मनरेगा में रोजगार बढ़ा, 100 दिन काम पाने वाले परिवार घटे | ऋत्विक शर्मा / नई दिल्ली December 13, 2020 | | | | |
वित्त वर्ष 2021-22 में 4 महीने बचे हैं, लेकिन इस साल महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत 1.3 करोड़ जॉब कार्ड जारी हो चुके हैं। केंद्र के कानूनों को लागू करने की वकालत व निगरानी करनेवाले एक समूह की रिपोर्ट से यह जानकारी मिली है।
इस साल मनरेगा का खास महत्त्व है क्योंकि महामारी के कारण देश भर में बड़े पैमाने पर लोगों के रोजगार छिने हैं। पीपुल्स ऐक्शन फॉर इंप्लाइमेंट गारंटी (पीएईजी) की ओर से जारी मनरेगा नैशनल ट्रैकर दिसंबर 2020 के मुताबिक इस साल काम मांगने के लिए कुल जॉब कार्ड 7.5 करोड़ रहे, जबकि कुल सक्रिय जॉब कार्ड 9.02 करोड़ हैं। कुल सक्रिय जॉब कार्डों में से 83 प्रतिशत ने काम की मांग की।
बहरहाल रिपोर्ट में कहा गया है कि सिर्फ 19 लाख परिवारों ने 100 दिन काम (यह मनरेगा के तहत अनिवार्य है) पूरा किया, जबकि पिछले साल 40.6 लाख परिवारों ने पूरा किया था। इसमें कहा गया है कि सरकार कोविड-19 महामारी के कारण बढ़ी हुई मांग पूरी करने में विफल रही है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 45.6 लाख परिवारों को आवेदन के बाद भी इस साल जॉब कार्ड नहीं मिल पाया। सर्वे में शामिल किए गए प्रमुख 14 राज्यों में तमिलनाडु में कुल पंजीकृत जॉब कार्ड में सक्रिय जॉब कार्ड उपभोक्ताओं का प्रतिशत सबसे ज्यादा (56.81 प्रतिशत) है, जबकि महाराष्ट्र में यह सबसे कम 13.61 प्रतिशत है। अखिल भारतीय औसत 30.75 प्रतिशत था। सक्रिय जॉब कार्डों में उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा 98.16 प्रतिशत लोगों ने इस साल काम की मांग की, जबकि महाराष्ट्र में सबसे कम 46.65 प्रतिशत मांग रही। राष्ट्रीय स्तर पर मांग 83.9 प्रतिशत रही है। मांग पर सबसे ज्यादा जॉबकार्ड झारखंड ने सबसे ज्यादा 34.25 प्रतिशत कार्ड जारी किए, जबकि सबसे कम तेलंगाना का 7.7 प्रतिशत रहा। वहीं देश में यह प्रतिशत 17.1 रहा है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि कुल 17 लाख परिवारों ने इस साल 100 दिन का रोजगार हासिल किया, वहीं 64 लाख परिवारों ने 80 दिन काम किया। इनमें से 3,50,000 परिवारों ने आंध्र प्रदेश में, 2,70,000 परिवारों ने पश्चिम बंगाल में और 2,10,000 परिवारों ने राजस्थान में 100 दिन का काम पूरा किया।
देश में 81 से 90 दिन काम पाने वाले परिवारों की संख्या सबसे ज्यादा 64.3 लाख रही है। वहीं 71 से 80 दिन काम पाने वाले 33 लाख परिवार हैं।
मांग में बढ़ोतरी के साथ इस साल नवंबर तक व्यक्ति दिवस कार्यों की संख्या में भी पिछले साल की तुलना में 43 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है। इस साल मनरेगा में आवंटित राशि 1,05,000 करोड़ रुपये रही। मनरेगा ट्रैकस से पता चलता है कि इसमें से 71 प्रतिशत (74,563 करोड़ रुपये) का इस्तेमाल अब तक हो चुका है और 9,590 करोड़ रुपये (9.1 प्रतिशत) लंबित है। इसका मतलब यह हुआ कि सिर्फ 19.8 प्रतिशत (20,847 करोड़ रुपये) ही इस आवंटन में बचे हैं, जिससे नए रोजगार का सृजन किया जा सकता है।
रिपोर्ट में कहा गया है, 'वित्त वर्ष में 100 दिन से कुछ ज्यादा समय अभी बचे हुए हैं और पहले के आंकड़ों से पता चलता है कि आखिरी चार महीनों के दौरान रोजगार का सृजन ज्यादा होता है, ऐसे में मनरेगा को एक और वित्तीय सहायता देने की जरूरत होगी।' पीएईजी के सेक्रेटरी एमएस रौनक ने कहा कि पिछले वर्षों के आंकड़ों से पता चलता है कि वित्त वर्ष के अंतिम चार महीनों में 30 से 35 प्रतिशत नौकरियों का सृजन होता है। उन्होंने धन की कमी का अनुमान लगाते हुए कहा, 'बचा हुआ 19.8 प्रतिशत कोश अकुशल कामगारों को भुगतान के लिए पर्याप्त नहीं होगा।'
अंतिम तिमाही में तमाम भुगतान लंबित भी रह जाते हैं, जिन्हें अगले वित्त वर्ष में दिया जाता है। जमीनी स्तर पर बातचीत से पता चलता है कि लोग जल्द भुगतान चाहते हैं क्योंकि उनके पास धन की कमी है। उन्होंने कहा, 'ऐसी स्थिति में, जब हम पहले से ही बेरोजगारी से जूझ रहे हैं, अगर लोगों को समय से भुगतान नहीं मिलता है तो इससे आगे और तनाव बढ़ेगा।'
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