कोरोना के वार से हिला कालबादेवी बाजार | सुशील मिश्र / मुंबई December 08, 2020 | | | | |
लॉकडाउन खत्म होने के बाद देश भर में सभी कारोबार धीरे-धीरे पटरी पर आ रहे हैं। बाजार और दुकानें खुल रही हैं लेकिन कोरोना महामारी ने कारोबारी सोच को बदल दिया है। व्यापारी अब बड़े बाजारों की जगह नजदीकी इलाके में कारोबार जमाने को प्राथमिकता दे रहे हैं। इसकी वजह से पीढिय़ों से जमे जमाए चर्चित बाजारों से कारोबारियों का पलायन शुरू हो चुका है जो आने वाले समय में और बढ़ सकता है। मुंबई के मशहूर कपड़ा बाजार कालबादेवी से करीब 20 फीसदी कारोबारी पलायन कर चुके हैं।
दक्षिण मुंबई का कालबादेवी इलाका मुंबई सहित देश का बड़ा एवं प्रमुख कारोबारी केंद्र है। कपड़ा, धागे, तांगा, स्टील और सराफा कारोबार का गढ़ माने जाने वाले इस इलाके में बदलाव साफ तौर पर देखा जा सकता है। महामारी में करीब छह महीने काम ठप रहा और इसके काम चालू हुआ लेकिन लोकल ट्रेन में आम लोगों के सफर पर लगी पाबंदी के कारण कालबादेवी इलाके का कारोबार पटरी पर नहीं आ सका है। यही वजह है कि कारोबार इस इलाके से अपने गोदाम, दफ्तर और शोरूम को दूसरे इलाकों में ले जा रहे हैं। इलाके से कारोबारियों का पलायन रोकने के लिए दुकान मालिकों ने तीन से छह महीने तक किराया माफ करने के साथ किराये में 50 फीसदी तक की कटौती भी की है, बावजूद इसके कारोबारी यहां से अपनी दुकान और गोदाम खाली कर रहे हैं।
आम तौर पर दीवाली से किराया करारनामा बनता है लेकिन इस बार करीब 30 फीसदी कारोबारियों ने अपनी दुकानों का नया करारनामा नहीं बनवाया है। जिन्होंने नया करार किया है, वे भी कम किराये देने पर ही सहमत हुए हैं।
कपड़ा कारोबारियों की बड़ी संस्था भारत मर्चेंट चैंबर के ट्रस्टी राजीव सिंगल कहते हैं कि लगभग सभी बड़े कारोबारियों के गोदाम और शोरूम और दफ्तर इसी इलाके में हैं लेकिन माल भिवंडी, मालेगांव और इच्छलकरंची से आता है। लॉकडाउन के समय कारोबारी इस इलाके में नहीं पहुंच पा रहे थे और इसकी जगह नए तरीके से कारोबार सीख लिया। अब उन्हें लग रहा है कि कालबादेवी इलाके के बिना भी उनका कारोबार हो सकता है इसीलिए दूरदराज से आने वाले करीब 30 से 40 फीसदी कारोबारी अब अपने आसपास के इलाकों में ही गोदाम तैयार कर रहे हैं।
सिंगल के मुताबिक इसका असर दुकान-गोदामों के किराये पर भी पड़ा है। औसत आकार के दुकानों का सालाना किराया 13 लाख रुपये से घटकर 7.5 लाख रुपये रह गया है। कारोबारियों का कहना है कि अगर इस इलाके से गोदाम बाहर जाते हैं तो माथाडी कामगारों और दफ्तरों में काम करने वाले लोगों का रोजगार भी प्रभावित होगा। हिंदुस्तान चैंबर्स ऑफ कॉमर्स के पूर्व अध्यक्ष शंकर केजरीवाल कहते हैं कि इस इलाके में एमजे मार्केट, स्वदेशी मार्केट और मंगलदास मार्केट प्रमुख हैं। एमजे मार्केट पूरी तरह से थोक कारोबार के लिए है, जहां किराये पर गोदाम व दफ्तर चलाने वाले करीब 50 फीसदी कारोबारियों ने रेंट एग्रीमेंट का नवीनीकरण नहीं कराया है। लोगों को लग रहा है कि जब हम घर से काम कर सकते हैं तो दफ्तर का किराया क्यों भरें। स्वदेशी मार्केट एसोसिएशन के सदस्य पंकज कालापी कहते हैं कि हमारे यहां करीब 80 फीसदी कारोबारी अपनी दुकानों के मालिक हैं जबकि 20 फीसदी किराये पर हैं। किराये वाली दुकानों के बंद होने का खतरा है।
इस मार्केट में करीब 350 दुकानें और 400 के करीब कारोबारियों के दफ्तर हैं।
खुदरा कारोबारियों का गढ़ माने जाने वाले मंगलदास मार्केट में कारोबारियों को रोकने के लिए किराया 25 से 30 फीसदी कम कर दिया गया है। मंगलदास मार्केट के पूर्व सचिव भरत ठक्कर कहते हैं कि छोटे दुकानदारों पर महामारी की तगड़ी मार पड़ी है। सरकार की तरफ से भी छोटे कारोबारियों को कोई सहूलियत नहीं मिली है। ठक्कर का कहना है कि भारी परेशानी के बावजूद हमने अपने कर्मचारियों को काम से नहीं निकाला है जबकि बड़ी कंपनियों ने एक झटके में अपने कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया।
कपड़ा कारोबारियों का कहना है कि कोरोना से कपड़ा बाजार को भारी नुकसान हुआ है। इस दौरान बड़े बाजार बंद रहे और खुलने के बाद भी यातायात की समस्या के चलते कर्मचारी एवं ग्राहक बाजारों तक पहुंचने में भारी परेशानी हो रही है। लॉकडाउन के समय कारोबारियों ने ऑनलाइन कारोबार का भी गुर सीख लिया है। अब कारोबार सैंपल दिखाने के लिए व्हाट्सऐप का सहारा ले रहे हैं और पसंद आने के बाद सीधे माल भेज रहे हैं। इसीलिए अब थोक व्यापारी कारखानों के पास गोदाम खोलना चाह रहे हैं। यहां किराया भी कम है और माल भाड़ा भी कम लगता है। इसका सीधा असर कालबादेवी जैसे बड़े बाजारों पर पड़ रहा है।
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