केंद्रीय मंत्रालयों, विभागों को नकदी का संकट | श्रीमी चौधरी / नई दिल्ली December 20, 2020 | | | | |
संसद का शीतकालीन सत्र खत्म किए जाने से केंद्र सरकार के मंत्रालयों व िवभागों को अतिरिक्त नकदी नहीं मिल रही है। यहां तक कि उन्हें तात्कालिक व्यय के लिए अन्य विभागों से बची हुई राशि भी नहीं मिल पा रही है, क्योंकि बजट सत्र के पहले अनुदान के लिए कोई पूरक मांग नहीं हो सकती है, जो सामान्यतया जनवरी के अंत में शुरू होता है। पूरक मांग सामान्यतया फरवरी में रखी जाती है।
सरकार से जुड़े दो वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा, 'इसका असर केंद्र सरकार की मौजूदा योजनाओं और नई परियोजनाओं पर भी पड़ेगा, जिनकी शुरुआत होनी है।' एक अधिकारी ने कहा कि अनुदान के लिए पूरक मांग को संसद की मंजूरी जरूरी होती है, ऐसे में अगर विभाग के भीतर भी किसी अतिरिक्त संसाधन की व्यवस्था की जाती है तो उसके लिए संसद की मंजूरी जरूरी होती है।
सामान्य तौर पर संसद के सत्र के दौरान अनुदान के लिए पूरक मांग पेश की जाती है, जब बजट आवंटन जरूरी खर्च से कम पड़ जाता है। इसकी अनुमति ऐसे मामलों में दी जाती है जब मौजूदा योजना के लिए या कुछ नई सेवा के लिए अतिरिक्त व्यय की जरूरत पड़ती है और उसकी पूर्ति उस साल के बजट आवंटन से नहीं हो पाती है। इसका असर कम से कम दो मंत्रालयों- खाद्य एवं उपभोक्ता मामले और ग्रामीण विकास पर पडऩा तय है क्योंकि दोनों का बजट आवंटन पहले ही खर्च हो चुका है। महालेखानियंत्रक के व्यय के आंकड़ों के मुताबिक दोनों मंत्रालयों ने अप्रैल-अक्टूबर के दौरान ही अपने बजट आवंटन के 100 प्रतिशत से ज्यादा खर्च कर दिए हैं और उन्हें अतिरिक्त संसाधनों की जरूरत पड़ सकती है। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय एक और अहम मंत्रालय है, जिसका 70 प्रतिशत बजट अक्टूबर तक खर्च हो चुका था। वैक्सीन की मंजूरी की प्रक्रिया चल रही है, ऐसे में इस मंत्रालय को टीकाकरण अभियान के लिए अतिरिक्त धनराशि की जरूरत पड़ सकती है, जो जनवरी से शुरू होने की संभावना है।
बहरहाल 44 मंत्रालय हैं, जिन्होंने अपने आवंटन से कम खर्च किए हैं, जिनमें वित्त, गृह और रक्षा मंत्रालय शामिल हैं। सूत्रों ने कहा कि कम व्यय होने की एक वजह तिमाही खर्च की सीमा लागू करना है। साथ ही वित्त मंत्रालय ने लॉकडाउन के दौरान सभी मंत्रालयों और विभागों से कहा था कि वे महामारी के संकट को देखते हुए संसाधनों का इस्तेमाल विवेकपूर्ण तरीके से करें।
व्यय के नियम केंद्र के मंत्रालयों पर प्रतिबंध लगाते हैं कि वे चौथी तिमाही में बजट अनुमान के 25 प्रतिशत से ज्यादा और मार्च में 10 प्रतिशत से ज्यादा नहीं खर्च कर सकते हैं। पुनरीक्षित अनुमानों में अतिरिक्त व्यय पर सहमति बननेे पर ऐसे व्यय सिर्फ संसद की मंजूरी के बाद किए जा सकते हैं। बड़े खर्च का नियमन अगस्त 2017 के व्यय नियंत्रण दिशानिर्देशों के मुताबिक होगा, जिसमें 5,000 करोड़ रुपये से ज्यादा के किसी भी एकल भुगतान के लिए बजट प्रभाग से पहले मंजूरी लेना अनिवार्य है। यह नियम नकदी की आवक और उसके खर्च के अस्थाई अंतर से निपटने के लिए बनाया गया है।
विशेषज्ञों का कहना है कि प्रावधानों में इस तरह की गड़बड़ी को आपातकालीन स्थिति में दूर किया जा सकता है। संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप ने कहा, 'आपातकालीन निधि की व्यवस्था होती है, जिसका इस्तेमाल अतिरिक्त या अप्रत्याशित व्यय के लिए नियमन करके किया जा सकता है। ऐसी परिस्थितियों में आपातकालीन निधि का इस्तेमाल अग्रिम देने मेंं किया जा सकता है, जिससे इस तरह की जरूरतों को पूरा किया जा सके।'
सरकार से जुड़े सूत्रों ने कहा कि यह तकनीकी मसला है, क्योंकि इस साल सिर्फ एक ही अतिरिक्त अनुदान को मंजूरी मिली है और अगले को फरवरी में मिल पाएगी। जब तक अनुदान आएगा, चौथी तिमाही खत्म हो चुकी होगी। इस तरह की अनुपूरक मांगों केतहत जिन मामलों को शामिल करने की पात्रता होगी, उनमें वे मांगें भी शामिल हैं, जिन्हें आपातकालीन निधि से अग्रिम दिया गया है। इसके अलावा न्यायालय के फैसले के एवज में भुगतान भी शामिल होगा, साथ ही ऐसे मामले भी शामिल होंगे, जहां वित्त मंत्रालय ने शीतकालीन सत्र में पूरक मांग लाने की सलाह दी है।
चालू वित्त वर्ष में पहले अतिरिक्त अनुदानों की मांग सितंबर में संसद के मॉनसून सत्र में पेश की गई थी, जिसमें 54 अनुदान और एक विनियोग शामिल है। संसद ने 2.35 लाख करोड़ रुपये के अतिरिक्त व्यय को मंजूरी दी थी, जिसमें 1.66 लाख करोड़ रुपये नकद खर्च शामिल है, जिसका इस्तेमाल महामारी को रोकने के लिए होना था। कुल नकद खर्च में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कार्यक्रम में 40,000 करोड़ रुपये और प्रधानमंत्री जन धन योजना और राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम के तहत 33,771.48 करोड़ रुपये शामिल है।
सरकार ने 15वें वित्त आयोग की सिफारिशों के मुताबिक राज्यों के घाटे की भरपाई के लिए 46,602.43 करोड़ रुपये अतिरिक्त आवंटन की मांग की थी।
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