पांच बड़ी घरेलू फार्मास्युटिकल कंपनियों में शुमार ल्यूपिन लिमिटेड अब अपनी नई दवाओं की शोध कार्यक्रम के पुनर्निर्माण पर ध्यान केंद्रित करने की योजना बना रही है। इस बाबत कंपनी बायोटेक क्षेत्र में अपना पांव पसारने की जुगत में लगी हुई है। ल्यूपिन की दवा शोध के पुनर्निर्माण कार्यक्रम की दिशा में उठाए गए कदम से पिछली असफलताओं को पाटने में मदद मिलेगी। इस लिहाज से बायोटेक में प्रवेश करने से इसके 30 से 40 अरब डॉलर के बाजार पर काबिज होने का मौका मिलेगा। अगर दूसरी भारतीय दवा कंपनियों से तुलना की जाए, तो ल्यूपिन के पास मात्र चार ऐसी दवाएं है, जो क्लिनिकल ट्रायल चरण में है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि ल्यूपिन इस दिशा में कितना पीछे है। ग्लेनमार्क और पीरामल हेल्थकेयर जैसी दवा कंपनियों के पास क्लिनिकल ट्रायल चरण में लगभग दर्जनों दवाइयों की फेहरिस्त है। पिछले पांच साल में डॉ. रेड्डीज लेबोरेटरीज, ग्लेनमार्क और रैनबेक्सी जैसी कंपनियों ने विकास के तहत आने वाली दवाओं की आउट लाइसेंसिंग में काफी सफलता पाई और इसका काफी अच्छा कारोबार भी किया है। ल्यूपिन के प्रबंध निदेशक कमल शर्मा ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, 'हमलोगों के पास नई रसायन इकाई शोध के लिए महत्वाकांक्षी योजनाएं थी, लेकिन यह कसौटी पर खरा नहीं उतर सका। इसलिए हमलोग फिर से इसे संगठित कर रहे हैं, ताकि इस बार सफलता हाथ लगे।'
