मिलते हैं। उन्होंने कहा कि आर्थिक गतिविधियों में अगर टिकाऊ सुधार नहीं होता है तो यह मानने की वजह है कि आने वाली तिमाहियों में यह बैंकों के एनपीए के आंकड़ों में नजर आने लगेगा। सिबिल की ओर से अगस्त 2020 में जारी आंकड़ों के मुताबिक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में खुदरा कर्ज में चूक जारी किए गए कर्ज का 5 प्रतिशत है, जिन्होंने 30 दिन की चूक की है और 2.8 प्रतिशत कर्ज में 90 दिन की चूक है। इक्रा के गुप्ता ने कहा कि सरकारी बैंकों में चूक बढऩे की संभावना है, लेकिन वे नए एनपीए का बड़ा हिस्सा समायोजित करने में सक्षम होंगे।
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