बुनियादी ढांचे पर जोर हो, मिले कर रियायत | त्वेष मिश्र / नई दिल्ली December 23, 2020 | | | | |
कंपनियां देश में बुनियादी ढांचे में निवेश को बढ़ाने के लिए बकायों का भुगतान करने, घोषित सुधारों को लागू करने और कर में रियायत की मांग कर रही हैं। ये कुछ सुझाव वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की ओर से किए जा रहे बजट पूर्व चर्चा की कड़ी में 12वीं बैठक में बुनियादी ढांचा, ऊर्जा व जलवायु परिवर्तन उन्मुखी कारोबारों के प्रतिनिधियों से मिले हैं। बुनियादी ढांचे में निवेशों को प्रोत्साहित करने के लिए भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग महासंघ (फिक्की) ने कर में रियायत देने की मांग की है। अपने प्रस्ताव में फिक्की ने कहा, 'मौजूदा परिदृश्य में वृद्घि चक्र को दोबारा से पटरी पर लाने के लिए उपाय करना और नौकरियों का सृजन सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। बुनियादी ढांचे में निवेश को प्रोत्साहन देने से वृद्घि इंजन, नौकरी सृजन और मांग को बल मिल सकता है।'
फिक्की ने अपेक्षित सहयोग का उल्लेख करते हुए कहा, 'आयकर अधिनियम की पूर्ववर्ती धारा 10(23जी) के तहत बुनियादी ढांचा सुविधा के विकास, ररखरखाव और परिचालन में संलग्न उद्यम में निवेश करने पर लाभांश, ब्याज और दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ के माध्यम से आमदनी में छूटी दी जाती है। बुनियादी ढांचे में निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए अधिनियम की धारा 10(23जी) के समान लाभ की घोषणा 2021-22 के बजट में की जा सकती है।'
फिक्की ने बुनियादी ढांचा में निवेश की रफ्तार को तेज करने का भी प्रस्ताव रखा है। प्रस्ताव में कहा गया है, 'राष्ट्रीय बुनियादी ढांचा पाइपलाइन (एनआईपी) पांच वर्ष की योजना है। हमें एनआईपी के तहत परियोजना को जल्दी पूरा करने पर विचार करना चाहिए और अगले दो वर्ष में परियोजना के 40-50 फीसदी हिस्से को पूरा करने की कोशिश करनी चाहिए। जब बुनियादी ढांचा क्षेत्र आगे बढ़ता है तो यह अपने साथ 200 अन्य क्षेत्रों को भी आगे बढ़ाता है। यह अकुशल लोगों के लिए रोजगार बढ़ाने का भी एक प्रमुख कारक है।'
भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) ने अपने प्रतिवेदन में पिछले बजट में घोषित सौर उपकरण पर आधारभूत सीमा शुल्क (बीसीडी) को लागू करने की मांग की है। सीआईआई ने कहा कि सरकार ने अब तक उसे लागू करने का खाका तैयार नहीं किया है। उसने कहा, 'बीसीडी को लागू करने में हो रही देरी से निवेश के निर्णयों पर असर पड़ रहा है।'
सीआईआई ने सरकार से यह मांग की है कि वह विद्युत क्षेत्र को वस्तु एवं सेवा कर के दायरे में लाए और अक्षय ऊर्जा पर एक दीर्घकालिक नीति बनाई जाए।
उद्योग संगठन ने साख पत्र (एलसी) को अमल में लाने अैर अक्षय ऊर्जा तथा परंपरागत बिजली उत्पादन संयंत्र देनों के लिए भुगतान सुरक्षा की मांग की है। इसमें कहा गया है, 'सितंबर तक बिजली वितरण कंपनियों का बकाया 1.26 लाख करोड़ रुपये था। पहले से भुगतान अटकता रहा है। महामारी के कारण मांग पर काफी बुरा असर पडऩे से बिजली क्षेत्र को साल के बीच में उथल पुथल के बीच परिचालन करने से स्थिति और अधिक गंभीर हुई है।'
उद्योग चैम्बरों के अलावा बैठक में दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन, भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकारण और भारतीय अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी सहित विभिन्न सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के शीर्ष अधिकारी शामिल हुए। इसमें सेलुलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया, सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्यूफैक्चरर्स और द एनर्जी ऐंड रिसोर्स इंस्टीट्यूट से भी प्रतिनिधित्व था। सीआईआई ने कम कीमत वाली आवासीय परियोजनाओं पर भी विशेष ध्यान देने की मांग की है।
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