स्वास्थ्यवर्धक माने जाने वाले शहद में मिलावट का धंधा | |
जमीनी हकीकत | सुनीता नारायण / 12 14, 2020 | | | | |
हम जिस शहद को गुणवत्तापूर्ण समझकर उसका सेवन करते हैं उसमें चीनी मिली हुई है। इस मिलावट का पता इसलिए नहीं लग पाता क्योंकि चीन की कंपनियों ने ऐसा शुगर सीरप बनाया है जो भारतीय प्रयोगशालाओं में शहद की शुद्धता की जांच में खरा उतरता है। कोविड-19 महामारी के कारण हम सब की सेहत पहले ही खतरे में है। इस बीच शहद की खपत भी बढ़ी है क्योंकि यह रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है और इसे अपने ऐंटीऑक्सीडेंट और ऐंटी-माइक्रोबॉयल गुणों के लिए भी जाना जाता है। परंतु हम शहद के स्थान पर चीनी का सेवन कर रहे हैं जो हमारे खिलाफ जाएगा क्योंकि चीनी वजन बढ़ाती है। इस बात के स्पष्ट प्रमाण हैं कि औसत से अधिक वजन वाले लोगों में कोविड-19 से जुड़ी दिक्कतों का खतरा अधिक है।
इसका अर्थ यह भी है कि मधुमक्खीपालन करने वालों को आय का नुकसान हो रहा है। यदि वे कारोबार से बाहर हो जाते हैं तो मधुमक्खियां भी नदारद हो जाएंगी और साथ ही उनकी परागण सेवा भी। यदि मधुमक्खियां एक पौधे से दूसरे पौधे तक पराग ले जाना बंद कर देंगी तो खाद्य उत्पादकता में कमी आएगी। यह मिलावट आपराधिक है।
मैं अनुमान लगा सकती हूं कि इस खुलासे पर उद्योग जगत की प्रतिक्रिया क्या होगी। वे कहेंगे कि उनके द्वारा तय मानकों का पालन किया जा रहा है। दलील आएगी कि कई बड़े ब्रांड प्रयोगशाला परीक्षण में पास हुए हैं तो उन्हें मिलावटी कैसे कहा जाएगा। परंतु हम कह सकते हैं और इसलिए कह सकते हैं क्योंकि इसके लिए व्यापक जांच हुई। इससे यही पता चलता है कि खाद्य बाजार अब आसान नहीं रहा।
हर मोड़ पर मेरे सहयोगियों को लगा कि अब आगे कुछ नहीं हो पाएगा। जब हमने सुना कि मधुमक्खीपालक रोजगार गंवा रहे हैं तो सबको पता था कि ऐसा क्यों हो रहा है लेकिन कोई कहना नहीं चाह रहा था। कोई भी चीन की कंपनियों और शुगर सीरप का नाम नहीं लेना चाह रहा था। लेकिन इन कंपनियों या इस रहस्यमय सीरप की मिलावट का कोई सबूत नहीं था।
मई में भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) ने शुगर सीरप के आयातकों को निर्देश जारी किए और कहा कि ऐसे प्रमाण मिले हैं कि शहद में ऐसे सीरप की मिलावट की जा रही है। उसने खाद्य आयुक्तों से कहा कि वे निगरानी बढ़ाएं। एफएसएसएआई ने जिन शुगर सीरप का जिक्र किया था उनका उद्योग एवं वाणिज्य मंत्रालय के आयात-निर्यात आंकड़ों में कोई उल्लेख नहीं मिलता।
परंतु इस बारे में आवाज उठाई जाती रही। फरवरी में सरकार ने आयातित शहद के लिए अतिरिक्त प्रयोगशाला जांच अनिवार्य कर दी। इस जांच का नाम है- न्यूक्लियर मैग्नेटिक रेजोनेंस स्पेक्ट्रोस्कोपी (एनएमआरएस)। हम जानते थे कि इस जांच का इस्तेमाल उस समय किया जाता है जब शहद में शुगर सीरप मिलाए जाने की आशंका हो। ऐसा इसलिए कि यह आसानी से पकड़ में नहीं आ सकता।
यह हमारी सेहत से जुड़ा मामला है। हम इसे ऐसे ही जाने नहीं दे सकते। हमारी कोशिश तब कामयाब हुई जब हमें ऐसी चीनी कंपनियों की वेबसाइट मिलीं जो खुले आम ऐसा सीरप बेच रही थीं जो जांच को धता बता सकती थीं। तब हमें समझ में आया गया कि यह एक धंधा बन चुका है। पहली मिलावट में पौधों (मक्का और गन्ना) से हासिल होने वाले शुगर सीरप का इस्तेमाल किया गया जो सी 4 फोटोसिंथेसिस का इस्तेमाल करता था। जब यह पकड़ में आने लगा तो सी 3 पौधों यानी चावल तथा चुकंदर से हासिल नए तरह की मिठास का इस्तेमाल शुरू किया गया। परंतु विज्ञान की मदद से शहद में इसकी मिलावट भी पकड़ में आ गई। अब ऑनलाइन चीनी पोर्टल पर कंपनियों का दावा है कि उन्होंने ऐसे तरीके तलाश लिए हैं जो सी 3 और सी 4 शुगर टेस्ट को पास कर सकते हैं। ये वही कंपनियां थीं जो भारत में फ्रक्टोस सीरप निर्यात करतीं। लेकिन हम भारत में उनके अंतिम उपभोक्ता का पता नहीं लगा पाए। ये सीरप कई तरह के औद्योगिक इस्तेमाल के लिए आयात किए जाते हैं। यानी सरसरी तौर पर यह वैध कारोबार था।
जब हमने इस सीरप का एक नमूना खरीदा तो देखा कि चीनी कंपनियां इसे बेचने के लिए बहुत उत्सुक हैं। उन्हे पता था कि भारतीय तंत्र, खासकर सीमाशुल्क विभाग कैसे काम करता है। एक कंपनी ने हमें नमूना पेंट पिगमेंट के नाम पर भेजा।
हमने गत वर्ष ध्यान दिया था कि फ्रक्टोस सीरप का आयात कम हो रहा है। सूत्रों ने बताया कि भारतीयों ने चीन से उक्त तकनीक खरीद ली है। हमने पता लगाया कि और पता चला कि बाजार में यह 'ऑल पास सीरप' के नाम से उपलब्ध है यानी ऐसा सीरप जो हर जांच में सफल साबित हो। हमने इसे प्रयोगशाला में जांचा और यह वाकई पास हो गया। अब यह घातक धंधा हमारे सामने खुल चुका था। हमने जिन 13 प्रसिद्ध ब्रांड की एनएमआरएस तकनीक से जांच की उनमें से अधिकांश विफल रहे। जबकि ये शहद ब्रांड 2020 में शुरू एफएसएसएआई के नए मानकों में पास हो गए थे। हमने जिस जर्मन प्रयोगशाला में नमूनों की जांच कराई, उसने अपनी रिपोर्ट में कहा कि इन नमूनों में शुगर सीरप मिला हुआ है।
शहद में मिलावट की हमारी रिपोर्ट सामने आने के बाद उद्योग जगत की ओर से हमें किताबी प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं। इनमें वही बातें कही जा रही हैं जो दुनिया भर के बिजनेस स्कूल में पढ़ाई जाती हैं। शब्दाडंबर रचकर उपभोक्ताओं को भ्रमित करना और अपने उत्पादों को साफ और सुरक्षित बताने का प्रयास करना।
परंतु उपभोक्ता भी जागरूक हैं। शहद अन्य उत्पादों की तरह नहीं है। इसे अनुपूरक पोषक आहार के रूप में लिया जाता है। इसमें औषधीय गुण होते हैं और इसलिए चीनी मिलाने का अर्थ है स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाना। हमें पता है कि उद्योग जगत ताकतवर है लेकिन हम यह भी मानते हैं हमारा स्वास्थ्य और मधुमक्खियों का अस्तित्व दांव पर लगा है।
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