पूंजी के लिए जीरो कूपन बॉन्ड | रघु मोहन / मुंबई December 22, 2020 | | | | |
केंद्र सरकार ने पहली बार किसी बैंक में पूंजी डालने के लिए जीरो कूपन यानी शून्य ब्याज दर वाले बॉन्ड जारी किए हैं। 5,500 करोड़ रुपये के बॉन्ड पंजाब ऐंड सिन्ध बैंक (पीऐंडएसबी) के लिए जारी किए गए हैं। साथ ही बैंक को ये बॉन्ड घटे हुए बाजार मूल्य के बजाय अंकित मूल्य पर रखने की इजाजत दी गई है, जिन्हें परिपक्वता तक रखने वाली (हेल्ड-टु-मैच्योरिटी) श्रेणी में रखा जाएगा। सरकार के इस कदम से लेखा क्षेत्र के लोग और बैंक ऑडिटर चिंता जता रहे हैं मगर भारतीय रिजर्व बैंक ने लंबी आंतरिक चर्चा के बाद इसे मंजूरी दे दी है।
सरकार की राजपत्रित अधिसूचना के अनुसार गैर सूचीबद्घ पंजाब ऐंड सिन्ध बैंक को 15-15 साल अवधि के बिना ब्याज वाले पांच बॉन्ड जारी किए जाएंगे, जो 2030 से 2035 के बीच 14 दिसंबर को परिपक्व होंगे। ये सांविधिक तरलता अनुपात की पात्रता वाले बॉन्ड नहीं हैं मगर जीरो कूपन बॉन्ड होने के बाद भी इस निवेश को अंकित मूल्य पर बैंक की हेल्ड टु मैच्योरिटी श्रेणी में माना जाएगा।
पुनर्पूंजीकरण के मामले में केंद्र सरकारी बैंक की तरजीही पूंजी खरीदता है और उससे मिलने वाली रकम को बैंक नकद रहित सौदे में ब्याज वाले बॉन्ड में डाल देता है। लेकिन पंजाब ऐंड सिन्ध बैंक में शून्य ब्याज वाले बॉन्ड के जरिये पूंजी डालने से बैंक को इन बॉन्डों के परिपक्व होने पर केवल 5,500 करोड़ रुपये मिलेंगे।
अधिसूचना में कहा गया है, 'विशेष प्रतिभूतियों में परिपक्वता पर बताया गया भुगतान ही दिया जाएगा। इन पर किसी तरह का ब्याज नहीं दिया जाएगा।' एक सूत्र ने कहा, 'लेखा यानी अकाउंटिंग के नजरिये से देखें तो बैंकों को इसे 5,500 करोड़ रुपये का निवेश दिखाने की इजाजत देना सही नहीं है। इसे कम (5,550 करोड़ रुपये से बहुत कम) दिखाना पड़ेगा, इसलिए आप ऐसा नहीं कह सकते कि बैंक में 5,500 करोड़ रुपये की इक्विटी डाली जा रही है क्योंकि खाते में इतनी रकम की प्रविष्टि नहीं होगी।' एक ऑडिट फर्म में काम कर रहे एक सूत्र ने कहा कि यह निवेश पर ऐसे लाभ की तरह है, जो मिलेगा ही नहीं।
अब तक जारी पुनर्पूंजीकरण बॉन्ड में ब्याज का प्रावधान रहा है। केंद्रीय बैंक ने उन्हें होल्ड टु मैच्योरिटी श्रेणी में रखने दिया है मगर निवेश की असली कीमत उसी तरह की सरकारी प्रतिभूतियों यानी शून्य ब्याज वाली सरकारी प्रतिभूतियों से पता चलेगी।
फिलहाल सरकार की ओर से जारी कोई भी जीरो कूपन बॉन्ड नहीं है। सालाना उधारी कार्यक्रम में भी ऐसा नहीं होता है। 1990 के दशक में ऐसा किया गया था। माना जा रहा है कि सरकार पुनर्पूंजीकरण बॉन्डों में ब्याज के नाम पर होने वाला खर्च कम करना चाहती है। पिछले तीन साल में सरकार ने पुनर्पूंजीकरण बॉन्ड के जरिये सरकारी बैंकों में 2.50 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा पूंजी डाली है।
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