कोरोना महामारी में सबसे ज्यादा नुकसान मुंबई के डब्बेवालों को हुआ है। डब्बेवालों की एक अलग ही पहचान है। डब्बा देने के लिए लॉकडाउन में ऑफिस, उद्योग, लोकल रेलवे बंद थी। स्थानीय व्यापार भी बंद हुआ। घर से ही दफ्तर का ऑनलाइन काम चालू है। मुंबई में लगभग 5,000 डब्बेवाले रेलवे की तीनों लाइन - पश्चिम, मध्य और हार्बर रेलवे से काम के लिए शहर आते थे। वे लगभग दो लाख लोगों के दफ्तर तक उनका डब्बा पहुंचाने का काम कर रहे थे। वह काम भी कोरोना की वजह से रुक गया।कई डब्बेवाले अपने गांव चले गए क्योंकि रोजी-रोटी बंद हो गई। वहां मुख्यत: वे खेती का काम करने लगे हैं। हाथ में जो भी काम आया वह कर रहे हैं। मुंबई डब्बावाला एसोसिएशन के अध्यक्ष सुभाष तलेकर ने कहा कि 5,000 डब्बेवाले काम कर रहे थे। कोरोना महामारी में लोगों के दफ्तर का काम घर से चालू है। हमारे एक आदमी के पास 22 डब्बे थे। उसकी महीने की 16,000 रुपये तक कमाई चल रही थी। तब घर चलाने में आसानी थी। अभी एक आदमी के पास दो डब्बे हैं। किसी के पास वह भी नहीं है। दो डब्बे में 2,000 से 3,000 रुपये महीने की कमाई मिल रही है। संभव होने पर वे मुंबई शहर में अपनी साइकिल से ही डिब्बा लेकर आते हैं। एक आदमी के पास न्यूनतम 12 डब्बे होने चाहिए। रेलवे चालू भी होती है, तब भी लोगों का दफ्तर में आना जाना कैसा रहेगा, यह सवाल भी है।तलेकर ने बताया कि लॉकडाउन में बहुत सारी संस्थाओं ने उनकी बहुत मदद की। अभी तक उन्हें राशन मिल रहा है। रेडियो सिटी, गोदरेज जैसी बहुत सारी संस्थाओं ने हमारी मदद की है। हमारे जो लोग गांव चले गए हैं, उनके लिए राशन की व्यवस्था मुंबई से की जा रही है।
