अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता मामले में भारत सरकार को बड़ा झटका लगा है। पिछली तिथि से कर के मामले में मध्यस्थता न्यायालय का फैसला केयर्न के पक्ष में आया है। मध्यस्थता अदालत ने भारत सरकार को क्षतिपूर्ति के तौर पर 1.2 अरब डॉलर (करीब 8,842 करोड़ रुपये) का भुगतान ब्रिटेन की तेल-गैस कंपनी केयर्न को करने का आदेश दिया है। करीब तीन महीने पहले भी वोडाफोन मामले में पिछली तिथि से कराधान मसले पर सरकार के खिलाफ फैसला आया था। हेग की अंतरराष्ट्रीय अदालत ने कहा कि केयर्न कर का मामला कर विवाद का नहीं है बल्कि कर संबंधी निवेश विवाद है। इसलिए यह मामला उसके अधिकार क्षेत्र में आता है। आदेश में कहा गया कि पिछली तिथि से कर की मांग द्विपक्षीय निवेश सुरक्षा संधि के तहत दायित्व का उल्लंघन है। यह मामला केयर्न द्वारा 2006-07 में उसके भारतीय कारोबार से हुए पूंजीगत लाभ पर सरकार द्वारा 24,500 करोड़ रुपये की कर मांग से जुड़ा है। मध्यस्थता अदालत ने भारत सरकार से कहा है कि वह केयर्न को क्षतिपूर्ति के तौर पर 8,842 करोड़ रुपये का भुगतान करे, जिनमें आयकर विभाग द्वारा जनवरी 2014 में जब्त किए गए शेयर और बकाया कर वसूली के लिए 2018 में आंशिक तौर पर बेचे गए शेयर की रकम भी शामिल है। केयर्न एनर्जी की वेदांत में 4.95 फीसदी हिस्सेदारी है, जिसे आयकर विभाग ने 2014 में कर मांग के एवज में जब्त कर लिया था। सरकार को 2014 में 330 रुपये प्रति शेयर भाव पर क्षतिपूर्ति चुकाने को कहा गया है, जबकि आयकर विभाग ने 2018 में किस्तों में इसकी बिक्री 220 से 240 रुपये प्रति शेयर के भाव पर की थी। क्षतिपूर्ति में 1,590 करोड़ रुपये का कर रिफंड बकाया और मुकदमे का खर्च भी शामिल है। आदेश में केयर्न के इस तर्क का भी उल्लेख किया गया है कि कर मांग वोडाफोन कर मामले के बाद आई है, जिसे भारतीय अदालतों ने खारिज कर दिया था। सरकार ने बयान में कहा, 'सरकार अपने वकीलों के साथ इस आदेश तथा इसके सभी पहलुओं का गहराई से अध्ययन करेगी। परामर्श के बाद सभी विकल्पों पर विचार किया जाएगा और फिर कानूनी उपायों सहित आगे कदम उठाने का निर्णय किया जाएगा।' आदेश में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के नेता, जो पिछली तिथि से कर संशोधन के समय विपक्ष में थे, के बयानों का भी जिक्र किया गया है। उस समय अरुण जेटली ने इसे कर आतंकवाद बताया था। केयर्न ने अपने बयान में कहा कि मध्यस्थता अदालत ने भारत सरकार के खिलाफ उसके दावे को सही ठहराया है। केयर्न के दावे को ब्रिटेन-भारत द्विपक्षीय निवेश संधि के तहत माना गया। बयान में कहा गया, 'पंचाट ने आम सहमति से आदेश दिया कि भारत ने ब्रिटेन-भारत द्विपक्षीय निवेश संधि के दायित्वों का उल्लंघन किया है और भारत को क्षतिपूर्ति के तौर पर 1.2 अरब डॉलर तथा ब्याज एवं मुकदमे के खर्च का भुगतान करने को कहा है।' केयर्न यूके द्वारा 2006-07 में केयर्न इंडिया होल्डिंग्स के शेयरों को केयर्न इंडिया में हस्तांतरित करने के मामले में कर की मांग की गई थी। इससे यह विवाद उठा कि ब्रिटेन की कंपनी ने केयर्न इंडिया के आईपीओ से पूंजीगत लाभ कमाया। आयकर विभाग ने कहा कि केयर्न ब्रिटने ने 24,503.5 करोड़ रुपये का पूंजीगत लाभ कमाया। केयर्न के आईपीओ से पहले केयर्न एनर्जी का भारतीय परिचालन केयर्न इंडिया होल्डिंग्स-केमन आइलैंड और उसकी सहायक इकाइयों के पास था। केयर्न इंडिया होल्डिंग्स केयर्न यूके होल्डिंग्स की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक इकाई थी, जिससे वह पूरी तरह केयर्न एनर्जी की सहायक इकाई मानी गई। आईपीओ के समय भारतीय कारोबार को 2006 में केयर्न यूके होल्डिंग्स से नई कंपनी केयर्न इंडिया को हस्तांतरित कर दी गई। केयर्न इंडिया ने केयर्न इंडिया होल्डिंग्स के सभी चुकता शेयरों का अधिग्रहण कर लिया। इसके बदले केयर्न इंडिया ने केयर्न यूके होल्डिंग्स को 69 फीसदी शेयर जारी किए थे। इस तरह से केयर्न एनर्जी का केयर्न यूके होल्डिंग्स के जरिये केयर्न इंडिया में 69 फीसदी हिस्सेदारी हो गई।
