भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने बैंकिंग नियामक को पत्र लिखकर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में बीते पांच साल के दौरान पूंजी डालने के बाद उनके प्रदर्शन के बारे में जानकारी मांगी है। इसके साथ ही इस बारे में अगर कोई अध्ययन किया गया हो तो उसकी जानकारी भी सरकार और सीएजी के साथ साझा करने का अनुरोध किया गया है। एक शीर्षस्थ सूत्र ने कहा, 'इस घटनाक्रम को राजकोषीय दबाव की स्थिति में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के पुनर्पूंजीकरण की लागत के संदर्भ में देखा जाना चाहिए।' उन्होंने कहा, 'यह संभवत: निजीकरण से पहले बैंकों के वास्तविक मूल्य का आकलन करने तथा भविष्य में पुनर्पूंजीकरण के लिए एकसमान मानदंड अपनाए जाने का हिस्सा हो सकता है।' सीएजी अपने पत्र के माध्यम से 2021-22 के बजट से पहले भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पर्यवेक्षण ढांचे को भी सामने लाया है। ऐसा इसलिए कि यह सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की सेहत से जुड़ा है। आरबीआई के पूर्व गवर्नर ऊर्जित पटेल ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के संचालन में आरबीआई की भूमिका को अपेक्षाकृत कमतर कहा था। आरबीआई की भारत में बैंकिंग के रुझान एवं प्रगति (टीऐंडपी : 2018-19) रिपोर्ट के एक साल के अंदर सीएजी ने यह पत्र आरबीआई को लिखा है। इस रिपोर्ट में आरबीआई ने कहा था कि आगे चलकर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की वित्तीय स्थिति का आकलन पूंजी बाजार से पूंजी जुटाने की उनकी क्षमता के आधार पर किया जाना चाहिए, न कि पूंजी के लिए सरकार पर निर्भर रहना चाहिए। इसमें पूंजी कन्वर्जन बफर (सीसीबी) की अंतिम किस्त को 2019-2020 तक 0.625 से 2.5 फीसदी करने की योजना को टालने का भी उल्लेख किया गया है। इससे बैंकों के पास 37,000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त पूंजी उपलब्ध हुई है। इससे वे 3.5 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की उधारी दे सकते हैं। इसे एकबार फिर 2020-21 के लिए टाल दिया गया था। 2015-16 और 2019-20 के बीच केंद्र सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में 3.56 लाख करोड़ रुपये की पूंजी डाली है। यह पूंजी इक्विटी शेयर और पुनर्पूंजीकरण बॉन्ड के जरिये मुहैया कराई गई है। 24 दिसंबर, 2020 को इन बैंकों का बाजार पूंजीकरण 4.11 लाख करोड़ रुपये या बीते पांच साल में निवेश की गई पूंजी से 13.48 फीसदी अधिक था। एक अन्य सूत्र ने कहा, 'बैंकों का बाजार पूंजीकरण निवेश की गई पूंजी से काफी कम थी लेकिन हाल के समय में शेयर बाजार में आई तेजी से इनका बाजार पूंजीकरण बढ़ा है।' एक और चीज जिसके बारे में विवरण मांगा गया है, वह है सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का शुद्घ मुनाफा, जिसमें पुनर्पूंजीकरण बॉन्डों पर ब्याज आय को समायोजित करने के बाद गिरावट आई है। सीएजी ने 2008-09 और 2016-17 के बीच पुनर्पूंजीकरण के बाद इन बैंकों के अपने ऑडिट का संदर्भ दिया है, जिसे 28 जुलाई, 2017 को सौंपा गया था। ऑडिट में कहा गया था कि केंद्र ने 2008-09 से 2016-17 के दौरान सरकारी बैंकों में 1.19 लाख करोड़ रुपये की पूंजी डाली थी। 2010-11 में दूसरे चरण में 6,423 करोड़ रुपये सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की सूचना के आधार पर निवेश किया गया था और इस बारे में वित्तीय सेवाओं के विभाग द्वारा कोई स्वतंत्र सत्यापन नहीं कराया गया था। और सीएजी के ऑडिट में यह सत्यापित नहीं हो सका था कि वित्तीय सेवाओं के विभाग द्वारा पूंजी आवश्यकताओं का आकलन आईसीएएपी तथा बैंकों की सालाना वित्तीय पर्यवेक्षण रिपोर्ट के अनुरूप था या नहीं। उदाहरण के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने 2011-12 से 2014-15 के दौरान प्रदर्शन आधारित पूंजी निवेश को लेकर 2012 की शुरुआत में वित्तीय सेवाओं के विभाग के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे। लेकिन वास्तविक पूंजी निवेश समझौता ज्ञापन के लक्ष्य पर पूरी तरह आधारित नहीं था। वास्तविक और अनुमानित मूल्य के आकलन का मानदंड बदल गया और 2010-11, 2015-16 और 2016-17 में यह प्रदर्शन आधारित पूंजी निवेश से जरूरत आधारित पूंजी निवेश में बदल गया।
