केंद्र सरकार ने पवन हंस लिमिटेड में अपनी 51 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचलने के लिए बोलीकर्ताओं से रुचिपत्र आमंत्रित किए हैं। इसके पहले भी सरकार कई बार हिस्सेदारी बेचने की कवायद कर चुकी है, लेकिन खरीदार नहीं मिले। विशेषज्ञों का कहना है कि कंपनी के लिए खरीदार पाना चुनौती होगी। निवेश एवं सार्वजनिक संपत्ति प्रबंधन विभाग (दीपम) की ओर से जारी किए गए प्राथमिक सूचना ज्ञापन में कहा गया है कि दिलचस्पी लेने वाले खरीदारों को 19 जुलाई तक इलेक्ट्रॉनिक रूप से ईओआई दाखिल करना होगा और उसके पास हेलीकॉप्टर सेवा प्रदाता कंपनी में तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम की पूरी 49 प्रतिशत हिस्सेदारी लेने का भी विकल्प होगा, जिसके लिए मूल्य व शर्तें एक ही होंगी। बोली लगाने वाले का कुल न्यूनतम कारोबार 300 करोड़ रुपये होने पर ही वह इसमें शामिल होने का पातत्र होगा और उसे सुनिश्चित करना होगा कि कंपनी हवाई यातायात सेवा मुहैया कराने का कारोबार चल रही व्यवस्था के मुताबिक 3 साल तक जारी रखेगी। पवन हंस के प्रबंधन या कर्मचारियों द्वारा सीधे बोली दाखिल की जा सकती है या बैंकों के साथ कंसोर्टिम, वेंचर कैपिटलिस्ट या वित्तीय संस्थानों को इसकी अनुमति होगी। सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों को बोली में शामिल होने की अनुमति नहीं होगी। एविएशन कंसल्टिंग फर्म मार्टिन कंसल्टिंग के संस्थापक और मुख्य कार्याधिकारी मार्क डी मार्टिन ने कहा कि बिक्री की शर्तें पहले की ही तरह हैं। मार्टिन ने कहा कि कोविड-19 के बाद की वित्तीय स्थिति और इसके पहले बिक्री की 5 असफल कवायदों को देखते हुए सरकार को नया खरीदार पाने में चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। कंपनी को पिछले 2 साल से घाटा हो रहा है और इसके राजस्व में गिरावट के साथ कुल व्यय में बढ़ोतरी हुई है। कंपनी का परिचालन लाभ भी लगातार कम हुआ है। कंपनी का रोहिणी हेलीपोर्ट इस लेन देन का हिस्सा नहीं होगा, जिसे पवन हंस से अलग कर रोहिणी हेलीपोर्ट लिमिटेड बनाया जाएगा। इसे अलग करने की प्रक्रिया चल रही है।
