2021 में पटरी पर आएगी भारत की अर्थव्यवस्था | अभिजित लेले / December 27, 2020 | | | | |
भारत की कंपनियों का दूसरी तिमाही में प्रदर्शन उम्मीद से बेहतर रहा है और 2021 में अर्थव्यवस्था सामान्य होने की दिशा में है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की कर्ज पुनर्गठन समिति के चेयरमैन और दिग्गज बैंकर रहे केवी कामत ने अभिजित लेले के साथ बातचीत में कहा कि स्वरोजगार श्रेणी और असुरक्षित कर्ज लेने वालों को लेकर थोड़ी चिंता है, जिस पर भारत को ध्यान देने की जरूरत है। संपादित अंश...
2020 खत्म होने को है, अर्थव्यवस्था व वित्तीय व्यवस्था को लेकर आपका क्या आकलन है?
मार्च में जब देशबंदी की घोषणा हुई थी, निराशा का माहौल था। लेकिन 2 महीने से भी कम समय में भारत अपने पैरों पर खड़ा हो गया। सरकार ने कुछ कदम उठाए, जिसकी वजह से हम अच्छी स्थिति में आ गए। पहली तिमाही में दर्द अधिक था। लेकिन जून का प्रदर्शन आश्चर्यजनक रहा, जिससे अच्छा वक्त आने के संकेत मिले। खासकर पहली दो तिमाहियों में वित्तीय क्षेत्र का प्रदर्शन रहस्योद्घाटन जैसा रहा। इससे साफ संकेत मिला कि बीते डेढ़ वर्षों के मामलों की साफ सफाई करने की जरूरत है और जो पूंजी लाई गई, वह बहुत मजबूत थी। 2021 में रिकवरी के हिसाब से अर्थव्यवस्था का बेहतर पूंजीकरण हुआ है।
सरकार द्वारा किए गए कार्य और कॉर्पोरेट सेक्टर के बारे में आपका क्या अनुमान है?
सितंबर तिमाही के आंकड़ों से पता चलता है कि कॉर्पोरेट इंडिया अनुमान से कहीं ज्यादा तेजी से बढ़ा है। क्षमता का इस्तेमाल 90 प्रतिशत से ज्यादा रहा। आपूर्ति शृंखला भी परिचालन प्रदर्शन के मामले में इसी स्तर पर पहुंच गया और वित्तीय प्रदर्शन उम्मीद से बेहतर रहा। साथ ही दूसरी तिमाही में खुदरा ग्राहकों की अच्छी सक्रियता रही। मेरे हिसाब से सरकार की पहुंच के मामले में यह बेहतर उपलब्धि रही। इससे साफ पता चलता है कि सरकार ने अपना काम किया है। महामारी ने हमारे सामने चुनौतियां पेश की हैं। विनिर्माण और आतिथ्य जैसे क्षेत्रों में दबाव है और इस क्षेत्र में तकलीफ बनी हुई है। वहीं कृषि, सूचना तकनीक और औषधि क्षेत्रों का प्रदर्शन बेहतर रहा है।
आपने कहा कि कॉर्पोरेट क्षेत्र का प्रदर्शन उम्मीद से बेहतर रहा है, इसमें किस चीज से मदद मिली?
कॉर्पोरेट इंडिया ने नई सामान्य स्थिति को अपनाया और उत्पादकता और कुशलता उच्च स्तर पर करने पर ध्यान केंद्रित किया। इससे जो सीख मिली, व्यवहार में उसका इस्तेमाल हुआ। खुदरा को लेकर व्यवहार में बदलाव को देखें तो पता चलता है कि ग्राहकों ने भी इसे अपना लिया।
डिजिटल की इसमें क्या भूमिका रही?
कोविड की वजह से व्यक्तियों व कॉर्पोरेट ने तकनीक की ओर कदम बढ़ाए। कोविड काल में डिजिटल बदलाव मजबूत हुआ। डिजिटल की स्वीकार्यता बढ़ी और वह विजेता बनकर उभरा। यूनीफाइड पेमेंट्स इंटरफेस का महत्त्व बढ़ा। कोविड के बाद के दौर में 'फिजिटल' दुनिया बढ़ी, जिसमें फिजिकल और डिजिटल का मिश्रण है।
डिजिटल माहौल बढऩे के साथ कई दिक्कतें आईं, क्या आपको लगता है कि बैंकों को अपनी क्षमता बढ़ाने की जरूरत है?
डिजिटल प्लेटफॉर्म में कनेक्टिविटी, बैंडविड्थ और इसकी लागत शामिल है, जो बैंकिंग व वित्तीय क्षेत्र के लिए अहम है। इसे नापा जा सकता है। किसी ने भी 9 महीने में बैंडविड्थ को लेकर कोई शिकायत नहीं की न ही इसकी लागत बढ़ाई। बैंडविड्थ वहनीय है और इसे बढ़ाया भी जा सकता है। हर बैंक अपना डिजिटल काम बढ़ा सकता है और ग्राहकों को सेवाएं मुहैया करा सकता है। तकनीक सक्षम वित्तीय सेवाओं में प्रतिस्पर्धा होगी, जिससे एक दूसरे को लाभ मिलेगा। पिछले 25 साल में तकनीक की लागत तेजी से कम हुई है। वहनीयता का सवाल अब बेकार हो गया है। आपके पास जो पूंजी है, तकनीक के इस्तेमाल के लिए काफी है।
अगर कर्ज देने की स्थिति देखें तो बैंक खुदरा क्षेत्र पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं, जबकि चूक का जोखिम बढ़ रहा है। परिवारों की कमाई मध्यावधि के हिसाब से सुधार की संभावना धूमिल है। ऐसी स्थिति से कैसे निपटा जा सकेगा?
अगर आप कॉर्पोरेट इंडिया को देशें तो यह विस्तार की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त नकदी का सृजन कर रहा है। ऐसे में बैंक खुदरा कर्ज पर ध्यान बढ़ाएंगे। दीर्घावधि धन के रूप में कॉर्पोरेट की ओर से ऋण की मांग आएगी। इस तरह से आपको खुदरा संपत्तियों के हिसाब से आपको जोखिम बढ़ाना होगा। हमें अगली कुछ तिमाहियों के सूक्ष्म आंकड़ों पर नजर रखनी होगी। खासकर स्वरोजगार और असुरक्षित कर्ज लेने वालों की ओर से कुछ समस्याएं हैं।
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