केंद्र सरकार और मध्य प्रदेश सरकार किसानों को लगातार दिलासा देती रही हैं कि नए कृषि कानून आने के बाद भी मंडी और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की व्यवस्था पहले की तरह जारी रहेगी। लेकिन किसानों के मन में असमंजस बरकरार है। वे कानूनों की कुछ खूबियों को स्वीकार करते हैं मगर उनकी कुछ आशंकाएं भी हैं, जो पिछले दिनों सच साबित हुई हैं। बड़ी आशंका एमएसपी की है और किसान चाहते हैं कि मंडी के बाहर भी एमएसपी पर खरीद का कानून बने। प्रदेश के जबलपुर जिले की पाटन तहसील में 10 एकड़ के काश्तकार धनंजय पटेल कहते हैं, 'मंडी से बाहर फसल बेचने की आजादी यकीनन किसानों के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकती है क्योंकि इससे प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और किसान अच्छी कीमत देने वाले को फसल बेच सकेंगे। पहले एक जिले से दूसरे जिले फसल ले जाने के लिए भी लाइसेंस लेना पड़ता था, जो अब नहीं लेना पड़ेगा। मगर नए कानूनों में कुछ खामियां भी हैं। मसलन बिना पंजीयन के व्यापारियों को फसल खरीदने की इजाजत देना सही फैसला नहीं है। कम से कम उनका पंजीयन हो और कुछ धरोहर राशि सरकार के पास जमा करने के बाद ही उन्हें किसानों की फसल खरीदने की इजाजत हो।' पटेल का जोर इस बात पर है कि सरकार मंडी के भीतर या बाहर एमएसपी पर ही खरीद सुनिश्चित करे। पंजीयन और धरोहर राशि की बात किसान इसलिए कह रहे हैं क्योंकि कई मामलों में किसानों की फसल खरीदने वाले व्यापारी पूरी कीमत चुकाए बगैर ही गायब हो गए और अब किसान उनकी तलाश में वक्त तथा पैसा गंवा रहे हैं। प्रदेश के हरदा, होशंगाबाद, जबलपुर, गुना आदि जिलों में ऐसी कई घटनाएं सामने आई हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सितंबर में बिजनेस स्टैंडर्ड के साथ बातचीत में व्यापारियों से एक दिन की खरीद के बराबर रकम बतौर जमानत जमा कराए जाने की बात कही भी थी, लेकिन ऐसा होता नहीं दिख रहा। उन्होंने किसानों की उपज का भुगतान तीन दिन के भीतर कराने की बात भी कही थी, जो अमल में नहीं आई। किसानों के लिए असली डर एमएसपी का ही है। भिंड जिले के असोहना गांव के राजवीर सिंह कहते हैं कि एमएसपी और मंडी व्यवस्था खत्म हुई तो किसान बरबाद हो जाएंगे। मध्य प्रदेश में इस बार रिकॉर्ड 129 लाख टन गेहूं की सरकारी खरीद हुई है, जो किसानों के लिए राहत की बात है। सिंह मानते हैं कि नए कृषि कानूनों की लाभ तभी मिलेगा, जब मंडी के भीतर-बाहर एमएसपी पर खरीद की गारंटी हो। ग्वालियर जिले के डबका गांव के लखनलाल को 4,400 रुपये प्रति क्विंटल एमएसपी वाली 32 क्विंटल सरसों जरूरत पडऩे पर मजबूरी में 3,600 रुपये के भाव बेचनी पड़ी थी। उन्हें 25,000 रुपये से ज्यादा का घाटा हुआ। इसीलिए उन्हें लगता है कि एमएसपी पर खरीद की गारंटी के बगैर नए कानूनों का कोई फायदा नहीं। हरदा जिले में 17 एकड़ रकबे में खेती करने वाले रामकृष्ण रायखेरे कहते हैं कि मंडी में माल बिकने पर बिल-वाउचर की गारंटी रहती है, इसलिए पैसे की भी गारंटी रहती है। लेकिन नए कानून में व्यापारी केवल पैन कार्ड के जरिये उपज खरीद सकते हैं, जो सही नहीं है। रायखेरे खिड़किया मंडी का उदाहरण देते हैं, जहां कई कारोबारी किसानों की फसल लेकर भाग गए हैं। ग्वालियर कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति रह चुके विजय सिंह तोमर कहते हैं, 'किसानों की समस्याएं उपज का उचित मूल्य मिलने पर ही खत्म होंगी। इसके लिए एमएसपी पर खरीद की गारंटी जरूरी है, चाहे सरकार खरीदे या निजी कारोबारी।' तोमर कहते हैं कि सरकार एमएसपी पर खरीद की कानूनी गारंटी दे दे तो किसानों का नए कानूनों में मंडी या एमएसपी व्यवस्था खत्म होने का डर भी दूर हो जाएगा। प्रदेश के विदिशा जिले के कृषि विशेषज्ञ सुरेंद्र सिंह डांगी को लगता है कि कुछ संशोधन करने से नए कृषि कानून किसानों के लिए वरदान साबित हो सकते हैं। वह सुझाव देते हैं, 'एमएसपी को कानूनी रूप देकर वर्ष भर इस पर खरीद सुनिश्चित की जाए। मंडी के भीतर और बाहर एक जैसे कर हों। मंडी के बाहर किसान-व्यापारी विवाद होने पर एसडीएम के अलावा न्यायालय का विकल्प हो।' किसान आंदोलन के दौरान अनुबंधित कृषि यानी ठेके पर खेती भी विवाद का विषय है मगर डांगी कहते हैं कि यह तो पहले से जारी है। पंजाब में पेप्सिको के साथ मिलकर किसान टमाटर की खेती कर रहे हैं। महाराष्ट्र में भी ऐसा ही है। वह नए कानूनों से किसानों पर की जमीन पर कंपनियों के कब्जे की बात को भी खारिज करते हैं। वह कहते हैं, 'हमें समझना होगा कि अनुबंध फसल का होता है, जमीन का नहीं।' इंदौर मंडी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि मंडी में अनाज की आवक 50 फीसदी तक घट गई है। उनका कहना है कि मंडी के बाहर बिना दस्तावेज कारोबार किसानों के लिए जोखिम भरा हो सकता है। वह मंडी के बाहर भी उपकर लागू करने की वकालत करते हैं। मध्य प्रदेश सरकार पहले ही मंडी उपकर को 1.7 फीसदी से घटाकर 0.5 फीसदी कर चुकी है, जिससे मंडी की कमाई घटी है। एमएसपी का गणित भी अजीब है। मध्य प्रदेश में 22 फसलों के लिए एमएसपी की व्यवस्था है मगर आम तौर पर गेहूं और धान की खररीद ही एमएसपी पर होती है क्योंकि सार्वजनिक वितरण प्रणाली में इनका बोलबाला है। दूसरी ओर सोयाबीन का बाजार भाव एमएसपी के आसपास ही रहता है। मगर मक्का ओर दूसरी फसलों के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता। जिन फसलों की एमएसपी पर खरीद होती है, उनमें भी छोटे किसानों को फायदा नहीं मिलता क्योंकि उनकी फसल बिचौलिये कम दाम पर खरीद लेते हैं। कई बार गुणवत्ता मानक पर खरी नहीं उतरने के कारण फसल मंडी से लौट दी जाती है। उसके बाद किसानों के पास उसे बाहर बेचने के अलावा कोई चारा नहीं होता। यहीं बड़े कारोबारी और बिचौलिये चांदी काटते हैं। वे छोटे किसान से औने-पौने दाम पर फसल खरीदते हैं और गुणवत्ता सुधारकर अच्छे दाम पर बेच देते हैं। हालांकि इन सभी बातों को देखकर किसान आशंकित हैं मगर इंदौर के कृषि विशेषज्ञ गिरीश शर्मा कहते हैं कि कुछ विसंगतियों के बाद भी नए कानून किसानों के हित में हैं। वह जोर देकर करते हैं कि सरकार को मंडी के बाहर एमएसपी पर खरीद अनिवार्य कर देनी चाहिए और ऐसा नहीं करने वालों को दंडित किया जाना चाहिए। वह कहते हैं कि केवल पैन कार्ड पर खरीद के नियम को बदलकर कारोबारियों के लिए पंजीयन और गारंटी राशि को भी अनिवार्य बनाया जाना चाहिए। मध्य प्रदेश में नए कानून का असर किसानों के एक धड़े में नए कानूनों को लेकर आशंका का माहौल है मगर कुछ जगहों पर ऐसी घटनाएं घटी हैं जो इन आशंकाओं को एक हद तक निर्मूल साबित करती हैं। ऐसे ही एक मामले में एक कारोबारी ग्वालियर जिले की डबरा विधानसभा के बाजना गांव के 18 किसानों से 40 लाख रुपये का धान खरीदकर भाग गया। गांव के सरपंच नंदकिशोर के मुताबिक प्रशासन ने उस कारोबारी की संपत्ति कुर्क कर किसानों को उनका पैसा वापस दिलाने का भरोसा दिया है। इसी तरह बालाघाट जिले में किसानों से धान की फसल खरीदने के बाद घोटी स्थित पलक राइस मिल ने कीमत का भुगतान नहीं किया है। किसानों ने अनुविभागीय दंडाधिकारी लांजी को नये कृषि कानून के तहत कार्रवाई का आवेदन दिया था। यह मामला मीडिया में आने पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कार्यालय ने संज्ञान लेते हुए कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। मध्य प्रदेश में मंडी कारोबार नए कृषि कनून आने के बाद मध्य प्रदेश की मंडियों में कारोबार घटने की खबरें तो आईं मगर इन खबरों के बीच ही प्रदेश ने एमएसपी पर खरीद का रिकॉर्ड भी बना डाला। इस साल देश में सबसे ज्यादा 129.3 लाख टन गेहूं की सरकारी खरीद मध्य प्रदेश में ही हुई। पिछले साल की खरीद से यह आंकड़ा दोगुना है और गेहूं की कुल सरकारी खरीद का करीब 34 फीसदी है। प्रदेश के 16 साल किसानों को सरकारी खरीद का फायदा मिला। किसी भी अन्य राज्य में इतने किसान लाभान्वित नहीं हुए। मध्य प्रदेश में करीब 80 से 85 लाख किसान है। इस तरह इस साल करीब 20 फीसदी किसानों को सरकारी खरीद का लाभ मिला। गेहूं की सरकारी खरीद के मामले में तो किसान फायदे में रहे, लेकिन सरसों व मसूर की सरकारी खरीद में उन्हें मायूसी हाथ लगी, जबकि मसूर उत्पादन में प्रदेश का दूसरा और सरसों उत्पादन में तीसरा स्थान है। इस साल राज्य में सरसों के कुल उत्पादन की 11.19 फीसदी सरकारी खरीद हुई। पिछले साल 24.6 फीसदी खरीद हुई थी। मसूर की सरकारी खरीद तो कुल उत्पादन की महज 0.3 फीसदी ही हुई, जबकि पिछले साल 17 फीसदी खरीद हुई थी। इस साल चने की सरकारी खरीद पिछले साल से ज्यादा हुई मगर 2018 की तुलना में यह आधी ही रही। मध्य प्रदेश में 259 मंडियां और 298 उपमंडियां हैं। इनमें 6,500 कर्मचारी और 45 हजार पंजीकृत कारोबारी हैं। परंतु इस वर्ष कम कारोबार के कारण कई मंडियां लगभग निष्क्रिय हैं।
