इस साल उधारी 8.27 लाख करोड़ रुपये रिकॉर्ड ऊंचाई पर | अनूप रॉय / मुंबई December 11, 2020 | | | | |
नकदी की प्रचुरता और कम दरों की वजह से कॉरपोरेट बॉन्ड निर्गम आकार इस साल अब तक 8.27 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गया है, जो एक नया रिकॉर्ड है। हालांकि जब बात शानदार रेटिंग वाली और कमजोर रेटिंग वाली कंपनियों द्वारा बाजार से कोष उगाही की बात हो तो इसे लेकर बड़ा अंतर बना हुआ है।
भरतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की 4 दिसंबर को मौद्रिक समीक्षा नीति में गवर्नर ने कहा कि वित्त पोषण की स्थिति में काफी सहजता आई है, और इससे रिकवरी के शुरुआती संकेतों को मजबूत बनाने के लिए आधार तैयार होगा। यह रिकवरी 2020-21 की दूसरी छमाही में स्पष्ट दिख रही है।
यह सही है कि केंद्रीय बैंक ने आईएलएफएस और डीएचएफएल संकट के बाद बाजार में मंदी को रोका है। वित्तीय व्यवस्था के व्यापक रूप से नकदी समर्थन से यह सुनिश्चित हुआ कि
एएए-रेटिंग वाले तीन वर्षीय कॉरपोरेट बॉन्ड प्रतिफल 60 आधार अंक से घटकर 8 अक्टूबर को 17 आधार अंक रह गए।
आरबीआई गवर्नर ने कहा कि लो-रेटिंग वाले कॉरपोरेट बॉन्डों पर यह अंतर समान अवधि के दौरान काफी कमजोर हुआ और एए रेटिंग वाले तीन वर्षीय बॉन्डों और बीबीबी- (बीबीबी माइनस) रेटिंग के तीन वर्षीय बॉन्डों के लिए 34 आधार अंक तक घटा।
काउंसिल फॉर इंटरनैशनल इकोनोमिक अंडरस्टैंडिंग (सीआईईयू) में एनबीएफसी के अध्यक्ष रमन अग्रवाल ने कहा, 'हालात कम रेटिंग वाली एनबीएफसी के लिए कुछ हद तक सुधरे हैं। लेकिन फंडिंग
के लिए उन्हें अभी भी संघर्ष करना पड़ रहा है।'
फिलिप्स कैपिटल में फिक्स्ड-इनकम कंसल्टेंट जयदीप सेन के अनुसार, सितंबर 2018 में आईएलऐंडएफएस के साथ शुरू की कॉरपोरेट डिफॉल्ट की समस्या के बाद बैंकों को फंसे कर्ज की समस्या से जूझना पड़ा और सरकारी बैंकों को पुनर्पूंजीकृत किया गया। निवेशकों में जोखिम से बचने की प्रवृत्ति बनी हुई है।
आरबीआई ने कम रेटिंग वाली कंपनियों के लिए फंडिंग की स्थिति आसान बनाने के लिए दीर्घावधि रीपो ऑपरेशन पर ध्यान दिया है।
सेन का कहना है, 'फिर भी, फंडिंग कम रेटिंग वाली कंपनियों के लिए हमेशा एक बड़ी समस्या बनी रहेगी। रेटिंग एजेंसियों की औसत रेटिंग बीबीबी या इससे नीचे है, जो मुश्किल से ही निवेश ग्रेड है। ये कंपनियां बॉन्ड जारी नहीं कर सकतीं, क्योंकि इनके लिए कोई खरीदार नहीं होगा। इसलिए बैंक फंडिंग ही एकमात्र विकल्प है।'
भारतीय कंपनियों, खासकर एनबीएफसी और सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों ने मंगलवार तक 8.27 लाख करोड़ रुपये जुटाए। वर्ष 2019 में, उन्होंने 7.46 लाख करोड़ रुपये और 2018 में कुल कॉरपोरेट बॉन्डों ने 5.88 लाख करोड़ रुपये जुटाए थे। लेकिन ज्यादातर कोष लंबी अवधि के लिए नहीं जुटाए गए हैं। रेटिंग और तरलता के बावजूद, उधारकर्ता और ऋणदाता दोनों ही तीन से पांच साल से ज्यादा का जोखिम लेने को उत्सुक नहीं हैं।
भारत में पूरी तरह या आंशिक तौर पर लॉकडाउन की स्थिति के बावजूद भारी कोष उगाही हुई है। इसकी मुख्य वजह यह है कि बॉन्ड बाजार में गतिविधि बढ़ी है, क्योंकि बैंकों ने उधारी को लेकर सतर्कता बरती है। लेकिन बाद में बैंकों ने कंपनियों को 6 प्रतिशत से भी कम दरों के साथ ऋण मुहैया कराकर एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा दिया है। भारतीय स्टेट बैंक के शोध विभाग ने हाल में कहा है कि इसे लेकर परिदृश्य अनिश्चित बना हुआ है।
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