छोटे उत्पादकों के हाथ बंधे तो इस्पात के भाव चढ़े | ईशिता आयान दत्त / कोलकाता December 18, 2020 | | | | |
इस्पात यानी स्टील की कीमतों में हालिया बढ़ोतरी की वजह लौह अयस्क के दाम बढऩा और मांग में इजाफा होना ही नहीं है। छोटे इस्पात निर्माताओं के पास लौह अयस्क की किल्लत होने के कारण भी इसके दाम बढ़ गए हैं।
बाजार में तैयार इस्पात की मांग तेज हुई है मगर छोटे इस्पात उत्पादक अपना उत्पादन बढ़ा ही नहीं पा रहे हैं क्योंकि उनके पास लौह अयस्क की कमी है और पिछले कुछ महीनों में कच्चा माल भी महंगा हो गया है।
एक द्वितीयक इस्पात उत्पादक ने कहा कि लौह अयस्क की उपलब्धता घटना और कीमत चढऩा बड़ी समस्या है। उसने कहा, 'पिछले एक महीने में कीमतें चढ़ गई हैं। मेरे पास आम तौर पर 60 दिन का तैयार माल रहता है मगर अब केवल 30 दिन का तैयार माल है। मार्जिन भी 8-9 फीसदी से गिरकर 1-2 फीसदी ही रह गया है।'
इस साल खानों की नीलामी महंगी हुई, जिसकी वजह से देसी लौह अयस्क के दाम ओडिशा में जून अंत की तुलना में दोगुने से भी ऊपर पहुंच चुके हैं। नीलामी में महंगी बोली की वजह से खान चलाना फायदेमंद नहीं रहा और 19 में से 7 खानों में ही काम शुरू हुआ है।
इक्रो के एक विश्लेषण में संकत दिया गया कि इस वित्त वर्ष में 5 करोड़ टन से ज्यादा इस्पात की किल्लत हो सकती है। अगर नई खानों में उत्पादन जल्द नहीं बढ़ाया जाता है तो अगले 6 से 9 महीने तक किल्लत बनी रह सकती है।
देश में कुल इस्पात उत्पादन में छोटी कंपनियों की हिस्सेदारी करीब 40 फीसदी है और बाकी 60 फीसदी इस्पात छह बड़ी कंपनियां - टाटा स्टील, सेल, राष्ट्रीय इस्पात निगम, जिंदल स्टील ऐंड पावर और जेएसडब्ल्यू बनाती हैं। बड़ी कंपनियों को कच्चा माल आसानी से मिल जाता है।
जेएसपीएल के प्रबंध निदेशक वीआर शर्मा ने कहा कि स्टील के चपटे उत्पादों की कमी नहीं है। मगर सरिया जैसे लंबे उत्पादों की आपूर्ति कम है क्योंकि द्वितीयक निर्माता उत्पादन नहीं कर पा रहे हैं। कीमत बढऩे की बड़ी वजह यह भी है। लौह अयस्क की कमी और उसकी तथा कबाड़ जैसे दूसरे कच्चे माल की कीमत में इजाफे से छोटे निर्माताओं की मुश्किलें भी बढ़ी हैं।
लॉकडाउन में ढील के बाद से ही इस्पात के दाम चढ़ रहे हैं। देश में बने हॉट रोल्ड कॉइल के दाम 49,000 रुपये प्रति टन पर पहुंच गए, जो पिछले कई साल में नहीं देखे गए। सरिया आदि के दाम 48,000 रुपये प्रति टन चल रहे हैं। हालांकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी इस्पात महंगा हो रहा है। शर्मा ने कहा कि चीन में पिछले महीने इस्पात 30 डॉलर प्रति टन महंगा हो गया है।
चीन में बुनियादी ढांचे के विकास की वजह से इस्पात की खपत अच्छी खासी बढ़ रही है। विश्व इस्पात संगठन का अनुमान है कि चालू कैलेंडर वर्ष में चीन में इस्पात की मांग 8 फीसदी बढ़ेगी, जबकि अप्रैल में उसने 1 फीसदी वृद्घि का ही अनुमान लगाया था।
संयुक्त संयंत्र समिति के अनुसार भारत में अप्रैल से नवंबर के दौरान छह प्रमुख स्टील उत्पादकों के उत्पादन में 18.7 फीसदी और अन्य के उत्पादन में 20.9 फीसदी कमी आई है। इस दौरान खपत भी करीब 20 फीसदी कम हुई है। लेकिन नवंबर के अंतरिम आंकड़े बताते हैं कि कुल उत्पादन पिछले साल की तुलना में केवल 2.4 फीसदी कम रहा है और छोटे उत्पादकों का उत्पादन 8.3 फीसदी घटा है। नवंबर में खपत 11.4 फीसदी बढ़ी है।
एक प्राथमिक स्टील उत्पादक ने कहा, 'छह प्रमुख उत्पादकों का उत्पादन बढ़ा था। ज्यादातर द्वितीयक निर्माता उत्पादन नहीं बढ़ा पाए, इसीलिए उपलब्धता कम होने से दाम बढ़ रहे हैं।'
इक्रा की रिपोर्ट के अनुसार कच्चे इस्पात के कुल उत्पादन में छह प्रमुख निर्माताओं की हिस्सेदरारी आम तौर पर 55 फीसदी रहती थी, जो हाल में बढ़कर 65 फीसदी हो गई है। पिछले पांच साल में उद्योग केवल 78 फीसदी क्षमता का इस्तेमाल करता आ रहा है मगर उन छह कंपनियों ने अक्टूबर में 85 फीसदी क्षमता के साथ काम किया और बाकी कंपनियां 65 फीसदी क्षमता ही इस्तेमाल कर पाईं।
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