केंद्रीय योजनाओं पर चलेगी कैंची | दिलाशा सेठ / नई दिल्ली December 16, 2020 | | | | |
राजकोषीय दबाव को देखते हुए केंद्र सरकार आगामी बजट में केंद्र प्रायोजित योजनाओं और केंद्रीय क्षेत्र की योजनाओं का आकार घटाने या कुछ को बंद करने पर विचार कर रही है। लेकिन केंद्र के प्रस्तावित कदम पर राज्यों ने आपत्ति जताई है। केरल का मानना है कि योजनाओं के लिए कम आवंटन की कवायद से राज्यों को योजनाओं के लिए कम धनराशि मिलेगी, वहीं पंजाब ने कहा कि कुछ योजनाओं को बंद करने से देश के लोगों को मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा।
महामारी के दौरान वित्तीय तंगी को देखते हुए वित्त मंत्रालय ने संबंधित मंत्रालयों और विभागों से 15 जनवरी, 2021 तक विभिन्न केंद्र प्रायोजित योजनाओं और केंद्रीय योजनाओं का मूल्यांकन कर जानकारी मांगी है। कुछ कारगर योजनाओं को भी वित्तीय दबाव को देखते हुए बंद करना पड़ सकता है।
एक सरकारी अधिकारी ने कहा, 'केंद्र प्रयोजित योजनाओं और केंद्रीय क्षेत्र की योजनाओं को तार्किक बनाना होगा क्योंकि हमारे पास संसाधन सीमित हैं। हमें आने वाले समय में पूंजीगत व्यय, स्वास्थ्य सेवा और टीकाकरण पर खर्च बढ़ाने की जरूरत होगी। कुछ कटौती आगामी बजट में की जाएगी, वहीं कुछ पर बाद में निर्णय लिया जाएगा। इस कवायद के तहत हम योजनाओं की पहचान कर रहे हैं। इस बारे में हम संबंधित मंत्रालयों और विभागों से बात कर रहे हैं।'
राज्य इस प्रस्ताव से नाखुश हैं। केरल के वित्त मंत्री थॉमस आइजक ने कहा कि राज्यों की हिस्सेदारी आवंटन में इजाफा किए बिना योजनाओं का आवंटन कम करना पूरी तरह अस्वीकार्य है। उन्होंने कहा कि वे इस मामले को केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के समक्ष उठाएंगे। उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति में केंद्र को राज्यों को एकीकृत अनुदान या व्यापक क्षेत्रों के तहत अनुदान देना चाहिए ताकि राज्य अपनी योजनाएं ला सकें। आइजक ने कहा, 'यह राज्यों का आवंटन घटाने का एकतरफा निर्णय है। राज्यों या उनकी योजनाओं को पैसे देने की उनकी मंशा नहीं है।' उनका कहना है कि पहले इस प्रस्ताव पर राज्यों के साथ चर्चा करनी चाहिए। आइजक के अनुसार केंद्र प्रायोजित योजनाओं में आवंटन घटने से राज्यों को मिलने वाले पैसे में कमी आएगी, जबकि राज्यों पर पहले से ही दबाव है। केंद्र ज्यादा खर्च नहीं कर रहा है, ऐसे में राज्यों पर अधिक खर्च का दबाव है।
पंजाब के वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल ने कहा कि इन योजनाओं का मकसद देश में बुनियादी ढांचा तैयार करना है। उन्होंने कहा, 'केंद्र के पास पैसे की कमी महज बहाना है। अगर इस तरह की योजनाओं पर खर्च अनावश्ययक था तो इसे शुरू ही क्यों किया गया था। अगर इन योजनाओं को बंद किया जाता है तो लोगों की मुश्किलें बढ़ेगी।'
केंद्र प्रायोजित योजनाओं का खर्च घटाने की स्थिति में राज्य अपने लिए आवंटन को मौजूदा 42 फीसदी से बढ़ाकर 50 फीसदी करने पर जोर दे रहे हैं। 2015-16 में भी केंद्र प्रायोजित योजनाओं के आवंटन को घटाया गया था, उस समय राज्यों के आवंटन को 32 फीसदी से बढ़ाकर 42 फीसदी किया गया था। करीब 30 केंद्र प्रायोजित योजनाएं और 685 केंद्रीय क्षेत्र की योजनाएं चल रही हैं। इनमें किसानों के लिए लघु अवधि ऋण पर ब्याज सब्सिडी, उर्वरक सब्सिडी, खाद्य सब्सिडी, रोजगार गारंटी योजनाएं और पीएम आवास योजना जैसी योजनाएं शामिल हैं।
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