आत्मनिर्भर हो चीनी उद्योग | संपादकीय / December 22, 2020 | | | | |
सरकार ने चीनी उद्योग को स्पष्ट शब्दों में कह दिया है कि वह अपने बचाव के लिए सब्सिडी और सरकारी मदद के भरोसे रहने के बजाय आर्थिक रूप से व्यवहार्य बनने के वास्ते वैकल्पिक कारोबारी मॉडल अपनाए, अपने उत्पादों में विविधता लाए और क्षमता में सुधार करे। इंडियन शुगर मिल एसोसिएशन (इस्मा) की 86वीं आम बैठक में यह समझदारी भरी सलाह देते हुए खाद्य मंत्री पीयूष गोयल ने चीनी उद्योग की आधार कीमत कम करने की मांग को ठुकरा दिया। यह वह कीमत है किसानों को गन्ने की फसल के लिए उचित एवं लाभकारी मूल्य (एफआरपी) के रूप में मिलती है। परंतु मंत्री की सबसे अहम घोषणा थी रंगराजन समिति द्वारा एफआरपी के विकल्प के रूप में प्रस्तुत राजस्व साझेदारी प्रणाली को लागू करने की संभावना को खारिज करना। इस क्षेत्र को आत्मनिर्भर बनाने की पहल का एक अहम विकल्प इसमें निहित है।
रंगराजन फॉर्मूले में कहा गया है कि मिल को चीनी तथा उसके सह उत्पादों से हासिल होने वाले कुल राजस्व का 70 फीसदी अथवा चीनी से हासिल राजस्व का 75 फीसदी गन्ना किसानों के साथ साझा करना चाहिए। यह गन्ने की कीमतों को चीनी की कीमतों से जोडऩे का तार्किक तरीका है। यह चीनी उत्पादन को बाजार की मांग से भी जोड़ता है। इसका लक्ष्य है अतिशय आपूर्ति को रोकना जो प्राय: चीनी की कीमतों को प्रभावित करती है और यह क्षेत्र नकदी संकट में आ जाता है। इससे भी अहम बात यह है कि चीनी निर्माताओं और गन्ना उत्पादकों समेत इस क्षेत्र के सभी अंशधारक इसे लेकर सहज नजर आते हैं। यह समझना मुश्किल नहीं है कि सरकार की अपनी दिक्कतें हैं जिनके चलते वह फिलहाल गन्ने की कीमतों की मौजूदा व्यवस्था के साथ छेड़छाड़ नहीं कर सकती। एफआरपी हर प्रकार से गन्ने का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) है। इसमें कोई भी बदलाव भले ही बेहतरी के लिए हो लेकिन किसान उसका गलत मतलब निकालेंगे। दिल्ली की सीमाओं पर इन दिनों किसानों का विरोध प्रदर्शन कुछ अन्य मांगों के अलावा एमएसपी के लिए भी हो रहा है। परंतु सरकार को विकल्प खुला रखना चाहिए और अधिक अनुकूल समय की प्रतीक्षा करनी चाहिए ताकि वह राजस्व साझेदारी प्रणाली को चीनी क्षेत्र की दीर्घकालिक दिक्कतों के हल के रूप में पेश कर सके।
अच्छी बात यह है कि कई अन्य तरीके उपलब्ध हैं जिनके माध्यम से चीनी उद्योग बिना सरकारी स्रोतों के बचा रह सकता है। उत्पादों की विविधता और उनमें मूल्यवर्धन करना भी ऐसा ही एक तरीका है। इसके साथ ही सह-उत्पादों का बेहतर इस्तेमाल तथा औद्योगिक इस्तेमाल तथा वाहन ईंधन में मिलाने के लिए अल्कोहल का अधिक उत्पादन भी कुछ ऐसे विकल्प हैं जिनकी मदद से चीनी मिलों का राजस्व बढ़ सकता है। सरकार भी उद्योग जगत की मदद के उपाय कर रही है। उसने पेट्रोल में 20 फीसदी या उससे अधिक एथनॉल मिलाने की प्रतिबद्धता जताई है। फिलहाल 10 फीसदी से भी कम एथनॉल का मिश्रण किया जाता है। उसने तेल कंपनियों द्वारा चीनी मिलों से खरीदे जाने वाले एथनॉल की कीमत भी बढ़ाई है। इसके अलावा चीनी मिलों को यह अनुमति भी दी गई है कि वे चीनी के सह उत्पादों के अलावा अन्य उत्पादों से भी एथनॉल बनाएं। इसमें चीनी, गन्ने का रस, शुगर सीरप और राब शामिल हैं। इस दौरान एक तथ्य की अनदेखी कर दी गई है कि इससे गन्ने का रकबा बढ़ सकता है। गन्ने की फसल में बेशुमार पानी लगता है और यह पहले ही भूजल के लिए जोखिम पैदा कर रही है। एक कदम आगे बढ़कर सरकार ने अधिशेष खाद्यान्न से एथनॉल बनाने की भी अनुमति दे दी है। अब तक केवल अमीर देशों में ही यह सुविधा थी। अब यह चीनी उद्योग पर है कि वह इन रियायतों का लाभ उठाए।
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