खुदरा ऋण जरूरी, लेकिन जोखिम भरा | |
अभिजित लेले और हंसिनी कार्तिक / मुंबई 12 13, 2020 | | | | |
दूध का जला छाछ भी फूंक फूंक कर पीता है। यह कहावत बड़े आकार के कॉर्पोरेट ऋण देने में बैंकों की अनिच्छा पर सटीक बैठती है। बैंकों के इस रवैये से स्वत: ही स्थिति खुदरा कर्जदारों के पक्ष में हो जाती है। हालांकि खुदरा ऋणों की गुणवत्ता पर जोखिम बढ़ रहा है। मैकिंजी में वरिष्ठ पार्टनर आकाश लाल कहते हैं कि ये ऋण वित्त वर्ष 2020 में करीब करीब पूरी तरह से जोखिम समायोजित राजस्व रहे, इसके बावजूद बैंकिंग प्रणाली के कुल राजस्वों में इनकी हिस्सेदारी केवल 48 फीसदी रही। बैंकों के लिए खुदरा ऋण की समग्र हिस्सेदारी केवल एक चढ़ता हुआ रुझान है।
इसलिए बैंक इन नीचे लटकते हुए फलों से किनारा करने की जल्दबाजी में नहीं हैं भले ही इनमें से कुछ खट्टे हैं।
येस बैंक के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यकारी प्रशांत कुमार कहते हैं, 'यदि कॉर्पोरेट से कोई मांग नहीं है और हमारे पास अतिरिक्त नकदी है तो हम इसका और कहां पर इस्तेमाल करें।' सरकारी बॉन्डों में निवेश करनें में भी जोखिम है।
वह कहते हैं, 'जब ब्याज दरें बढऩे लगे तब बैंकों को बड़े स्तर पर उचित मूल्य लेखांकन करने की आवश्यकता होगी।'
क्षेत्रवार ऋण वितरण के आंकड़ों के व्यापक विश्लेषण से भी इसी विचार का समर्थन मिलता है। एक ओर जहां समग्र ऋण वितरण से सकारात्मक संकेत नहीं मिल रहे हैं वहीं खुदरा ऋण के बिना तस्वीर और भी अजीब हो सकती थी। बल्कि, खुदरा कर्जदारों से ऋण के लिए बढ़ती पूछताछ की ऋण बाजार में प्रवाह को बनाए रखने में बड़ी भूमिका है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि खुदरा क्षेत्र की वृद्घि वित्त वर्ष 2018-19 की तरह रहेगी जब यह 20 फीसदी से ऊपर थी या अपने स्वरूप में बदलाव से नहीं गुजरेगी।
एक्सपीरियन क्रेडिट इन्फॉर्मेशन कंपनी ऑफ इंडिया के प्रबंध निदेशक आशिष सिंघल कहते हैं कि मांग में तेजी आई है लेकिन वह स्पष्ट रूप से सुरक्षित संपत्तियों के पक्ष है।
वह कहते हैं, 'सुरक्षित ऋणों के मामले में हम कोविड-पूर्व से करीब 80 फीसदी के स्तर पर हैं। असुरक्षित ऋणों में मोटे तौर पर व्यक्तिगत ऋणों में पूछताछ कोविड पूर्व के स्तर पर से करीब 60-65 फीसदी पर है।'
इसकी पुष्टि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के ग्राहकों में विश्वास सर्वेक्षण से भी होती है जिसके नतीजे में सामने आया है कि आगामी महीनों में विवेकाधीन और गैर जरूरी खर्च में कमी आ सकती है।
घर खरीदने के लिए स्टाम्प शुल्क में कमी होने और आवास ऋण की दरें निचले स्तर पर होने से इस खंड को मजबूती मिल रही है वहीं, मजबूरी में सार्वजनिक के बजाय निजी परिवहन अपनाने से वाहनों की बिक्री और वाहन ऋणों में वृद्घि हो रही है।
व्यक्तिगत ऋणों को अक्सर विलासिता खर्च या टाले न जा सकने वाले अनिवार्य खर्चों से जोड़ा जाता है। यहां, सिंघल स्पष्ट करते हैं कि इस खंड में मांग में कमी इस कारण से आई होगी कि साख वाले या अच्छे ग्राहक पहले की तरह इन ऋणों का विकल्प नहीं अपना रहे हैं क्योंकि हो सकता है कि वे अब भी इंतजार करने और देखने की स्थिति में हों या बैंक उनके साख मूल्यांकन के मानदंडों को कड़े कर रहे हैं या इन दोनों का मिलाजुला असर हो सकता है।
मैकिंजी का अनुमान है कि अगले छह वर्षों में ग्राहक का वित्त आकार 8 से 10 फीसदी की दर से बढ़ सकता है जो पहले के 16-20 फीसदी की दर से काफी कम है। क्रिसिल में फाइनैंशियल सेक्टर रेटिंग ऐंड स्ट्रक्चर्ड फाइनैंस रेटिंग के वरिष्ठ निदेशक कृष्णन सीतारमण का अनुमान है कि बैंक खुदरा पोर्टफोलियो में अत्यधिक चूक को कम करने पर काम शुरू कर सकते हैं और जहां कहीं संभव हो, बढ़े हुए जोखिम के लिए अपेक्षाकृत अधिक दर वसूल सकते हैं। यह कड़े कदम की केवल शुरुआत हो सकती है। जैसा कि सिंघल ने संकेत किया।
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