रोजगार सृजन होगी बड़ी चुनौती | सोमेश झा / नई दिल्ली December 27, 2020 | | | | |
कोविड-19 महामारी ने देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। इससे तमाम दूसरी चुनौतियों के साथ रोजगार की समस्या भी पैदा हो गई है। ऐसे हालात में अगले वर्ष सरकार के लिए रोजगार बाजार में जान फूंकना सबसे बड़ी आर्थिक चुनौती होगी। सरकार जनवरी-मार्च 2020 और अप्रैल-जून 2020 की अवधि में शहरों में श्रम बाजार का सर्वेक्षण कर चुकी है, लेकिन इसकी रिपोर्ट अब तक जारी नहीं की गई है। सरकारी आंकड़े उपलब्ध नहीं होने की सूरत में श्रम बाजार की नब्ज टटोलने का सबसे बड़ा एवं व्यापक जरिया सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (सीएमआईई) का कंज्यूमर पिरामिड सर्वे रह जाता है।
सीएमआईई के आंकड़ों के अनुसार मई के पहले सप्ताह में बेरोजगारी दर बढ़कर 27.1 प्रतिशत हो गई थी। उस समय देश में कोविड-19 की रोकथाम के लिए लॉकडाउन लगा दिया गया था। नवंबर के पहले सप्ताह में यह दर कम होकर 5.35 प्रतिशत रह गई, लेकिन 20 दिसंबर तक यह लगभग दोगुना बढ़कर 10.10 प्रतिशत हो गई। इस तरह, वर्ष जून के बाद बेरोजगारी दर उच्चतम स्तर पर पहुंच गई। सरकार के मोटे अनुमानों के अनुसार औपचारिक क्षेत्र में लॉकडाउन लगने के बाद छह महीनों के दौरान करीब करीब 20 से 30 लाख रोजगार समाप्त हो गए। घरेलू श्रम बाजार में औपचारिक क्षेत्र का योगदान करीब 10 प्रतिशत होता है। यह अनुमान कर्मचारी भविष्य निधि संगठन और कर्मचारी राज्य बीमा निगम के आंकड़ों पर आधारित है। सीएमआईई के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्याधिकारी महेश व्यास का कहना है कि श्रम बाजार का आकार कम होना उतनी जटिल समस्या नहीं है जितनी अच्छे रोगजारों का खत्म हो जाना है।
नवंबर 2020 तक रोजगार का कुल आंकड़ा 39.36 करोड़ था जबकि वर्ष 2019-20 में यह आंकड़ा 40.39 करोड़ था। सीएमआईई के आंकड़ों के अनुसार करीब 1 करोड़ रोजगार छिन गए, वहीं नियमित वेतनभोगी रोजगार में 1.76 करोड़ की कमी आई। सीएमआईई के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्याधिकारी महेश व्यास ने कहा, 'कम भुगतान करने वाले और निम्र गुणवत्ता वाली नौकरियों के विकल्प की तरफ बढऩा एक परेशान करने वाला संकेत है। 2020 में भारत में अच्छी गुणवत्ता वाली नौकरियों की संख्या में सर्वाधिक कमी आई।' व्यास ने कहा कि कृषि क्षेत्र ने 10 लाख नए रोजगार जोड़ कर श्रम बाजार की लाज रख ली।
इसमें कोई शक नहीं कि देश की अर्थव्यवस्था में अब सुधार दिखना शुरू हो गया है, लेकिन कोविड-19 विषाणु पर अनिश्चितता बनी रहने से केंद्र सरकार फूंक-फूंक कर कदम रख रही है। दूसरी तिमाही में विनिर्माण क्षेत्र में 0.6 प्रतिशत तेजी देखी गई। इससे पहले अप्रैल-जून तिमाही में इसमें 39.9 प्रतिशत की गिरावट आई थी। विश्लेषकों के अनुसार मुख्य रूप से लागत कम करने के उपायों की तेजी लाने में भूमिका रही। जुलाई-सितंबर अवधि में छोटी कंपनियों में कर्मचारियों पर लागत 10-12 प्रतिशत से कम हो गई। कर्मचारियों की संख्या में कमी, वेतन में कटौती या फिर दोनों वजहों से ऐसा हुआ होगा।
मैनपावर ग्रुप एम्प्लायमेंट आउटलुक सर्वे रिपोर्ट के अनुसार जनवरी-मार्च 2021 में नई नियुक्तियां करने में कंपनियां सतर्कता बरत सकती हैं क्योंकि अगले वर्ष के लिए अनुमान उतने खुशनुमा नहीं लग रहे हैं। जब लॉकडाउन की शुरुआत हुई थी तो लाखों की संख्या में प्रवासी कामगार शहरों से निकलकर अपने गांव लौट आए। ये सभी लोग गैर-संगठित क्षेत्र का हिस्सा थे, जहां रोजगार या फिर किसी तरह की आर्थिक सुरक्षा नहीं थी। अब उन्हें एक ऐसी परिस्थिति का सामना करना पड़ रहा है जब रोजगार बाजार का आकार कम हो गया है और अच्छी गुणवत्ता वाले रोजगार कम हो गए हैं। कंपनियों ने छोटी अवधि के लिए कर्मचारी रखने शुरू कर दिए हैं या फिर उन्हें कोई सामाजिक सुरक्षा लाभ नहीं दिया जा रहा है।
टीका आने की संभावनाएं जितनी बढ़ेंगी, उतनी तादाद में कामगार अधिक भुगतान, बेहतर रोजगार सुरक्षा की आशा में 2021 में शहरों की ओर लौटेंगे। हालांकि 1 अप्रैल से पूरे देश में नए श्रम कानून लागू हो जाएंगे। इनके तहत न्यूनतम वेतन एवं वेतन की परिभाषा में बदलाव के बाद वेतन के मद में कंपनियों का खर्च बढ़ेगा, लेकिन उन्हें अपनी जरूरत के अनुबंध पर कामगार रखने की सुविधा भी मिल जाएगी। कई छोटी कंपनियों को अनुबंध आधारित श्रम से संबंधित कानूनों का पालन नहीं करना होगा। अगर वे 50 से कम कामगार (पहले 20) अनुबंध पर रखती हैं तो अनुबंध पर काम करने वालो लोगों को सुरक्षा देने वाले प्रावधानों का पालन नहीं करना होगा। महामारी के आने से पहले ही मध्य प्रदेश, गुजरात और राजस्थान, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों ने अपने श्रम कानूनों में बदलाव कर दिए थे, जो कंपनियों के लिए अधिक अनुकूल थे। कारखाने लगाने के लिए लाइसेंस और उनके निरीक्षण की शर्तें आसान हो गईं। कामगारों के हितों की रक्षा करने वाले प्रावधान समाप्त कर दिए गए। नए श्रम कानून से कई बड़े कारखानों में श्रमिकों में असंतोष पनप सकता है। इसकी झलक भी मिलनी शुरू हो गई कर्नाटक में टोयोटा किर्लोस्कर के बिडदी संयंत्र में कामगार 10 नवंबर से विरोध कर रहे हैं। कंपनी ने अनुशासनात्मक कार्रवाई करते हुए एक यूनियन सदस्य को बर्खास्त कर दिया था, जिससे कामगार आक्रोश में हैं। जब मामला गंभीर रूप लेने लगा तो वहां लॉकडाउन की घोषणा कर दी गई। कंपनी का कहना है कि उसके केवल 5 से 10 प्रतिशत कर्मचारी ही काम पर लौटने के लिए तैयार दिख रहे हैं।
इस महीने के शुरू में बेंगलूरु के निकट विस्ट्रॉन कॉर्पोरेशन के संयंत्र में अनुबंध पर काम करने वाले कामगार बकाया वेतन नहीं मिलने, वेतन में कटौती और लंबे समय तक काम की शिकायतों के बाद हिंसा पर उतारू हो गए। ऐपल के लिए आईफोन बनाने वाले इस संयंत्र को खासा नुकसान पहुंचा और यह बंद कर दिया गया। मामले का निपटारा होने तक ऐपल ने विस्ट्रॉन के साथ किसी तरह के नए कारोबार अनुबंध करने से इनकार कर दिया है। इससे पहले जून में जब वैश्विक स्तर की खुदरा कंपनी एचऐंडएम ने कर्नाटक में गोकलदास एस्पोट्र्स लिमिटेड के साथ अपने कारोबारी संबंध धीरे-धीरे समाप्त करने का निर्णय लिया तो 1,000 से अधिक कामगारों की नौकरियां चली गईं। संगठन बनाने के कामगारों के अधिकार से संबंधित न्यूनतम आवश्यक शर्तों का अनुपालन नहीं करने के संदेह में एचऐंडएम ने यह फैसला किया था। इसके बाद गोकलदास एक्सपोट्र्स ने यूरो क्लोदिंग कंपनी संयंत्र बंद कर दिया और कर्मचारियों को निकाल दिया। मौजूदा परिस्थितियों के बीच अगले वर्ष ही पता चल पाएगा कि सरकार विनिर्माताओं के लिए सुगम कारोबारी माहौल सुनिश्चित करने के साथ ही रोजगार सृजन एवं कामकाज के लिए बेहतर माहौल तैयार कर पाती है या नहीं।
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